ग्रामीण शादी
ग्रामीण शादी
आज महतो जी की बेटी की शादी है। गांव में उत्सव सा माहौल है। ऐसा लगता है कि पूरे गांव की बेटी की शादी है। बिन पूछे सब अपने अपने हिस्से का काम करने के लिए उतावला है। काम कम आदमी ज्यादा जैसी स्थिति है।
राशन का सामान कल ही खरीदा गया है। किराना दुकान वाले मोदी जी पैसा लेने से इनकार कर गए। बोले पहले बिटीया की शादी से निपट लो बाद में हिसाब-किताब हो जाएगा।
मुखिया जी बिन पूछे दूई हजार रुपए नगद पहुंचा दिये है। कर-कुटुम ( रिस्तेदार) का आना शुरु हो गया है।
बगल वाले मंडल जी के दालान में पुआल पर बड़का बड़का दरी बिछा कर जाजीम बिछाया गया है। बारातियों के ठहरने के लिए।
पान सुपारी कत्था आ जरदा भी टेबल पर रखा हुआ है साथ में बीड़ी भी।। कोई रोक टोक नहीं है। जिसका जब मन करे अपने से पान बना कर खा रहे हैं।
कच्चा सामग्री का बेवस्था आज होना है।
धनेसर और बिरजू पुरनि पता (पतल) तोडने के लिए भोरे बहियार चला गया है।
नागो और रितलाल बैलगाड़ी से सब्जी खरीदने हाट गया है।
सुरेश और लछमन का ड्यूटी मड़वा (मंडप) बांधने का है।
टेंट बान्हने में एसपर्ट है मुनेसर और निमाय । खंती रस्सी लेकर उ लोग भी आजमाइस में लग गया है।
इसी बीच लाउडस्पीकर वाले भैया शारदा सिन्हा का गाना लगा दिया फूल साउंड में।
जेहने किशोरी मोरी
तेहने किशोर हे
विधना लागाओल जोड़ी
केहन बेजोड़ हे
विधना लागाओल जोड़ी
केहन बेजोड़ हे.......
गाना सुनते ही माहौल एक दम से गनगना गया।
इसी बीच रमीया भौजी आ धमकी। ए बउआ एकर बाद
उ वाला लगाउ न
रामजी से पूछे जनकपुर के नारी
बता द बबूआ
लोगवा देत काहे गारी
बता द बबूआ.......
बच्चे लोग नदिया के पार वाला फिल्मी गाने का फरमाइश कर रहे हैं। विशनाथ चच्चा कस के डांट दिहीस भागता है कि नहीं यहां से।
बारात पहुंच चुका है। रसना फ्लेवर वाला नींबू का शरबत बांटा जा रहा है। कागज वाला प्लेट में बुनीया और भूजीया भी।
उधर लड़का के दोस्त यार दुआर लगाने में बीजी है।
परिछन का रसम भी हो रहा है। गांव भर का दादी काकी भौजी दुल्हा का एक झलक पाने को आतूर है।
रींकी चींकी पींकी भी लाल रीबन बांधकर भीड़ में घुस गई है।
तब तक खाना का बिनो (एलान) हो गया।
बासमती चावल का भात अरहर दाल आलू परवल का सब्जी पापड़ दही बुनीया का भरपूर व्यवस्था है। सब्जी में पानी से बेसी तेल ही है।
बारात लोग गदगद हैं।
बेटी के बाप एक अलग टेंशन में हैं। पता नहीं किस बात पर जमाई बाबू रुठ जाए। एच एम टी का घड़ी, फिलिप्स का रेडियो और एटलस के साईकिल का डिमांड था।
तीनों बेबस्था कर लिया गया है।
हुआ वही जिसका डर था। मड़बा पर जमाई बाबू सोना के चेन के लिए रुठ गए। गांव के प्रतिष्ठित लोगों के अथक प्रयास से बात अंगूठी पर आकर रुकी।
बेटी के बाबूजी अंगुठी गछ कर चैन की सांस ली।
भोर हो चुका है। बारात लोग नदी तरफ से दतुअन करते करते लौट चुके हैं। नाश्ता और दोपहर के खाने के बेवस्था में गांव वाले लग गए हैं।
शाम में बारात वापस होना है। मगर बेटी के बाप मरजाद (एक दिन और रुकने की परंपरा) रखने की बात पर अड़े हुए हैं।
मान मनौव्वल के बाद बारात लोग भी बात मान गये है।
शर्त यह रही कि रात में पूड़ी सब्जी और बुनीया चलाया जाए।
घरवाले गदगद है । पाहुन के सेवा करने का एक दिन एक्स्ट्रा मौका मिला।
गांव वाले भी पूरे खुश हैं । चलो इसी बहाने हम लोग भी पूड़ी जिलेबी दमभर खायेंगे।