दो पराठे

दो पराठे

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जीवन के इस आपा-धापी में खाने की किसे फ़ुरसत है लोग तो सिर्फ पेट भरते हैं। प्रेम से भोजन किसी को नसीब नहीं होता। सबको फ़िक्र रहती पैसे की, जिसके पीछे सारी दुनिया भाग रही है।

गर् भोजन को प्रेम-पूर्वक चबाकर खाया जाये तो पाचन तन्त्र भी ठीक और दुरुस्त रहता है।

स्वस्थ्य से बढ़कर दुनिया में कुछ नहीं होता है। पैसे कमा लो खूब और सारा पैसा डॉक्टर को दे दो ख़ुद के इलाज में तो क्या फायदा ऐसे कमाई का !

भोजन शरीर के लिए वही लाभदायक होता है जो रुचिकर हो, जितना आराम से पचा सको उतना ही अन्न ग्रहण करो फिर देखना हमेशा तन निरोग रहेगा..!

रही बात अपनी भाग कर देख लिया मैंने मगर भोजन आज भी अपनी पसन्द का करता हूँ..

दो पराठे से मतलब रहता है सुबह हो चाहे रात। साथ में जो भी मिल जाये क़िस्मत को यही मंज़ूर है, समझकर खा लेता हूँ ..!

रोटी कब छूटी मेरी हमें याद नहीं मगर घर के आलावा कहीं रोटी मिली तो खा लेता हूँ..!

जीवन साथी का प्यार समझ लो या उसका मेरी पसन्द की कद्र कह लो बनाने से कभी उबती नहीं..!

पराठा मेरा दोस्त सा बन गया है थाली में दिखते ही मन को तसल्ली मिलती है।

दुनिया में और है भी क्या.. खा लो पहन लो कुछ साथ जाना नहीं है। हजार दो हजार रुकना हो तो चिंता करना जायज़ है मगर जब जाना ही है सब छोड़ छोड़कर तो इस मायाजाल में फंसना ही क्यूँ..!

ज़िन्दगी जब मेरी है पसन्द भी अपनी होनी चाहिए

मेरे गुरु तुम चार्वाक को समझो जो एक महान् दार्शनिक थे..

या जीवेत सुखम् जीवेत ऋणं कृत्वा घृतम् पिवेत्..

अर्थात जब तक जिओ सुख पूर्वक जिओ चिंता की क्या बात है। एक बार दुनिया से जाने के बाद दोबारा कोई यहाँ लौट कर नहीं आता है।



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