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जिज्ञासा

जिज्ञासा

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जिज्ञासा, कौतूहल ये भी बड़ी अजीब सी चीजें है, ये न होती तो शायद एक बच्चा कभी भी दिमागी तौर पर बड़ा न हो पाता! विज्ञान इतनी तरक्की न करता, और हाथों में ये सुपर फोन्स नही होते!

कई किस्म की जिज्ञासाओं के बीच एक जिज्ञासा मेरी भी थी कि वो कौन है जो रोज़ मेरे सामने से गुजरती है? घर से आँफिस के बीच के रास्ते मे जिस तरह वो नदी और उस पर बना वो पुल रोज़ पड़ता है। जैसे वो रेलफाटक रोज़ मिलता है और उसके बाद का वो जंगल। ठीक उसी तरह इन सब के बाद स्कूटी पर वो लड़की, जिसका चेहरा कपड़े से बंधा होता है। आँखों पर बड़े काले चश्मे और उसके सर पर किसी ताज कि तरह रखा वो छोटा सा नन्हा सा, नाम मात्र का हेलमेट।

रोज़ गुजरती थी, सेकंड भर में एक जुम्म्म आवाज़ और हम एक दूसरे को पार कर जाते। और उसके बाद कि वही जिज्ञासा कौन है ये? कहा जाती होगी रोज़ मेरी ही तरह?

फिर एक दिन रोज़ की तरह वही रास्ता, नदी पर बना वो पुल, रेल फाटक, सुनसान जंगल और उसके बाद वो। पर आज स्कूटी उसे नही बल्कि वो स्कूटी को लेकर आ रही थी। उस पर नजर पड़ी तो मैंने बाइक स्लो की उसके करीब पहुँचते-पहुँचते और भी धीमी की। आज हेलमेट स्कूटी के हैंडल पर लटका था चेहरे पर बंधा कपड़ा और चश्मा अपनी जगह पर ही थे!

खैर मेरी दुविधा थी रुकूँ या जाऊँ? सोचा वो मदद के लिए कहेगी, पर ऐसा कुछ नही हुआ! फिर मैंने सोचा छोड़ो यार चिपकू ही न समझ ले और बाइक आगे बढ़ा दी !

पर पता नही दिमाग के किसी कोने में एक खयाल आया कि मेरे और उसके बीच कुछ और न सही एक जिज्ञासा भरा अनजान रिश्ता तो है ही, और इस रिश्ते की वजह से एक बार पूछना तो बनता है,कि

Hey,do you need help?

फिर क्या था अगले ही पल बाइक मोड़ दी और उस तक पहुँच कर मैंने कहा-

" क्या मैं कोई मदद कर सकता हूँ ?"

वो- मैंने तो सोचा था रुकोगे नही आप ?

मैंने एक मुस्कान दी और फिर से पूछा

- क्या हुआ स्कूटी को ?

वो- पता नही यार स्टार्ट ही नही हो रही दो किलोमीटर से घसीटती ला रही हूँ !

मैं- देखो दूसरी कहानी के हीरो की तरह तो मैं हूँ नही जिसे सबकुछ आये! और स्कूटी के मामले में तो मैं पूरी तरह अनपढ़ हूँ! पर हां यहाँ से कुछ डेढ़ किलोमीटर पर एक गेराज है कहो तो वहां तक ले जा सकता हूँ आपकी स्कूटी, आपके साथ !

वो- और आप की बाइक !

मैं- वो चाय की टपरी दिख रही हैं न वहाँ खड़ी कर देता हूँ !

वो- ओके! अगर आपको कोई दिक्कत न हों?

मैं- नहीं कोई भी दिक्कत नहीं !

मैंने अपनी बाइक उसी चाय की दुकान पर खड़ी कर दी, अब जब लौट कर आया तो देखा उसने अपने चेहरे पर बंधा कपड़ा और चश्मा निकाल दिया था। खैर उसे ज्यादा ताड़ने की कोशिश नही की और उससे कहा मुझे स्कूटी दे दीजिए!

उसने स्कूटी मुझे दे दी। और हम तीनों (मैं, स्कूटी और वो) साथ साथ सड़क पर चलने लगे !

मैं- मैं रोज़ आपको इधर से जाते हुए देखता हूँ !

वो- हाँ,मैं यहाँ पास में ही एक स्कूल है वहाँ पढ़ाती हूँ!

(कुछ सेकण्ड्स भर की चुप्पी के बाद उसने फ़िर से पूछा।)-

-देखती तो मैं भी आपको हूँ रोज़,आप कहाँ जाते है ?

मैं- बस यही पास में, एक बैंक में! क्या नाम है वैसे आपका ?

वो- मेरा जिज्ञासा, और आपका??


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