डिअर डायरी डे 15
डिअर डायरी डे 15


डिअर डायरी डे 15 08.04.2020
हेलो स्वीटहार्ट ,
अब देखो जिसको आप अपने दिल का दर्द रोज़ सुनाते हो, उससे तो प्यार हो ही जाना है। पेशेंट्स फिलहाल बढ़ ही रहे हैं, लोग बदसलूकी भी कर रहे हैं, और हम जैसे कुछ लोग घरों में बैठकर बस न्यूज़ सुन रहे हैं, रामायण देख रहे हैं। सजेस्ट करुँगी कि महाभारत न देखना, क्योंकि फिर कहीं शकुनि वाला पात्र न अपना लो आप जीवन में। हाहा। वैसे रामायण में भी रावण था, ऐसे तो है न ? हाँ, था लेकिन महाभारत जितनी पॉलिटिक्स तो नहीं थी न ? देख लो यार आप फिर। पता चला लॉक डाउन कि बाद हमको बिसात बिछाने वालों से बात करनी पड़ रही है।
आज की बात का टॉपिक न रामायण है न महाभारत है, और कोरोना तो बिलकुल भी नहीं है। आज ज़हन में "इश्क " है। अच्छा, तो फिर इश्क क्या है ? देखो, इश्क शब्द ही इसलिए लिया है मैंने कि आप उसको "प्यार " तो कतई न समझें। क्यूंकि आधे समझदार लोग तो कहते है, कि मम्मी पापा भाई बहन दोस्त सभी को "आई लव यू " कह दो, काम ख़तम। और हम कहते भी हैं, "लव यू माँ " , "लव यू पापा ", वो ये जो हम सब अल्ट्रा मॉडर्न हो गए हैं न, उसी की वजह से कोरोना हम पर हावी हो गया।
इस टॉपिक पर वापस आएंगे। अभी फ़िलहाल मुझे इंडियन कल्चर याद आ गया हैं। थोड़ा सा जान लेते हैं उसको भी। भारतीय संस्कृति की अगर मैं बात करूँ तो क्या आता हैं ज़हन में ? साड़ी पहने हुई एयर होस्टेस और नमस्ते की मुद्रा में जुड़े उनके दोनों हाथ, दुल्हन के जोड़े में शर्म से लाल सोलह सिंगार किये हुए एक कन्या, कुर्ते पाजामे में मुस्कराहट बिखेरते घर के पुरुष , सोच तो सही रहे हो आप वैसे।
इसी को विस्तृत करते हैं। हमारी संस्कृति में घर की औरत रसोई में नहा धोकर ही प्रवेश करती हैं, हमारी परदादी सफ़ेद कलफ लगी धोती में रसोई के कार्य करती थीं, और यदि वो धोती किसी अछूत से छू जाती तो वो बड़बड़ाती हुई जाती और बदल कर आतीं। यही नहीं घर में जो नहाया हुआ नहीं होता था, वो भी उनको छू नहीं सकता था। ये सब वही कुछ हैं न जो हम आज कोरोना से बचने के लिए कर रहे हैं।
जब मैंने कहा कि नहाकर ही दिनचर्या का शुभारम्भ होता था, तो उसमे पुरुष वर्ग भी आ जाता है. फिर परिवार कि सभी सदस्य प्रेमपूर्वक भोजन करते थे। इसके बाद पुरुष नौकरी करने चले जाते थे, और जब वे घर के अंदर आते थे , तब वे दोबारा स्नान कर कुरता- पजामा पहनते थे। मतलब जो कुछ आप बाहर पहन कर गए थे, उसे तुरंत अपने शरीर से अलग कर देना है, हाँ तब की सोच ये थी कि वहाँ आप पता नहीं किस किस से मिले होंगे, अतः घर आकर स्वच्छ कपड़े पहनिए और सो जाइये। अब देखिए आज 2020 में हम फिर से वही कर रहे हैं क्यूंकि ये कोरोना का इलाज है अब, लौट आये हैं हम फिर से भारतीय संस्कृति की ओर. इसके अतिरिक्त नमस्ते की तरफ लौट आये हैं हम वापस। पहले कहते थे न ,"हेलो " , हाथ मिलाकर। आज कल क्या कह रहे हैं सर /मैडम ?
अब सोचो जो हम न बदलते तो कोरोना तो बस आकर निकल जाता। हमें छू भी न सकता था। अब आप कहोगे इतने साफ़ सुथरे थे तो प्लेग और हैजा क्यों फैला ? तो हुज़ूर , वो जानवरों से फैला। इस बार तो मनुष्य ही 'केरियर' बनकर घूम रहा है।
चलो कोई नहीं , अब तो एक परिस्थिति में हम, और उससे यकीनन लड़ेंगे और जीतेंगे भी। अब वो बैक टू द टॉपिक "इश्क ".
पहले 'इश्क ' एक चेहरे पर ठहर जाता था। है न ? अब ये आजकल वाला जो इश्क है, ये एक चेहरे पर क्यों नहीं टिक रहा है ? और, मज़े की बात तो यह है कि हर दूसरे - तीसरे से बेशुमार हुआ जा रहा है। ' उससे भी था यार , इससे भी है , और उसको भी चाहने लगा हूँ अब।' आपकी इंटेंस फीलिंग हर एक के लिए क्यों आ रही हैं, ज़रा सोचें इस पर। सिर्फ लड़के ही नहीं लड़कियाँ भी। एक 'इश्क ' ख़त्म कर नहीं पाते हो , दूसरे में 'इंटरेस्टेड ' हो जाते हो। जवाब तो खैर , सभी के पास है। बहुत सीधा सा जवाब है : "कमी निकालने के आदत और दूसरे में वो कमी नहीं दिखती आपको जिसको अब आप ला रहे हो अपनी ज़िन्दगी में।" जैसे हर पुरानी हो चुकी चीज़ को बदलने की आदत। इसलिए तो रिश्ते ख़त्म हो रहे हैं , कॉम्प्लिकेटेड से नए रिश्ते बन रहे हैं। कॉम्प्लिकेटेड मतलब समझते हैं न ? भाभी का देवर से प्यार, पति का किसी नयी लड़की से रिश्ता , 2 -2 बॉयफ्रेंड को मैनेज करती एक लड़की। आपको नहीं लगता थोड़ा सा शरीफ होने की ज़रूरत है। आपको, मुझे, हम सभी को...कम से कम यहाँ ईमानदार होने की ज़रूरत है।
नमस्ते।
कल मिलते हैं।
विद अ पॉजिटिव थॉट ऑफ़ गेटिंग " नो वन एस कोरोना पॉज़िटिव "