हम हैं बेमिसाल कहते रहे ...

हम हैं बेमिसाल कहते रहे ...

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कहानी शुरू करने से पहले

मैं कहना चाहता हूँ की यह काल्पनिक है,

अगर यह वास्तविकता में बदल जाएगी

तो उनके जिम्मेदार हम सब होंगे , सिर्फ मैं नहीं।


दोस्तों ! आटपाट नगर था

दिक्कतें तो थीं मगर

खुशियों भरा माहौल था

पता नहीं किसकी नजर लगी।


एक ही झटके में सबकुछ ख़त्म

मिल जुल कर रहने वाले झगड़ने लगे

तू तू मैं मैं कहने लगे ,आपस में भिड़ने लगे

जैसे जन्नत जहन्नुम में बदल गई।


तहकीकात की तो पता चला की

दो खूंखार अजनबी ने एंट्री की शायद

सच भी हो सकता हैं पर यह तो सिर्फ आभास है

दोस्तों ! उसे वास्तविकता का रूप भी आ सकता है।


एक था रंगा , एक था बिल्ला,

एक तड़ीपार , दूसरा बिलकुल निठल्ला

दोनों की दोस्ती खूब जमी,

एक फेकूचंद ,दूसरा तोतला मोटा भाई।


फिर क्या होना था ? वही हुआ

झूट ,फरेब, मक्कारी नस- नस में थी

गाँधी के बन्दरों को हाइजैक किया 

उनके दिल में जहर घोलना शुरू किया।


सच मत बोलो ,बस हमारी सुनो

हम जो दिखाएंगे वही देखो

हमारे इशारो पर नाचो वरना

तुम देशद्रोही,पाकिस्तान चले जाओ। 


कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक

चांदनी चौक से इंडिया गेट

सपनों के शहर वो दिखाने लगे 

देखते - देखते राजधानी पहुंचे।


खुद को फरिश्ता , महापुरुष कहलवाया 

इतिहास तोड़ मरोड़कर लोगो को गुमराह किया

सत्ताधीश बने ,रोटी , कपडा न मकान दिया 

महंगाई , बेरोजगारी ,जातिभेद से हैरान किया।


कुछ सवाल किये तो सिर्फ स्लोगन सुनाते हैं

कसम से देशभक्ति के ठेकेदार बन बैठे हैं 

अंधभक्तो की टोली ट्रोल करने लगती है

गाली - गलोच , मॉब लॉन्चिंग होती है।


सामने सब कुछ होते हुये भी

हम बिलकुल चुप - खामोश हैं,

क्या करे भाईसाब हमें तो

गुलामी की आदत है।


फ्रेंच आये , डच आये ,

अंग्रेज १५० साल रहे ...

मुगल आये ,सभी ने लूटा,

हम टस के मस न हुए।


इतिहास गवाह है हुक्मरानों

यूँ ही न उनको परेशान करो

जनता सबकुछ जानती है

कैसा काबू करना है कौन सा जानवर।


आज़ादी के सत्तर साल में हमने क्या किया?

एक दूसरे को नीचा दिखाया , झगड़े , जुमले

खेत, खलियान , खनिज संपत्ति बर्बाद किया,

हम हैं बेमिसाल कहते रहे खुद पर नाज किया।



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