काश! ये पल रुक जाते।
काश! ये पल रुक जाते।
"अरे सुमन! कैसी हो?"
"जल्दी घर आ जाओ।"
"क्यों क्या हुआ?"
"एक सरप्राइज है तुम्हारे लिए।"
"ठीक है! आते हैं।”
सीमा भी फोन रख जल्दी जल्दी तैयार होने लगी। दोनों के घर नजदीक थे तो सुमन दस मिनट में ही पहुँच गई।"कहाँ हो सीमा? लो मैं आ गई। नमस्ते आंटी।"
"आओ बेटा, सीमा भी तैयार हो रही।आती होगी। आओ बैठो बेटा।"
"अरे सुमन! लो मैं आ गई।"
" यक्या सरप्राइज है?"
"फिल्म की टिकट है। चलना है ना?"
"कौन सी ?"
"तेरी फेवरेट।"
"पक्का।"
"हाँ! चल बहुत मजा आएगा। फिर लंच और शाम तक वापस। हम जा रहे हैं मम्मा।"
"अपना ध्यान रखना दोनों। बाय।"
दोनों दोस्त मस्ती करते हॉल पहुँच गए। सुमन अपनी पसंद की पिक्चर देख बहुत खुश थी।
"सीमा तू सच में मेरी पक्की सहेली है, वर्ना मेरे घर में इतनी बंदिशे है कि मैं कुछ नहीं कर पाती हूँ। तेरे साथ समय कब बीत जाता है। पता ही नहीं चलता। तू रहती है तो एक दिन भी चुटकी बजाते बीत जाता है।"
"समझ गई! बहुत तारीफ हो गई मेरी। चल लंच करते हैं।" दोनों ने रेस्टोरेंट में अपना मनपसंद खाना खाया। फिर खूब बातें की, खूब मस्ती की। देखते-देखते शाम भी हो गई।
"चल सुमन और लेट होगा तो मम्मा परेशान होने लगेंगी।"
"हाँ! चलो। दोस्तों के साथ बिताए गए पल इतनी जल्दी क्यों बीत जाते हैं सीमा? काश हम इन्हें कुछ समय के लिए पकड़ कर रख पाते है या इन्हें जाने ही नहीं देते।"
"दोबारा ऐसे पल बार-बार आते रहे इसलिए यह पल बीत जाते हैं, समझी। अब चल, इतना उदास होने की जरूरत नहीं है। मैं कहीं भागी नहीं जा रही। फिर प्रोग्राम बनाएँगे।"
