Dipesh Kumar

Others

4.5  

Dipesh Kumar

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जब सब थम सा गया (दिन-27)

जब सब थम सा गया (दिन-27)

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लॉक डाउन दिन-27

20.04.2020


प्रिय डायरी,

आज का दिन बहुत खास था चाचाजी का जन्मदिन जो था। सुबह उठते ही चाचाजी का पैर छूकर जन्मदिन की बधाई दी। फिर छत पर जाकर रोजाना की तरह योग और प्राणायाम के साथ अपने दिन की शुरुआत की। लॉक डाउन के चलते इस बार न तो कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम हो पाया और न ही कोई शुभकार्य, यही पास में एक भाई लगता हैं उसके विवाह की तिथि 26 अप्रैल घोषित हुई थी। लेकिन इस लॉक डाउन के चलते शादी को आगे बढ़ानी पड़ी। ये सब बातें मैं छत पर बैठकर योग के बाद सोच रहा था। प्रसाशन ने सुबह 7 से 12 तक की छूट दी है। इसलिए मैं नीचे आकर स्नान के बाद पूजा करके बिना समय गवाये बाज़ार जाने के लिए तैयार हो गया। भाई रूपेश बोला,"सामान ज्यादा लाना हैं चलो मैं भी चलता हूं", मैंने कहा ठीक हैं।

मैं और भाई रूपेश बाजार जाने के लिए तैयार हुए वैसे तो मैं 22 मार्च के बाद आज पहली बार बाज़ार जाऊंगा। रूपेश ने कहा,"भैया आप पीछे बैठो गाड़ी मैं चलता हूँ। "मैंने कहा,"क्या बात हैं मुझे पीछे इसलिए बैठा रहे हो ताकि पुलिस मारे तो पीछे वाला पिटे,"(हँसते हुए)। फिर हम दोनों भाई निकल पड़े बाजार। सबसे पहले बाहर निकलते ही घर के पास के एक प्राचीन माँ काली के मंदिर के मुख्यद्वार पर हाथ जोड़ते हुए आगे बढ़े। बाजार में घुसने से पहले ही चौराहे पर पिताजी के परिचित एक पुलिस वाले भैया ने रोक और कहा,"अरे भाइयों कहा जा रहे हो" मैंने कहा, "भैया बाजार से घर के लिए किराने की दुकान से सामान लाना हैं।"

उन्होंने कहा,"एक गाड़ी पर एक ही लोग जा सकते हैं, इसलिए एक ही जाओ, मैंने भाई से कहा,"तुम रुको में ही सब कुछ लेकर आ जाता हूँ, "भाई बोला मैं धीरे धीरे घर की तरफ चलता हूँ।" उसके बाद मैं गाड़ी चलाकर बाजार पहुँचा। चाचाजी के जन्मदिन के लिए केक तथा अन्य मिठाईया बनाने की सामग्री बहनों ने कल ही दी थी मुझे। किराने की दुकान से सब सामग्री लेने के बाद मैं घर की और चलने लगा तो देखा की एक मोबाइल की दुकान खुली हैं मैं तुरंत दुकान पर पहुँच कर मोबाइल देखने लगा। तुरंत वीवो कंपनी का फ़ोन पसंद किया और चाचाजी के लिए उपहार के रूप में उसको ले लिया। गाड़ी से जल्दी भाई के पास पहुँचकर उसको गाड़ी पर बिठा कर घर पहुँच गया। घर पहुँचने के पहले मैंने गाड़ी को सैनिटाइजर फव्वारे के छिड़काव वाली मशीन के अंदर से छिड़काव करवाकर लाया। गाड़ी खड़ी करने के बाद तुरंत मैं और भाई रूपेश अच्छी तरह हाथ पैर धोकर सैनिटाइजर का इस्तेमाल किया और किराने के सामान को कुछ देर गाड़ी के साथ धूप लगने के लिए छोड़ दिया। कुछ देर बाद बहन बीना ने सारी सामग्री किचन में ले जाकर रख दिया। दोपहर के 12:30 बज रहे थे। भोजन का समय भी हो गया था। दोपहर के भोजन के बाद मैं अपने कमरे में आ कर सो गया। 3 बजे के लगभग आँख खुली तो मैं पास में पड़ी एक किताब पढ़ने बैठ गया। पढ़ते पढ़ते किचन से अच्छी खुश्बू आ रही थी। समय शाम के 5 बज गए थे किचन में जा करके देखा तो कचौरिया, रसमलाई, केक और गुलाब जामुन बनकर तैयार हो रहे थे। दोपहर से लगकर बीना ने सब कुछ तैयार किया था। लेकिन इन सब चीज़ों को खाने के लिए शाम तक इंतजार करना पड़ेगा।

किचन से निकल कर मैं बाहर आकर अपने बगीचे के पेड़ पौधों की देख रेख में लग गया। शाम की आरती का समय हो चुका था। आरती खत्म होने के बाद मैं कुछ देर घर के मंदिर के बाहर बैठ गया। कुछ देर में सबने केक काटने और जन्मदिन की तैयारी कर ली थी। चाचाजी नया कुर्ते में सुन्दर लग रहे थे।केक तैयार था और घर के सभी सदस्य आस पास खड़े थे। चाचाजी को तिलक लगाकर दादीजी ने आशीर्वाद दिया और हम सभी को तिलक लगाकर आशीर्वाद दिया। नायरा और आरोही चाचाजी के पास खड़े थे और मैं फोटो खींचने का काम कर रहा था। केक कटने के बाद सभी ने सभी व्यंजनों को खाया और चाचाजी को गिफ्ट दिया गया। बच्चों ने कार्ड बनाया था,और हम सबने मोबाइल दिया था, चाची माँ ने सोने की अंगूठी चाचाजी को दी। चाचाजी बहुत खुश हुए और कहा इससे बढ़िया जन्मदिन तो लॉक डाउन न रहने पर भी नहीं बनाया जा सकता था। कुछ देर बाद रात्रि भोजन के बाद सब अपने कमरे में चले गए। मैं अपने कमरे में आकर पढ़ने बैठ गया। इसी बीच एक कविता लिखने का मन हुआ और बैठे बैठे एक कविता लिख डाली। वैसे तो मुझे कविता लिखना नहीं आता पर अब धीरे धीरे शुरुआत स्टोरी मिरर के माध्यम से कर रहा हूँ। कविता लिखने के बाद में बिस्तर पर आकर अपनी आज की दिनचर्या को लिखकर सो गया।

इस तरह लॉक डाउन का आज का दिन बहुत ही सुंदर एवं उमंगित ढंग से समाप्त हुआ। लेकिन कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...



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