कौआ मामा
कौआ मामा
"काँव ,काँव ...क्या बात है?कौन आ रहा है?"दादी को कौए से बातें करते सुन सात साल की काव्या पूछ बैठी -“क्या हुआ दादी किससे बात कर रही हो?”
"देख न पोतियाँ कौआ मामा आ गए संदेशा लेकर ...ये जब आँगन में आकर काँव काँव करते हैं न तो ज़रूर कोई घर में मेहमान आते हैं...”
"अच्छा!इसे कैसे पता चलता है?"काव्या ने प्रश्न किया।
"अरे !ये अंतर्यामी होते हैं।इनकी छठी इंद्रियाँ बहुत जागृत होती है। पहले के जमाने में तो कबूतर डाकिया का काम करता था।अब तो चिट्ठी पत्री लिखना ,भेजना सब मुँआ मोबाइल और इंटरनेट ने निगल लिया..."
"डाकिया?ये क्या होता है?"काव्या ने दादी से फिर प्रश्न किया।
"वो अब तो मोबाइल से बात चीत हो जाती हैं न ,आज से दस बारह साल पहले तो किसी को कुछ जानना ,पूछना या हाल -चाल लेना होता था तो चिट्ठी लिखी जाती थी और उसे एक लाल से डब्बे में डाल दिया जाता था ।एक सरकारी आदमी जिसे डाकिया कहा जाता है वह उस चिट्ठी को अपने गंतव्य पर पहुँचाता था।"
"बाप रे!”बहुत समय लगता होगा न ,दादी?”
पोती के मासूम प्रश्न पर दादी ने आह!भर कर कहा ,हाँ!”बेटा लगता तो था...”लेकिन चिट्ठी लिखना फिर जवाब का इंतज़ार करना और फिर कई कई बार उन चिट्ठियों को पढ़ना बहुत अच्छा लगता था।तेरे पापा की,दादा जी की चिट्ठियों को तो मैंने अब तक संजो कर रखा है।"
"अच्छा?”मुझे दिखाओ कैसी होती थी चिट्ठी ?”
पोती के ज़िद पर जब दादी ने दादा जी की चिट्ठी पढ़ने को दी तो नन्ही काव्या बोल पड़ी ओ दादी !”दादाजी की हैंडराइटिंग कितनी सुंदर थी “
"सो स्वीट ,इसे मैं अपने पास रखूँगी मेरे दादाजी की स्पेशल मेमोरी...।”कहकर काव्या ने चिट्ठी को सीने से लगा लिया लिया मानो वह अपने दादाजी को गले से लगा रही हो...।