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Shelly Gupta

Children Stories

3  

Shelly Gupta

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ज़िन्दगी की रेस

ज़िन्दगी की रेस

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शेखर हमेशा कक्षा में प्रथम आता था। आज उसकी सातवीं कक्षा का परिणाम आना था और उसकी मां बड़ी बेसब्री से उसका घर पर इंतजार कर रही थी। 


पर स्कूल छूटे तो समय हो गया था फिर भी शेखर का कहीं कोई अता पता नहीं था। अब उसकी मां का दिल थोड़ा घबराने लगा था। घर को ताला लगा कर वो शेखर को ढूंढने चली। गली के एक कोने में ही छुप के बैठा शेखर उन्हें दिखाई दे गया। उसका पूरा चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था और वो हिचकियां ले रहा था। शेखर की मां ने उसे उठाया और घर को ले चली। उनका मन तो डर रहा था पर रास्ते में उन्होंने कुछ पूछना उचित नहीं समझा।


घर पहुंचकर उन्होंने शेखर को पानी दिया और प्यार से उसके बाल सहलाते हुए उससे उसका परिणाम और रोने का कारण पूछा। रोते हुए उसने कहा कि मां मैं इस बार प्रथम नहीं द्वितीय आया हूं। उसकी बात सुनकर मां की सांस में सांस आई। वो तो डर ही गई थी कि जाने क्या बात है, क्या परिणाम इतना खराब आया है जो वो रोए जा रहा था।


मां ने शेखर को समझाने की कोशिश की कि हमें अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए बस और परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। वैसे भी प्रथम और द्वितीय में इतना फर्क नहीं होता। पर शेखर तो कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं था। उसे तो बस एक धुन लग गई थी कि अब वो इस स्कूल में नहीं जाएगा, उसका किसी दूसरे स्कूल में एडमिशन करवा दो।


अब मां को गुस्सा आ गया। उन्होंने शेखर को लताड़ते हुए कहा,"मज़ाक समझ रखा है क्या तुमने ज़िन्दगी को। एक बार हार क्या गए या कम नंबर क्या आ गए तो पीठ दिखा कर भाग जाओ। अरे बेटा, इस पीठ दिखाने से बड़ी हार कभी नहीं होती। ज़िन्दगी की रेस में ज़िन्दगी से कभी ना हारने वाला ही विनर होता है । तो खड़े हो जाओ और अगली परीक्षा में प्रथम आने के लिए मेहनत करो और फिर भी कोई तुमसे ऊपर जाए तो समझो की उसने तुमसे ज्यादा मेहनत की है और तुम्हे और ज्यादा करनी है। ऐसे हार नहीं मानते।"


मां की बातें और डांट सुनकर शेखर चुप हो गया और मां को बोला,"मैं समझ गया मां। अब मैं और मेहनत करूंगा। मुझे माफ़ कर दो।"

मां ने उसे गले लगा लिया और खाना परोसने लगी।




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