Sajida Akram

Others

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#हिन्दी वेब सीरीज "शालू...द

#हिन्दी वेब सीरीज "शालू...द

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एपिसोड 1

शालू...द अनवाटेड

हरियाणा के छोटे से मौली गांव में पुरुषों और औरतों में अशिक्षा ,आज्ञनता पूरी तरह गंवंई परिवेश फैला हुआ था।पुरूषों में पितृ-सत्तात्मक का दंभी बर्ताव के कारण गलत व्यवहार-आचरण रहता है,औरतों के साथ मर्दों का गाली-गलौज करना और छोरियों के साथ ढ़ोर-डंगर की तरह बर्बरता की जाती थी ये गांव के हर घर-घर की कहानी थी । परिवार भी संयुक्त रहते हैं।दद्दा,ताऊ-ताई जी, चाचा-चाची और इतने ही सबके आठ-आठ बच्चे बड़ा परिवार रहता हैं।

या छोरी सालूभी इस ही गांव मौली की थी लड़कियों का भविष्य अंधकारमय था।सालू ने पांच क्लास तक ही पढ़ाई की थी । 


जमींदार के यहां मांऔर बापू दिहाड़ी मजदूरी करते थे।सालू बड़ी छोरी थी चार बहनों में भाई कौनी था । मां को हर समय छोरा पैदा नी कर पाई थी तो जली-कटी सुनती रहती थी । सालू के बापू के संग उसकी दादी भी ताने मारती थी।बापू दिहाड़ी करता दारू पीकर रात-दिन सालू की मां को गालियां देता

"साली करमजली"चार-चार छोरी जन के म्हारी छाती छोड़ दी । एक छोरा नी जन सकी ...."साली थारी पूजा करूं" । घर में बापू को मां के साथ मार-पीट करता देखती तो चारों बहनें डरकर दुबक जाती ।


"सालू बापू के घर से जाते ही खूब गुस्सा करतीं मां से कहती "मां सच्ची बोलूं तेरी सूं कदि बापू को इस हंसिया से ही गर्दन नी काट दी तो कहना तू .."हरामी...,मां डांटती हट छोरी कंई जेल जावेगी ....,हो जेल का दरोगा तो बापू से घना अच्छा है।सालू पर गांव भर के आवारा छोरों की गंदी नज़र थी ,सालू कद-काठी, तीखे नैन-नक्श,रंग गोरा और गदराया बदन ईश्वर ने दिया था।छोरी गांव की चौपाल के पास से घांस का गठ्ठर लेकर निकलती ,तो पीछा से छोरें तो छोरें , अधेड़ावस्था के मरद भी छाती पर हाथ मारकर आहें भरते थे। लार टपकती गंदी नज़र के साथ गंदी-गंदी गालियों से बतिताते हरामजादीएक बार मिल जाए तो घना मजा आ जावें ।


**साली या छोरी ** दिलों पे बिजली गिरा जाती है। फिर चौपाल पर भद्दी-भद्दी गालियां और किस्सों का सिलसिला चल निकलता है। बहुत देर गंदी ,भद्दी हंसी-ठिठोली होती । गांव की चौपाल पर दिन भर आवारा और निठल्ले लोगों का जमावड़ा लगा रहता था । बीड़ी के सूट्टे लगाना, ताश के पत्तों से तीनपत्ती का जुआ खेलना। दारू पीकर पड़े रहना.., चौपाल पर ।


चौधरी जी वैद्य थे उनके पुश्तैनी बाप-दादाओं की वैधशाला थी । दवा-दारू तो नाममात्र की चलती पर वैध जी की पकड़ ऊपर तक थी । गांव की सरपंच जो थे , सरकारी महकमों के सारे अधिकारियों को वैध जी के यहां आकर धौक देना मतलब मथा टेकना आवश्यक रहता। इतना चलती थी वैध जी की उनकी इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था । गांव में बड़ी धाक थी वैध जी की, भगवान स्वरुप थे "वैध जी".



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