Ruchika Rana

Others

3  

Ruchika Rana

Others

कहानी मुफ्त शिक्षा की

कहानी मुफ्त शिक्षा की

5 mins
382


अभी पिछले वर्ष एक महाशय अपनी बच्ची का एडमिशन कराने मेरे स्कूल आए। उस बच्ची की उम्र 4 साल से ज्यादा थी, तो वे अपनी बच्ची का एडमिशन के.जी. क्लास में चाहते थे, पर चूंकि उस बच्ची को कुछ भी नहीं आता था तो मैंने उसका एडमिशन नर्सरी में करने की बात कही। लेकिन वे महाशय तो के.जी. क्लास में एडमिशन कराने पर ही अड़ गए। जब मैंने उनको बहुत ज्यादा समझाया कि क्योंकि आपकी बच्ची को एक अक्षर भी लिखना नहीं आता है, तो वह के.जी. में कैसे पढ़ पाएगी...तो इस पर जो उन्होंने कहा, वह आप भी सुनिए!


वे बोले- "मैडम, मुझे तो अगले साल अपनी बच्ची के लिए ईडब्ल्यूएस का फार्म भरना है पहली कक्षा के लिए। इस साल तो मैं इसका एडमिशन इसलिए करा रहा हूँ, ताकि यह बैठना सीख जाए।"


बताइए जरा जिस बच्ची को एक अक्षर तक नहीं लिखना आता और जिसे सिखाने की उसके माता-पिता कोशिश भी नहीं कर रहे हैं, उस बच्ची को अगले साल पहली कक्षा में भेजने की तैयारी की जा रही है।


जो लोग ईडब्लूएस श्रेणी के बारे में नहीं जानते उन्हें बता दूँ, कि इस कैटेगरी में उन बच्चों का एडमिशन किया जाता है जिनके माता-पिता आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। लेकिन एक निजी स्कूल की प्राचार्या होने के नाते जो मैं अपने स्कूल में होने वाले ईडब्ल्यूएस के दाखिलों को देखती हूँ, तो यह स्पष्ट रूप से कह सकती हूँ कि ईडब्ल्यूएस वर्ग के अंतर्गत जिन बच्चों के दाखिले होते हैं वे बिल्कुल भी आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से संबंध नहीं रखते। मतलब उनके माता-पिता इतने सक्षम और संपन्न होते हैं कि आराम से अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च वहन कर सकें। तो फिर सोचने वाली बात यह है कि जब उन लोगों को इस प्रकार की आर्थिक मदद की कोई जरूरत नहीं होती तो वे क्यों ऐसी योजनाओं का लाभ लेते हैं, वे क्यों नहीं सोचते कि ना सिर्फ हमारे देश में, बल्कि यहां दिल्ली में भी बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें सच में ऐसी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। लेकिन लोगों की मानसिकता इतनी संकुचित हो चुकी है कि हमेशा दूसरों का हक मारने को तैयार बैठे रहते हैं, फिर चाहे उन्हें इसके लिए कितने भी धक्के खाने पड़े या लाइनें लगानी पड़े और झूठ बोलना पड़े।


कितनी आसानी से साल में तीन लाख कमाने वाला व्यक्ति मात्र 96000 प्रतिवर्ष आय का प्रमाण पत्र देकर ऐसी योजनाओं का लाभ उठा ले जाता है और जो सच में साल में मात्र 80-90 हजार ही कमाता है वह तो अपनी बारी आने का इंतजार ही करता रह जाता है।


चलिए, अब वापस उसी बच्चे के दाखिले पर आते हैं, हैरत की बात थी...कि जितने यकीन के साथ वे महाशय बोल रहे थे कि मेरी बच्ची का अगले साल ईडब्ल्यूएस में नंबर आ जाएगा, उतनी आसानी से उस बच्ची का नंबर आ भी गया। यहां मैं यह भी बताना चाहूंगी कि उस बच्ची का बड़ा भाई भी 2 साल से मेरे ही स्कूल में पढ़ रहा है और वह भी ईडब्ल्यूएस श्रेणी में। मतलब उन महाशय की तो बल्ले-बल्ले हो गई, दो बच्चे और दोनों ही मुफ्त में पढ़ेंगे। ना स्कूल की फीस की चिंता और ना यूनिफार्म और कॉपी किताबों की चिंता और एक और बात बताने वाली यह है कि ये सिर्फ एक ही केस नहीं हैै। मेरे स्कूल में ऐसे 7, 8 बच्चे हैं जो खुद तो ईडब्ल्यूएस श्रेणी से मेरे स्कूल में थे ही और बाद में उनके भाई बहनों का नंबर भी ईडब्ल्यूएस श्रेणी में इसी स्कूल में आ गया। यह सब देखकर सोचने पर मजबूर हो जाती हूं कि हमारे देश में कुछ लोगों की किस्मत इतनी बुलंद कैसे हो सकती है कि जितने भी बच्चे हैं, सबका मुफ्त में पढ़ने के लिए ड्रा में नाम भी आ जाता है और वह भी उनके मनपसंद स्कूल में और वहीं कुछ मां-बाप ऐसे भी है अपने लाडलों को पढ़ाने का सपना अपनी आंखों में तो सजाते हैं पर हालात और मजबूरियों की वजह से अपना सपना पूरा नहीं कर पाते। बहुत सोचती थी मैं, पर सब बेकार है क्योंकि हम में से किसी को कुछ नहीं पता या फिर हम सबको पता है कि अंदर ही अंदर क्या मिलीभगत चलती है।


आइए, अब दूसरे पक्ष पर भी गौर करें।

ये बच्ची ऐसी अकेली नहीं है जो एक भी अक्षर ना आने के बावजूद पहली क्लास में दाखिला पा गई है। अधिकांश बच्चे ऐसे ही होते हैं जो बिल्कुल भी पढ़ना लिखना नहीं जानते और पहली क्लास में पहुंच जाते हैं, हालांकि बहुत से बच्चे होशियार भी होते हैं पर उनकी संख्या बहुत ही कम होती है। स्कूल वाले भी क्या करें, अब आदेश है तो दाखिला तो करना ही पड़ेगा, बिना यह देखे कि यह बच्चा उस कक्षा के लायक है भी या नहीं और उस पर सरकार पहाड़ यह तोड़ती है सिर पर, कि किसी बच्चे को, किसी भी कक्षा में रोको मत... मतलब उसे कुछ आता हो या ना आता हो बस घसीटते रहो उसे आगे तक और फिर मुफ्त में 8वीं, 10वीं या 12वीं पास करा कर खड़ा कर दो उस बच्चे को, उसके माता-पिता के आगे, इस देश के आगे, कि यह लीजिए.... आपका होनहार बालक, एक समझदार नागरिक.... वह क्या अपने मां-बाप का जीवन सँवारेगा, क्या अपना और क्या अपने देश का।  मतलब सरकार एहसान कर रही है क्या हमारे बच्चों को पढ़ा कर!!!! हम में से तो किसी ने सरकार से नहीं कहा था कि ऐसी योजनाएं बनाई जाए जो समाज में आर्थिक असमानता की खाई को और भी गहरा कर दे। मुफ्त शिक्षा देना हर राज्य का, वहां की सरकार का कर्तव्य है.... उसके लिए सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ाई जा सकती है, वहां दाखिले की प्रक्रिया को सरल किया जा सकता है, शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है ताकि जो व्यक्ति वास्तव में गरीब है वह अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिला सके!


 ना कि ऐसी योजनाएं बनाई जाए जिससे कि समाज का एक वर्ग जो कि उक्त योजनाओं का लाभ उठाने में माहिर है.... फिर चाहे उसे इसकी आवश्यकता हो या ना हो, इन योजनाओं का फायदा उठा ले जाए और गरीब बेचारा टकटकी लगाए देखता रह जाए।


अगर इस प्रकार की योजनाएं बनाई जाती हैं, तो उनके अच्छे बुरे पहलुओं पर, उसके संभव असंभव पर, उनके सकारात्मक या नकारात्मक परिणामों के बारे में क्यों नहीं सोचा जाता। क्यों नहीं सरकार यह देखती कि जो योजनाएं वह बना रही है, उनका क्रियान्वयन उचित प्रकार से हो रहा है या नहीं... क्यों नहीं सरकार सुनिश्चित करती कि क्या इन योजनाओं का लाभ वाकई में उस वर्ग तक पहुंच रहा है जिसके लिए योजनाएं बनाई गई हैं। हो सकता है कि हम में से बहुत से लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता होगा, लेकिन फर्क पड़ना चाहिए हम सबको.... आप सबको.... और सोचना चाहिए इस बारे में.....!!


Rate this content
Log in