कितने सारे ड्रॉफ्ट्स
कितने सारे ड्रॉफ्ट्स
कुछ दिनों से लिखना जैसे हो ही नही पा रहा था...मन जैसे उचट सा गया था। विषय तो थे लेकिन एकदम से अपील करनेवाला कोई टॉपिक मिल ही नही रहा था।लेखक के लिए लिखना तो जैसे जीवन होता है...
लेखक ऐसे में क्या करे? किसी भी फालतू विषय पर लिखना तो नही होगा न?
इसी उहापोह में मैं पुराने कुछ आधे अधूरे ड्रॉफ्ट देखने लगी। कितने सारे ड्रॉफ्ट्स तो किसी रोज़नामचे की तरह मेरी मन की कुछ बातें लिखी थी।
वे बातें उस वक़्त के मेरे मन की होनेवाली उथलपुथल थी। कुछ में मेरे रिवोल्ट लेते स्वभाव को दर्शाती चीज़ें लिखी थी। बीइंग गवर्नमेंट सर्विस ढेर सारी बंदिशें और उस वक़्त शायद मेने मन के मुताबिक काम न कर पाने की मेरी मन की कोई कैफ़ियत दर्ज थी।
वहाँ कितनी सारी बातें दर्ज थी जो मै उस वक़्त शायद किसी से कह नही पाती थी... कुछ अनुभव की कमी या फिर समझ की कमी.. समझ की कमी कहना शायद ग़लत होगा .. मुझे लगता है की डिप्लोमेसी की ज़रूरत कहना शायद सही होगा...
उस वक़्त की मैं और आज की मैं..
आज हम दोनों में कितना फर्क है...उस वक़्त की मैं कुछ डर और सहमकर रहती थी लेकिन आज की मैं कम्पलीट अलग हुँ... आज मैं अपनी बात बेहिचक कह देती हुँ...शायद अनुभव और अपनी मेहनत से यह संभव हो पा रहा है...
और भी कुछ अधुरी बातें लिखी थी...जिसमे अपने आसपास घटती हुई कोई घटना और मेरे मन की उस वक़्त की अवस्था...
आज इतने सालों के बाद आज यह सब पढ़ते हुए मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जा रही है...
मुझे इन मे से कुछ ड्रॉफ्ट्स को कम्पलीट करना होगा..आज तक के अपने अनुभव से... .लेकिन हाँ, कुछ डिप्लोमेसी के साथ....