हाय रे !! करोना “तूने तो मेरा घर ही उजाड़ दिया “
हाय रे !! करोना “तूने तो मेरा घर ही उजाड़ दिया “
देवकी को अपने बेटे प्रतीक की शादी करानी थी। उसका एक ही बेटा था और चार लड़कियाँ थीं। लड़कियों की शादियाँ हो गई थी। सब अपने -अपने परिवार में खुश थी। उसने अपने रिश्तेदारों और पहचान वालों को भी बता दिया कि उसे एक अच्छी सुंदर सुशील लड़की चाहिए। प्रतीक अपने पिता रामपाल के साथ बिज़नेस संभालता था। एक लड़की के माता -पिता को इससे अच्छा रिश्ता कहाँ से मिलता.....कि अकेला बच्चा ज़िम्मेदारियों का बोझ नहीं छोटा परिवार..बस रिश्तों की लाइन ही लग गई।
बहुत सारी लड़कियों को देखने परखने के बाद देवकी को ही एक लड़की जिसका नाम रेवती था, बहुत भा गई थी। रेवती अपने परिवार में पूरे दस भाई बहनों में सबसे छोटी और लाड़ली थी। उसके बड़े भाई का बेटा ही उसकी उम्र का था। इसलिए वह बड़े भाई को अपने पिता के समान ही सम्मान देती थी।
बहुत जल्द ही प्रतीक और रेवती का विवाह संपन्न हो गया। रेवती ने बड़े ही अरमानों से और पलकों पर ख़ूबसूरत सपने सजाकर अपने पति के घर में कदम रखा। दिन - रात कैसे बीते कुछ पता ही नहीं चला। समय पंख लगाकर उड़ रहा था। रेवती का मायका भी इसी शहर में था सारे भाई बहन भी यहीं रहते थे तो फिर क्या आए दिन मिलने मिलाने का सिलसिला चलने लगा। सास बहू की भी बहुत पटती थी। वे दोनों लोगों के लिए मिसाल थी। एक साल बहुत ही अच्छे से गुजरे।
कहते हैं न होनी को कोई टाल नहीं सकता ..... देवकी की मुँह बोली बहन सुभद्रा आई थी जयपुर से आते ही उसकी आँखों में सास बहू का प्यार खटकने लगा। वह तो अपने रिश्तेदारों में इतनी फ़ेमस थी कि उसके यहाँ अपनी बेटी को ब्याहने या उनकी बेटी को अपने घर बहू बनाकर लाने के लिए लोग काँपते थे। अब वह आए दिन देवकी के कान भरने लगी बहू देर से क्यों उठी, बहू ने ससुर के सामने घूँघट नहीं किया, बहू ने सास से पहले ही खाना खा लिया बस उन्हें तो बहू को खरी खोटी सुनाने के लिए बहाना ही चाहिए था। रेवती उनके रहते तंग आ गई थी। वह सिर्फ़ एक ही हफ़्ते थी पर जीवन भर का ज़हर देवकी के कानों में भरकर चली गई।
अब देवकी को भी अपनी बहू में कमियाँ नज़र आने लगी। रोज़ -रोज़ की खिच -खिच घर में शुरू हो गई घर की शांति भंग हो गई। देवकी के पति रामपाल ने देवकी को बहुत समझाने की कोशिश की पर उसे तो सुभद्रा की बातों के आगे किसी की भी बातें अच्छी नहीं लगतीं थीं। एक दिन रेवती अपनी बहन के साथ शापिंग करने गई और आते -आते देर हो गई जैसे ही घर में कदम रखा तो देखा सास ग़ुस्से में भरकर बैठी है और जो बातों का वार शुरू हुआ कि बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था। रेवती ने चुपचाप खाना बनाया ससुर को खिलाया पति शाप से अभी आए नहीं थे तो इंतज़ार करने लगी। देवकी तो आज आपे से बाहर हो गई थी। जो बात उसे नहीं कहनी थी उसने उसे कह कर रेवती के जलते घाव पर नमक छिड़क दिया ....... इतने साल हो गए शादी के अभी तक हमारे लिए एक पोता नहीं दे सकी अगर मुझे मालूम होता कि तू बाँझ होगी तो मैं कभी भी तुम्हें अपने घर की बहू नहीं बनाती। सुनते ही रेवती को काटो तू खून नहीं। अभी तक रोज ताने और जली-कटी सुनती थी। उस पर कभी भी रेवती ने ध्यान नहीं दिया था पर आज बाँझ कहकर सास ने उसकी दुखती रग पर नमक छिड़क दिया था। वह बहुत रोई। और उसने एक फ़ैसला लिया कि उसे जीने का हक़ नहीं है मर जाना चाहिए बस उसने बाथरूम में रखे फिनाइल को पी लिया। प्रतीक देर रात घर पहुँचा और रेवती से खाना परोसने के लिए कहकर फ़्रेश होने गया। जब वापस आया तो रेवती को वैसे ही पड़ा हुआ पाया जैसे उसके बाथरूम में जाते समय थी। उसे लगा गहरी नींद में है शायद। फिर से पुकारता है रेवती चल खाना परोस दे ...... वह नहीं उठी।प्रतीक ने उसका पकड़ा और घबरा गया। उसने अपने दोस्त को फ़ोन किया और वे दोनों रेवती को अस्पताल लेकर गए। रेवती का पूरा परिवार वहाँ था उन्हें भी मालूम था देवकी के बदले रूप के बारे में। माँ ने रेवती से कहा बेटा भगवान के घर देर है पर अंधेरा नहीं वे भी बदल जाएँगी सब्र कर और इस तरह के काम कर मुझे तकलीफ़ न दे और रोने लगी। रेवती ने उन्हें आश्वासन दिया कि अब मैं ऐसे कदम नहीं उठाऊँगी बल्कि परिस्थितियों का डटकर सामना करूँगी। दो दिन बाद रेवती को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया प्रतीक उसे लेकर घर आ गया।
देवकी थोड़ा सा घबरा गई थी पति और बेटे की डाँट फटकार के बाद उसमें थोड़ा सा बदलाव तो आया पर वह भी थोड़े समय के लिए। क्योंकि सुभद्रा की बातों का ज़हर बेहद असरदार था
अब प्रतीक और रामपाल दोनों ने मिलकर सलाह मशवरा किया और घर की शांति को बनाए रखने का एक ही उपाय उन्हें सूझा कि किसी तरह से एक बच्चे को गोद ले लें तो इन दोनों का ध्यान बँटेगा। इसी सिलसिले में रेवती से बात करके उसकी राय लेकर एक बच्चे को गोद लेने का निर्णय लिया। रेवती को भी इस निर्णय में हामी भरनी पड़ी क्योंकि उसे मालूम था कि उनके बच्चे नहीं होने वाले हैं और यह डॉक्टर ने ही बता दिया था। अब उसके सामने कोई चारा भी नहीं था। देवकी ने पहले तो हामी नहीं भरी पर बाद में सबकी हाँ ....होने की वजह से उसे भी हाँ कहना पड़ा। किसी तरह से बहुत खोजबीन के बाद उन्हें एक लड़का मिला जो सिर्फ़ दस दिन का ही था। डॉक्टर की देखरेख में पूरे टेस्टिंग के बाद बच्चे को घर लाया गया बहुत बड़ा फ़ंक्शन भी किया गया। अब सास बहू दोनों का समय कान्हा की देखभाल में ही बीतने लगा। देवकी के ज़ुबान पर सुबह से रात के सोते समय तक सिर्फ और सिर्फ कान्हा का ही नाम रहता था।
कान्हा दोनों की देख रेख में बड़ा होने लगा। एक दिन रामपाल घर पर ही बाथरूम में फिसलकर गिर गए और फिर कभी चल नहीं सके और एक महीने में ही उनकी मृत्यु भी हो गई। देवकी पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। प्रतीक भी अकेला हो गया। उसने अपने आपको सँभाला अकेले पूरे कारोबार को सँभालने लगा।
प्रतीक ने अपने पिता से बहुत कुछ सीखा था इसीलिए जल्द ही वह संभल गया और अपना पूरा समय कारोबार को बढ़ाने में ही लग गया। अब देवकी का भी पूरा ध्यान कान्हा की देख रेख पर ही आ गया था। धीरे - धीरे समय ने करवट ली। कान्हा नवीं कक्षा में आ गया और समझदार भी हो गया। २०२० पूरी दुनिया के लिए एक अभिशाप बन गया है। कहाँ से आया क्यों आया नहीं मालूम पर करोना नामक एक वॉयरस ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया। लोग इस दहशत से इतना घबरा गए कि सहमे हुए घरों में दुबक गए। बहुत सारे लोग इसकी चपेट में आ गए थे।
लॉकडाउन पर तो सबने अपने आप को घरों में ही बंद कर दिया था। जब थोड़ी - सी छूट मिली तो लोग अपने कामों के लिए घर से बाहर निकले ज़रूर थे पर डरते हुए ही। प्रतीक को भी अपने काम के लिए निकलना था। उसने अपने आपको पूरी तरह बचाकर ही रखा था पर मालूम नहीं कैसे एक दिन प्रतीक बुख़ार से तपता हुआ घर आया धीरे- धीरे उसकी तकलीफ़ें बढ़ रही थी। दोस्तों ने राय दिया कि घर में तो बूढ़ी माँ है और छोटा बच्चा भी है ,इसलिए अस्पताल में ही क्वारेंटाइन हो जाना ठीक हो जाएगा। उनकी बातें प्रतीक को बिलकुल सही लगी। उसने अपनी माँ और रेवती से कहा ,बस दस दिन में आ जाऊँगा। तुम लोगों को भी अच्छा लगेगा। सुनकर दोनों ने भी सोचा ठीक है आ जाएगा पर विधि के विधान को कोई नहीं रोक सकता ख़ुशी से सबसे को बॉय बोलकर गया हुआ प्रतीक घर वापस नहीं आया। रेवती की तो जैसे पूरी दुनिया ही उजड़ गई थी और देवकी के बुढ़ापे की लाठी ही टूट गई थी। अब सब लोगों को पता चल गया कि इनके ऊपर किसी मर्द का साया नहीं बच्चा छोटा है घर में दो ही औरतें हैं। बस इधर-उधर से झूठी सहानुभूति दिखाने वालों की संख्या बढ़ गई थी। बेटियों ने भी अपना हक ज़माने की कोशिश की माँ को समझाया बहू पराई है ,माँ अपने गहने और पैसे हमारे पास रख दे हम सँभाल लेंगी। भाभी पर विश्वास मत कर। हमसे पूछे बिना कहीं भी सॉइन मत करना। जितने मुँह उतनी बातें। देवकी तो एकदम चुप सी हो गई। वह हमेशा यही सोचती थी कि हाय रे ! करोना तुमने तो मेरे घर को ही उजाड़ दिया है !!!अब मैं क्या करूँ ? रेवती नभी अपने भाइयों की सहायता से कारोबार सँभालने की कोशिश करने लगी। इस मर्दों की दुनिया में पति के गुजरने के बाद अकेली औरत के लिए कारोबार सँभालना एक बहुत बडी चुनौती है। रेवती को तो अपने मायके का पूरा सहारा था। वे उसे अकेले नहीं छोड़ सकते थे। यही बात प्रतीक की बहनों की आँखों में खटकती थी। उन्हें लगता था कि वे बेबस होकर उनके पास आकर गिड़गिड़ाए। ऐसा न होता देख उन्होंने माँ को अपने तरफ़ करने की सोची। पहली बार जब बेटियाँ आईं थीं सच में देवकी अपने होशो हवास में नहीं थी। इसलिए उनकी बातों पर गौर करने लगी थी। वैसे भी रामपाल हमेशा कहते थे कि तू तो कान की कच्ची है ,कोई भी कुछ भी बोलता है तो बिना सोचे समझे उनकी बातों में आ जाती है। अब बेटियाँ दोबारा बड़ी बहन की लड़की की शादी के लिए आ पहुँची और माँ का कान भरने का काम करने लगीं। रेवती घबरा रही थी कि अब मेरा क्या होगा ? सास के कमरे में बैठी ननदों को चाय देने पहुँची और उसने सुना सास अपनी बेटियों से कह रही थी !!देखो आप लोग आए और मेरा सहारा बनने की कोशिश की मुझे अच्छा लगा पर एक बात कान खोलकर सुन लो। वह मेरी बहू है। मेरे बेटे की अमानत है और मेरा पोता जो मेरे घर का चिराग़ है। उन्हें मैं बीच रास्ते में नहीं छोड़ सकती। अब मेरा सहारा वे हैं और मैं उनका सहारा। पहले ही मैंने एक बहुत बड़ी ग़लती की थी। अब मैं फिर उस ग़लती को नहीं दोहराना चाहती हूँ। मैं उसका सहारा बनना चाहती हूँ। तुम लोग मायका है आओ और जितने दिन यहाँ रहोगे ख़ुश होकर रहो पर मेरे या उसके मन में ज़हर मत घोलो क्योंकि रेवती तो बहुत छोटी है उसके सामने लंबी -सी ज़िंदगी पड़ी है।
रेवती ने जब यह सुना तो उसने एक लंबी साँस भरी और भगवान को लाख -लाख शुक्रिया अदा किया। और अस्पताल में माँ के द्वारा कही गई बात उसके कानों में गूँजने लगी ,भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं ...,..चलो भगवान एक सहारा ले लिया तो सास के रूप में एक और सहारा दिया। पर उसकी बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी। उन सबको चाय दिए बिना ही वापस आ गई और वहीं बैठकर पढ़ रहे कान्हा को गले लगाकर चूमने लगी।