जय लक्ष्मी माता
जय लक्ष्मी माता
दीपावली पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है, यूँ तो दीपावली मनाने के पीछे अनेक कारण है । उनमें मुख्य है इस तिथि को धन की देवी लक्ष्मी जी का प्रकट होना ।
पूर्व काल में देवताओं तथा दैत्यों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन किया था । क्षीरसागर को मथने के लिए उन्होंने मदरांचल नामक पर्वत को मथानी, तथा वासुकी नाग को रस्सी बनाया था । समुद्र में अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ भी डाली गयी ।
मंथन में पहली बाधा तब आई जब मंथन आरंभ होने से पहले मदरांचल पर्वत डूब गया । तब देवताओं ने भगवान की प्रार्थना की कि आपकी कृपा के बिना अमृत मिलना असंभव है । आप हम पर कृपा करें तो हमारा मनोरथ सिद्ध हो ।
देवताओं की प्रार्थना करने पर भगवान ने कूर्मावतार (कच्छप अवतार) लिया । अर्थात वे भक्तों का कार्य सिद्ध करने के लिये कछुआ बन गये और पर्वत को अपनी पीठ पर धारण कर लिया । इससे पर्वत ऊपर को उठने लगा तब भगवान उसके ऊपर में जा विराजे । इसके बाद ही समुद्र मंथन संभव हुआ था ।
यह पहला मौका था जब दैत्यों तथा देवताओं ने मिलकर कोई काम किया था । काम मिल जुलकर किया जाये और भगवान की कृपा भी हो, तब असंभव कार्य भी संभव हो जाता है ।
समुद्र मंथन से अर्थात प्रयत्न करने से दैत्यों तथा देवताओं को चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी । ये चौदह रत्न हैं- हलाहल विष, ऐरावत नामक चार दाँतों वाला हाथी, चंद्रमा, उच्चैश्रवा नामक घोड़ा, कल्पवृक्ष, कामधेनु,वारुणी (शराब), शंख, पारिजात, रंभा नामक अप्सरा, कौस्तुभ मणि, लक्ष्मी तथा अमृतकलश सहित भगवान धन्वंतरी
दैत्यों को अमृत के अलावा अन्य किसी में रुचि नहीं थी अत: ये वस्तुएं देवताओं की हुई । लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु का वरण किया था । क्योंकि भगवान विष्णु में ही उनकी रक्षा करने का सामर्थ्य था ।
श्री,लक्ष्मी, धन की प्राप्ति कठिन नहीं है, कठिन है उसकी रक्षा करना । धन पाकर जो व्यक्ति बौरा जाता है, उसके पास धन टिकता नहीं है । यह टिकता है सदाचार से । दुराचार से धन नष्ट होता है । यही कारण है कि जुआरियों, शराबियों तथा व्याभिचारी मनुष्यों के पास धन टिकता (ठहरता) नहीं है ।
ऐसा कहावत है कि बेईमानी से कमाया हुआ धन न तो ठहरता है और न ही किसी भले काम में उपयोग होता है । ऐसा धन आते समय जितना होता है, जाने के समय वह दस गुना होकर जाता है । बेईमानी से कमाया हुआ धन प्रायः कोर्ट-कचहरियों, बीमारियों, दुर्व्यसनों आदि में खर्च होता देखा गया है ।
लक्ष्मी माता को सदाचार पसंद है, इन्हें शुद्धता तथा शांति प्रिय हैं । जिस घर में नित्य कलह होता है वहाँ लक्ष्मी जी नहीं ठहरती ।
चूँकि शंख की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से हुई है, इसी कारण दीपावली को लक्ष्मी जी के साथ-साथ शंख की भी पूजा की जाती है । दक्षिणावर्त शंख का पूजन शुभ माना जाता है । चंद्रमा की उत्पत्ति भी समुद्र से हुई है, इसलिए वह माँ लक्ष्मी का भाई है,इसी कारण चंद्रमा को ‘चंदामामा’ कहा जाता है ।
दीपावली को लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ श्रीगणेश जी का पूजन अवश्य करनी चाहिए ।
लक्ष्मी स्थिर हो, वे घर में सदा वास करे, इसके लिए भगवान विष्णु का नित्य पूजन करना आवश्यक है । लक्ष्मी जी अपने स्वामी से दूर कैसे रह सकती हैं ।
लक्ष्मी पूजन में तुलसी का प्रयोग वर्जित है । लक्ष्मी जी को कमल का पुष्प अति प्रिय है, लक्ष्मी जी की विशेष कृपाप्राप्ति हेतु श्रीसूक्त का पाठ नित्य या फिर विशेष पर्वों, जैसे दीपावली आदि में करना विशेष फलदायी होता है ।
लक्ष्मी जी को सौभाग्य सूचक सामग्रियां भेंट करना मंगलकारी होता है । यह विशेष ध्यान रखना चाहिए कि माँ लक्ष्मी का विग्रह अथवा चित्र बैठी हुई मुद्रा में हो, इससे स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।
संसार में अच्छे तथा भलाई के कामों के लिए भी धन की आवश्यकता होती है, अतः धन की विशेष सुरक्षा करनी चाहिए और दुर्व्यसनों से दूर रहना चाहिए ।