Dhan Pati Singh Kushwaha

Children Stories Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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केवल साक्षर नहीं-विवेकवान बनें

केवल साक्षर नहीं-विवेकवान बनें

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कक्षा के सभी बच्चे समय से ही बच्चों ने मीटिंग के माध्यम से परस्पर जुड़ चुके थे। आज बातचीत की शुरुआत प्रीति ने की। प्रीति ने बताया कि उसके दादाजी कहते हैं हमारे जमाने में पढ़ाई बहुत कठिन थी लेकिन इस पढ़ाई में पूरे मनोयोग के साथ कठिन अभ्यास भी पढ़ाई लिखाई का हिस्सा होता था यही कारण है पहले समय में कम कक्षाएं उत्तीर्ण लोग ज्यादा समझदार हैं। आज के विद्यार्थियों के द्वारा उनकी कई कक्षाओं को उत्तीर्ण कर प्रमाण पत्र और डिग्रियां इकट्ठी करने के बाद भी उनमें वह ज्ञान और विवेक नहीं है।


साधना ने प्रीति की बात को और आगे बढ़ाते हुए कहा मेरे पिताजी और माताजी बताते हैं कि वे जब पढ़ते थे तो नौवीं और दसवीं कक्षाओं में दो वर्ष की अवधि में जो कुछ पढ़ाया जाता था। दसवीं की बोर्ड परीक्षा देते समय दोनों वर्षों के पाठ्यक्रम की परीक्षा एक साथ होती थी ।इसी प्रकार ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षाओं में जो भी पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता था दोनों वर्ष के सम्मिलित पाठ्यक्रम की परीक्षा बोर्ड की परीक्षा के साथ देनी होती थी। बारहवीं में गणित विषय में छह पुस्तकें हुआ करती थी। परीक्षाओं में एक विषय में दो- दो या तीन -तीन पेपर भी हुआ करते थे। पाठ्यक्रम आज के पाठ्यक्रम से काफी विस्तृत होता था और उसमें अभ्यास के लिए अपेक्षाकृत अधिक प्रश्न हुआ करते थे ।हिंदी ,अंग्रेजी, संस्कृत आदि भाषाओं में उनको पढ़ाते समय उनके व्याकरण को अलग से पढ़ाया जाता था जिससे कि भाषा अधिक शुद्ध और परिमार्जित हो सके। विद्यालयों में समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते थे। विद्यालय में अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में भाग लेने विद्यार्थी अपनी वर्तमान कक्षा की पुस्तकों के साथ-साथ पूर्व में पढ़ी गई अपनी कक्षाओं की पुस्तकें और आगे पढ़ी जाने वाली पुस्तकों से दोहे कविता आदि अभी से ही बड़े मनोयोग से याद करते थे। क्योंकि उनके मन में अपनी टीम को सबसे अधिक अंक दिलवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहे इसलिए वे पूरी तैयारी के साथ कविताएं दोहे आदि याद करते रहते थे। प्रतियोगिता के लिए तैयारी करते-करते उनके अपने पाठ्यक्रम की अच्छी सी तैयारी अपने आप ही हो जाया करती थी।


रीतू ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा तो एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जब बहुत अधिक पाठ्यक्रम पढ़ने के पश्चात बहुत ही छोटी अवधि में उनके सीखे गए ज्ञान को आंकने के लिए परीक्षा आयोजित होती थी। शिक्षा में व्यवहारिक रूप में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए सतत नए प्रयोगों के माध्यम से इन समस्याओं को दूर करने के प्रयास किए गए। आज वार्षिक या द्विवार्षिक वार्षिक परीक्षाओं के स्थान पर सतत् मूल्यांकन की प्रक्रिया के माध्यम से बच्चों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है। किसी भी विषय में आगे का अध्ययन पिछले अध्ययन पर ही आधारित बताएं इसके अध्ययन में पहले गए पाठ्यक्रम को पूरा दोहराना ही पड़ता है। आज के समय में मोबाइल टीवी या संचार और मनोरंजन इन साधनों ने हमें अपने अध्ययन से दूर रखने में अपनी भूमिका निभाई है। औ पहले समय में मनोरंजन के कोई साधन हुआ ही नहीं करते थे तब यह पुस्तकें जिनमें पिछली कक्षाओं ,आगे आने वाले कक्षाओं की पुस्तकें भी शामिल हुआ करती थीं। विद्यार्थी इन पुस्तकों को पढ़ कर के ही अपना मन बहलाया करते थे। मन बहलाने के लिए वे कविताओं, कहानियों , उपन्यासों आदि को भी पढ़ा करते थे। वर्तमान समय में छोटी कक्षाओं में पुस्तकालय से पुस्तकें पढ़ने के शौक में अच्छी खासी कमी आई है। अध्ययन में स्वाध्याय का अपना विशेष महत्व है ।स्वाध्याय में हम अपने विषय के साथ-साथ अपनी रुचि के दूसरे विषयों को भी पढ़ते हैं जिससे हमारे ज्ञान का क्षेत्र अधिक विस्तृत और विशाल होता है । इस प्रकार पुस्तकालय हमें एक बहुआयामी व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। खाली अध्ययन में रुचि जगाने की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता है। हमारा स्वाध्याय अध्ययन के प्रति हमें अधिक सचेत और सजग बनाता है मैं यही कहूंगा कि हम सभी विद्यार्थी पुस्तकालयों का अधिक से अधिक लाभ उठाकर स्वाध्याय पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करें तो हम सब भी पहले समय के लोगों के समान ही अधिक विवेकवान हो सकेंगे। अध्ययन करते समय हमारा मुख्य ध्यान केवल परीक्षा पास करने पर नहीं बल्कि अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित करना और इस अर्जित किए हुए ज्ञान को अपने जीवन में व्यावहारिक रूप में उपयोग में लाना है।


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