Dear Diary Day 2
Dear Diary Day 2


डिअर डायरी , २६.०३.२०२०
मैं एक बैंकर हूँ . और बैंकों में इस वक्त कर्मचारियों को रोटेशन की सुविधा दी जा रही है . हम जाना नहीं चाहें , तब भी ये हमारी ड्यूटी है . जहाँ कुछ लोगों से घर पर वक्त नहीं कट रहा है , तो वहीँ कुछ लोग बैंक आना चाह रहे थे . वो ये नहीं समझ पा रहे थे कि ये रोटेशन उनकी सुरक्षा के लिए दिया जा रहा है. मैं जब भी घर आती हूँ ऑफिस से , अपने सारे कपड़े बदलकर फिर से नहाने जाती हूँ . इसके बाद भी सारा दिन अपने माँ -पापा को हग करने ( गले लगाने ) में हिचकिचाती हूँ . हर दिन से एक और नए दिन का सफर शुरू होता है जिसमे मुझे फिर से १४ दिन जोड़ने होते हैं . जिसे सोशल डिस्टन्सिंग कहा जा रहा है . शुरू के एक दो दिन मुझे भी समझ नहीं आया था , लेकिन फिर बात समझ में आने लगी
. फ़िलहाल हालात ये हैं कि हम सब चाह कर भी एक दूसरे को गले लगाने को तरस रहे हैं . वजह है ; मैं हर दिन पता नहीं कितने लोगों के संपर्क में आती हूँ और मुझे संक्रमित होने का खतरा है . न्यूज़ चैनल देखकर दहशत बढ़ती जाती है . सहम सहम कर एक एक दिन गुज़र रहा है क्यूंकि कोरोना पॉजिटिव आप एक दिन में नहीं आओगे , ये आपकी १४ दिन की एक्टिविटीज़ पर निर्भर करेगा . जो कोरोना पॉजिटिव हैं , उन्होंने जैसे इसे स्वीकार कर लिया है कि अब वो नहीं बचेंगे . महाराष्ट्र में एक नर्स का सुसाइड इस तर्क की व्यापकता को दर्शाता है . भारत हर तरह से वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन द्वारा घोषित इस महामारी से लड़ने की कोशिश में लगा है .लेकिन हमें खुद भी नहीं मालूम कि इस जैविक हथियार से कैसे लड़ें ?