हमारा व्यवहार ही हमारा साइन बोर्ड होता है
हमारा व्यवहार ही हमारा साइन बोर्ड होता है
" स्नेहिल, उपमा ठंडा हो रहा है। फ़टाफ़ट उपमा खाओ, फिर खेलने भी तो जाना है।" बाहर पेड़ -पौधों को पानी दे रही स्नेहिल को मम्मी ने आवाज़ लगाई।
" मम्मा, 2 मिनट में आती हूँ। "
सभी पेड़ -पौधों को पानी देकर स्नेहिल घर के अंदर चली गयी थी। पेड़ -पौधों पानी देना स्नेहिल की दिनचर्या में शामिल था। अपने विद्यालय से लौटकर स्नेहिल सबसे पहले अपनी यूनिफार्म बदलती, फिर खाना खाकर अपना गृहकार्य समाप्त करती। शाम को कुछ समय अपने घर के बगीचे की देखभाल में लगाती, उसके बाद ही खेलने जाती।
" अरे बेटा, पानी तो बाद में दे देते।" मम्मी ने नाश्ते की प्लेट स्नेहिल के हाथ में पकड़ाते हुए कहा।
" मम्मा, पेड़ -पौधे हमें जीवनदायिनी ऑक्सीजन देते हैं। हमारी टीचर कहती है कि पेड़ हैं तो हम हैं। इसीलिए पेड़ों की देखभाल करना बहुत जरूरी है। " स्नेहिल ने चमच्च से उपमा खाते हुए कहा।
" आपकी टीचर बिलकुल सही कहती हैं।" मम्मा ने स्नेहिल का माथा प्यार से सहलाते हुए कहा।
अपना नाश्ता समाप्त कर स्नेहिल अपने दोस्तों के साथ खेलने के लिए बाहर चली गयी थी। शाम को अँधेरा होने से पहले स्नेहिल लौट आयी थी।
स्नेहिल ने देखा कि उसके पड़ोस के घर के बाहर एक ट्रक खड़ा था। " यह घर तो इतने दिनों से बंद पड़ा हुआ था। लगता है, यहाँ कोई रहने के लिए आ गया है। अंदर जाकर मम्मी से पूछना पड़ेगा। "
" मम्मी, आज अपने पड़ोस के घर में कोई आया है क्या ?" दरवाज़े से घर में प्रवेश करते हुए स्नेहिल ने पूछा।
" आद्या, यह है स्नेहिल।" मम्मी ने कहा।
" स्नेहिल यह है आद्या और यह हैं आद्या की मम्मी।" घर में पहले से ही उपस्थित स्नेहिल की हमउम्र एक बच्ची और बच्ची की माँ से मिलवाते हुए स्नेहिल की मम्मी ने कहा।
स्नेहिल ने आद्या की मम्मी का अभिवादन किया और आद्या को हैलो कहा।
" आद्या और उनका पूरा परिवार आज ही अपने पड़ोस वाले घर में शिफ्ट हुआ है।" मम्मी ने स्नेहिल की प्रश्नवाचक नज़रों का उत्तर देते हुए कहा।
" चलो अच्छा हुआ आद्या बेटा तुम्हें नए घर में आते ही नयी दोस्त भी मिल गयी।" आद्या की मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा।
" हाँ -हाँ, बिलकुल।" स्नेहिल की मम्मी ने कहा।
" अच्छा शुक्रिया भाभी जी, अब चलती हूँ।" आद्या की मम्मी ने कहा।
" इसमें शुक्रिया कैसा ? पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आते हैं। कुछ और भी चाहिए हो तो आप बेझिझक माँग लीजियेगा।" स्नेहिल की मम्मी ने कहा।
" जी बिलकुल।" आद्या की मम्मी ने सोफे से उठते हुए कहा।
अगले दिन शाम को स्नेहिल ने आद्या को अपने दोस्तों से मिलवाया। सभी लोग खेलने लगे, लेकिन आद्या सृजनात्मक न होकर विनाशात्मक बुद्धि वाली थी। खेलते हुए, उसने जानबूझकर एक एक बच्चे को धक्का देकर गिरा दिया। आद्या रोज़ कुछ न कुछ फसाद करती। कभी किसी की बॉल ऐसी जगह फेंक देती, जहाँ से लाना ही मुश्किल हो जाता। एक दिन सभी बच्चे घर -घर खेल रहे थे, उन्होंने मिट्टी से अपना घर बनाया था, आद्या ने जानबूझकर वह घर तोड़ दिया। जब बच्चे बैट -बॉल खेलते और जब भी आद्या की बॉलिंग आती, वह तुरंत अपने घर चली जाती। धीरे -धीरे स्नेहिल और उसके दोस्तों ने आद्या के साथ खेलना बंद कर दिया।
स्नेहिल ने शुरू -शुरू में आद्या को समझाने की कोशिश भी की।
" आद्या, तुम्हें सबसे हिल -मिलकर रहना चाहिए। अगर तुमने अपने व्यवहार में सुधार नहीं किया तो कोई भी तुम्हारे साथ न तो खेलेगा और न ही दोस्ती करेगा। "
" स्नेहिल, मेरा व्यवहार सबके साथ अच्छा है। लेकिन तुम मुझसे ईर्ष्या रखती हो और सभी को मेरे विरुद्ध भड़काती रहती हो। "
आद्या की बातों और रुख से स्नेहिल को समझ आ गया था कि आद्या को समझाना भैंस के आगे बीन बजाने से ज्यादा कुछ नहीं है।
कुछ दिनों बाद स्नेहिल कुत्ते को रोटी खिलाकर अपने घर के पास स्थित बगीचे से गुजर रही थी कि उसे किसी की आवाज़ सुनाई दी। कोई मदद के लिए पुकार रहा था। स्नेहिल ने जाकर देखा तो आद्या बगीचे में स्थित एक खड्डे में गिर गयी थी और मदद के लिए पुकार रही थी। आसपास कोई भी नहीं था।
स्नेहिल को देखते ही आद्या ने रोते हुए कहा, " स्नेहिल मुझे इस खड्डे से निकालो। मेरी मदद करो। "
" तुम्हारी मदद क्यों करूँ ? तुम तो हमेशा ही हम सभी को परेशान करती रहती हो। "
" कम से कम मेरे घर पर ही सूचित कर दो।" आद्या ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
" नहीं, तुम इसी लायक हो।" ऐसा कहकर स्नेहिल तुरंत वहाँ से चली गयी।
कुछ मिनटों बाद स्नेहिल अपने घर पहुँच गयी थी, लेकिन आज स्नेहिल कुछ परेशान थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आद्या की मदद न करके उसने सही किया या गलत। स्नेहिल ने अपनी परेशानी अपनी मम्मी को बताई।
" बेटा, जिस काम को करके हमें ज़रा सा भी असमंजस हो, वह काम सामान्यतया गलत ही होता है। तुम्हारी मूल प्रवृत्ति जहाँ तक हो सके, वहाँ तक दूसरों की मदद करने की है। इसीलिए जब तुमने आद्या की मदद नहीं की तो तुम असमंजस की स्थिति में आ गयी। "
स्नेहिल को सोच -विचार में गुम देखकर मम्मी ने कहा, " चलो स्नेहिल, अब ज्यादा सोचो मत, तुरंत आद्या की मदद करने चलो। अगर तुम भी आद्या के जैसे ह व्यवहार करोगी तो तुम में और आद्या में क्या फर्क रह जाएगा। "
स्नेहिल की मम्मी ने एक रस्सी ली और स्नेहिल से कहा कि, " मैं बगीचे में जा रही हूँ। तुम आद्या की मम्मी को सूचित करके, शीघ्र बगीचे में पहुँचो। "
सभी लोगों ने मिलकर आद्या को बाहर निकाला। आद्या बाहर निकलते ही अपनी मम्मी के गले लगकर रो पड़ी।
" स्नेहिल, मुझे माफ़ कर दो। मैं आगे से सबके साथ हिल मिलकर रहूँगी।" आद्या ने कहा।
" कोई बात नहीं आद्या। मुझे भी माफ़ कर दो, तुम्हें मुसीबत में देखकर भी, मैं तुम्हारी मदद किये बिना ही चली गयी थी।" स्नेहिल ने आद्या की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कहा।
" हमारा व्यवहार ही हमारा साइन बोर्ड होता है, उसी से लोग हमारे बारे में जानते हैं। इसीलिए व्यवहार में हमेशा ही अच्छे रहो।" स्नेहिल की मम्मी ने कहा।
सभी लोग हँसते -मुस्कुराते अपने -अपने घर की तरफ चल दिए।
