Smruti ✨

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एक शाम बनारस के नाम

एक शाम बनारस के नाम

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चलो आज बनारस चलते हैं, हमारे एक शाम को बनारस के नाम करते है, हकीकत में ना सही सपनों में तो चल सकते है ना, तो फिर देर किस बात की है!!


आ जाओ मेरे साथ मेरे कल्पना की दुनिया में, "बनारस" कहने को तो चंद अल्फाज है बस, पर ये चंद अल्फाज दूसरों के लिए होंगे, मेरे लिए तो इन चंद अल्फाजों में मेरी सारी दुनिया समाई हुई है।


      मेरा दिन भी इस नाम से शुरू होता और रात भी इस नाम से खतम होती है। मुझे ये नाम सिर्फ पसंद नहीं है प्यार है मुझे इस नाम से, क्यूं की ये सिर्फ शहर नहीं इश्क है हमारा, हां ये एक शहर है, पर इस प्यारे से शहर में मेरी जान बसती है। ये शहर भले ही सबको छोटी लगे पर मेरे लिए इससे बड़ी जगह कुछ हो ही नहीं सकती, इसकी छोटी छोटी तंग गलियां में भटकना कितना अच्छा होगा ना, में भी उन तंग गलियों में आज नहीं तो कल भटकना चाहती हूं,। 


           और उसके घाट, इसके बारे में क्या कहना, बनारस की खासियत घाटों से ही तो होती है। कहते है बनारस की हर एक घाट की कोई कहानी बयान करती है, और में हर एक घाट की वो कहानी जानना चाहती हूं, ८६ के ८६ घाट घूमना चाहती हूं,,  

     हां मेरी जान मैं घूमना चाहती हूं हर एक घाट पर तुम्हारे साथ, तुम्हारा हाथ पकड़े हुए, हम घूमेंगे हर एक घाट, नाव पर नही पैदल, नाव पर बैठेंगे पर हर घाट की सैर पैदल ही करेंगे क्यूं की जो मजा पैदल चलने में आएगा वो नाव में कहां, अस्सी पर चाय पीयेंगे, गंगा घाट पर आरती देखेंगे, गंगा शान्न, दरभंगा घाट, दश्वाधमेध घाट, राज घाट, तुलसी घाट सब घूमेंगे, मणिकर्णिका भी चलेंगे, और वहां चल कर हम महसूस करेंगे की ये जिंदगी कुछ नहीं है मेरे दोस्त, तो हमें किस बात घमंड है एक दिन तो ये नापाक शरीर मिट्टी में ही मिलना है, इससे अच्छा हम सारे गीले शिकवे छोड़ अच्छे से मिल जुल कर रहे। 


            में देखना चाहती हूं डूबते हुए सूरज को, तुम्हारे हाथ पकड़े, घाटों की सीढ़ियों पर, मेरा शर तुम्हारे कंधे पर होगा, देखने में वो मंजर कितना हसीन लगेगा ये सोच सोच में पागल सी हो जा रही हूं। वो मंदिर के शंखनाद में खुद को खोया हुआ सा चाहती हूं। गंगा घाट जिसमें बैठने से पल भर में ही सुकून मिल जाता है, अस्सी घाट यहां की शाम में कुछ अलग ही नशा होता है, कुछ अलग ही रंग होता है और रही बात इश्क की तो हम बनारस से पहले से ही इश्क करते है। बनारस की वो रंगीन बागिया, हसीन फिजाएं कितना सुकून दायक होती होंगी ना, हम वहां के हर गलियों के भुलक्कड़ रास्ते पर घूमेंगे, हर नुक्कड़ पर चाय पीयेंगे, हम कुल्लढ़ से चाय पीएंगे। 


      बनारस में वो हर दुक्कन पर राजनीति की बातें, सड़कें से जाम से आते शोर , गंगा आरती में वो भीड़, महादेव के लिए भक्ति, घंटों की आवाज से सवेरा , शंखनाद से शाम, इनका क्या कहना लफ्ज़ भी कम पड़ जायेंगे पर बखान खतम नहीं होगा। यहां के लोगों में कुछ अलग की धुन होती है शायद वो महादेव के भक्ति में लीन होते है, पराए से भी अपनो सा बर्ताव, उनका बात बात पर यूं गुरु बुलाना कुछ अलग ठाठ लगता है। मैं बनारस को इतनी बार दीदार कर चुकी के अब लगता है, मुझे तुमसे भी ज्यादा प्यार बनारस से हो गया है। और हां तुम मेरे लिए दुपट्टा खरीद कर जरूर देना वहां से। 


              सबकी बात कर ली और रही बात बनारस के खाने की, चाय, ये नाम कितना सही लगता है ना, एक ग्लास पी लो दिन अच्छा हो जाता है, कॉफी में वो मजा कहां जो की चाय के जायके में होता है। और रही बात पान की ये सब जानते है की बनारसी पान कितना लजीज होता है, में पान तो जरूर खाऊंगी और तुम भी खाना, हम रास्ते पर पाओ - भाजी, पानी-पूरी, जलेबी, कचौरी सब खायेंगे। 


नए मिजाज शहर में घूम लिए थोड़े पुराने में तो आओ, क्यूं की जो पुराने में होता है वो नई में कहां। तुम मेरी आंखों में एक बार झांक कर देखो तुम्हें बनारस ही नजर आएगा, क्यूं की वो मेरी आंखों में बस चुका है, मेरा तो जी कर रहा अब घर ही ना जाऊं रात भर बनारस के पहलू में बैठी रहूं क्योंकि में उसका महबूब हूं तो वो मेरी पहली मोहब्बत है ना,  

     यहां के हर घाट का एक दास्तान है, इसकी हर गलियों में इश्क बहता है, पर इश्क हमारे नसीब में कहां, क्यों की तुम्हारा हाथ पकड़ के बनारस घूमना वो मेरा एक खूबसूरत ख्वाब था। 

 " एक प्रेम कहानी पूरा होकर भी अधूरा रह गया,

में सुकून सा घाटों पर बैठी रही, वो लहरों सा छू कर चला गया " 

       ये कविता अपने आप में ही खास है, क्यूं की बनारस में ऐसा ही होता, हर हीर को अपना रांझा और हर कुंदन को अपनी जोया कभी नहीं मिलती।।


अंत में मेरे कुछ खास अल्फाज बनारस के नाम...


तुम कैफे की कॉफी, मैं अस्सी की चाय सा!!

विश्वनाथ के जैसे तुम, मैं तुम्हें अर्पित न्यून अक्षत सा!!

दिलकश किरदार हो तुम, मैं तुम्हारी बेनाम लेखिका सा!!

तुम्हें पा सकूं उतनी मजाल कहां, मैं ठहरी उस कहानी का कुंदन सा!!

कितना तुम्हें देखा करूं, तुम सुकून शाम की आरती सा!!

कितना लिखूं उसके बारे में!!

वो तो फिर भी चुप हैं, क्यों की पाक सी इश्क़ है मेरा बनारस सा!! 



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