Apoorva Singh

Children Stories

4.4  

Apoorva Singh

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चलते जा...!

चलते जा...!

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"रिदिमा!! उठो!! खड़ी हो! और फिर से दौड़ो रेस में।गिरकर उठना तुम्हे बखूबी आता है बस अपने आत्मविश्वास पर कायम रहो और उठो!!" ये शब्द रिदिमा के कोच मिस्टर जयदीप ठाकुर जी है जो रिदिमा को दौड़ का अभ्यास करवा रहे हैं।

रिदिमा एक सत्रह वर्ष की कमसिन लड़की जो राज्य स्तर पर आयोजित होने वाली दौड़ प्रतियोगिता में भाग ले रही है।इस समय वो एक एकेडमी में अपनी कोच की निगरानी में दौड़ने का अभ्यास कर रही है।जयदीप के शब्दों को सुन कर रिदिमा का हौंसला बढ़ता है।वो अपने आस पास देखती है उसके साथ के कुछ छात्र दौड़ में आगे निकल चुके है।वो अपनी आंखे बंद करती है और अपने पिता को याद करती है, " उठो रिदिमा उठो दौड़ो! बेटे तुम ये कर सकती हो "

रख हौंसला और बढ़ा कदम, चलते जा बस चलते जा !!

मिले कांटे गर राह में तो समझना कि ये फूल है!!

लेकिन उन्हें कांटे समझ कर रुकना तेरी भूल है।!

इन्हीं कांटो को हटाने के लिए, चलते जा बस चलते जा..!"

अपने पिता की ये हौंसले भरी पंक्तियां याद कर रिदिमा उठती है और दौड़ पड़ती है।उम्मीद का दामन थाम कर दौड़ लगा देती है।रिदिमा अपनी पूरी ताकत लगा देती है अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में।उसके चेहरे से पसीने के बूंदे टपकने लगती है।हाथ पैर शरीर पूर्ण रूप से पसीने से भीग जाता है।रिदिमा रुकती नहीं है और उन्हीं शब्दों को मन में दोहराते हुए आगे बढ़ती है।धीरे धीरे एक एक को पीछे छोड़ते हुए रिदिमा आगे बढ़ती है लेकिन अंत में  दौड़ते हुए दूसरा स्थान प्राप्त कर लेती है।कोच सीटी बजाते है जिससे सभी रुक जाते है और आकर कोच के पास खड़े हो जाते हैं।

कोच : "वेलडन रिदिमा! काफी अच्छा कर रही हो।बस इसी तरह हिम्मत मत हारना और आगे बढ़ना!"उन्होंने रिदिमा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।उनकी इस हरकत पर उनका एक शिष्य मनिक चिढ़ जाता है वो खुद से मन ही मन कहता है मै प्रथम आया फिर भी कोच सर ने मुझसे कुछ नहीं कहा बल्कि हर बार की तरह रिदिमा को ही मुझसे पहले सराहा।उसके मन में रिदिमा के लिए शुरू से ही अच्छे विचार नहीं है।वो रिदिमा से कुछ नहीं कहता है लेकिन मन ही मन उससे बहुत कुढ़ता है।

कोच सर के आशीष देने पर रिदिमा बस हल्का सा मुस्कुराती है और वहां से अपने हॉस्टल में चली जाती है।वहां जाकर वो फ्रेश हो हाथ मुंह धुलती है और बाहर अपने बिस्तर पर आकर बैठ जाती है।और सहर्ष ही उसकी यादें उसे अतीत में ले जाती है।

रिदिमा एक गोल मटोल करीब बारह वर्ष की लड़की जो पढ़ने में मेधावी छात्रा थी।पढ़ने के अलावा उसका व्यवहार भी सबके साथ सहज रहता था।अगर कोई कमी थीं उसके साथ तो वो था उसका गोल मटोल होना।जो उसकी सभी खूबियों पर भारी पड़ता था। ऐसे ही एक दिन उसके स्कूल में वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा था जिसमें पूरे स्कूल के छात्र छात्राएं उत्साह पूर्वक भाग ले रहे थे।सभी को देख कर रिदिमा के मन में भी प्रतियोगिता में भाग लेने का विचार कौंधा।और वो उस दिन जा पहुंची थी कॉलेज फंक्शन में भाग लेने के लिए अपना नाम लिखाने।

"हे हे हे ये देखो अब खेल कूद में ये गोल मटोल भी भाग लेगी।"रिदिमा के एक सहपाठी ने हंसते हुए कहा।उसकी बात सुन कर उसके साथ खड़े बाकी के छात्र हंसने लगते है।तब तक उनमें से दूसरा सहपाठी कहता है तो" क्या हुआ दोस्त अरे ये प्रतियोगिता है और इसमें भाग लेने का अधिकर सबको है।तो क्या हुआ अगर ये पहले न पहुंच पाएगी सबसे अंत में तो पहुंचेगी ही और शायद स्कूल में इसके लिए भी कोई इनाम रखा हो।क्यूंकि अंत में पहुंचना भी तो बहुत बड़ी बात है।"कहते हुए दूसरा सहपाठी ठहाके लगा कर हंसने लगा।

सहपाठियो की वो व्यंग भरी बाते सुन कर रिदिमा के मन को बहुत ठेस पहुंची थी।वो दुखी होकर वहां से चली आयी थी।उसके कानों में सहपाठियों द्वारा किया गया व्यवहार, उनके द्वारा उसका उसका मजाक बनाया जाना एक एक शब्द ज्यूं के त्यूं गूंज रहे थे। रिदिमा भी घर आकर सीढ़ियों का एक कोना पकड़ कर आम बच्चो की तरह बैठ गई थी।घंटे दो घंटे बाद भी जब रिदिमा बाहर नहीं आई थी तब उसके पिताजी उसे ढूंढ़ते हुए उसके पास पहुंचे थे।

रिदिमा ने फूट फूट कर रोते हुए स्कूल में घटित हुई सारी घटना उन्हें कह सुनाई थी तब उसके पिता ने उससे कहा था...

रख हौंसला और बढ़ा कदम, चलते जा बस चलते जा !!

मिले कांटे गर राह में तो समझना कि ये फूल है!!

लेकिन उन्हें कांटे समझ कर रुकना तेरी भूल है।!

इन्हीं कांटो को हटाने के लिए, चलते जा बस चलते जा..!

जिसे सुन कर रिदिमा ने मन ही मन निश्चय किया था कि वो अपना करियर खेल के क्षेत्र में ही बनाएगी।रिदिमा वहां से उठती है दृढ़ निश्चय के साथ उसके लिए सबसे कठिन दौड़ प्रतियोगिता में अपना नाम लिखा देती है।एवम् पूरे मन से तैयारी करने लगती है।सुबह शाम दौड़ लगाना,जो काम करने में उसे आलस आता था वही काम करना शुरू करना( पोंछा लगाना ज्यादा चलने फिरने का काम,सीढ़ियां चढ़ ना उतरना, कूदना फांदना), फिट रहने के लिए कई तरह के नुस्खे आजमाना सभी कुछ तो शुरू कर दिया था उसने।शुरुआत में उसे कितनी परेशानी हुई थी।दर्द की वजह घंटो अपने पैर पकड़ बैठती थी।धीरे धीरे सब उसकी आदत में आ गया।वो याद करती है वो दिन जब उसने पहली बार किसी प्रतियोगिता में भाग लिया था और वो लास्ट से फोर्थ यानी थर्ड प्लेस पर आई थी। उसे देख कर उसके सभी सहपाठी हक्के बक्के रह गए थे।उस दिन रिदिमा ने अपने कर्म से उन सभी के मुख पर तमाचा मारा था।और वो समझ पाई थी कि अपने कर्म से अपने विरोधियों को सटीक जवाब देना एक सही तरीका है।उस दिन के बाद से रिदिमा ने एक एक कर कई प्रतियोताओ में हिस्सा लिया और आज वो गोल मटोल रिदिमा फिट होकर अपनी मेहनत से राज्य स्तरीय प्रतियोगिता की तैयारी कर रही है।रिदिमा अपने यादों के झरोखे से बाहर आती है और वर्तमान के धरातल पर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करने लगती है।

"हे रिदिमा! काफी अच्छा काम किया तुमने। नॉट बेड।गिरकर भी दूसरे स्थान तक पहुंचना काबिल ए तारीफ़ है।"रिदिमा के ही एक सहपाठी मनिक ने आते हुए उससे कहा।

मनिक की बात सुन कर जवाब में रिदिमा मुस्कुरा देती है और कहती है "हां ये तब जब किसी ने मुझे छल से गिरा दिया था।" कह रिदिमा ने तीखेपन से मनिक की ओर देखा।जिसे देख मनिक सकपका जाता है और प्रश्न बदल कहता है..!

"वैसे रिदिमा तुम्हारी तैयारी अच्छी चल रही है न अच्छे से करना क्यूंकि इस बार तो प्रतियोगिता में मै भी तुम्हारे सामने रहूंगा।वो भी एक प्रतिद्वंदी के रूप में"कहते हुए मनिक मुस्कुराने लगता है।

"हां बिल्कुल गलती एक बार होती है बार बार थोड़े ही मनिक।"कह कर रिदिमा वहां से ग्राउंड में पहुंच जाती है।और अभ्यास करने लगती है।कोच सर की गाइडेंस और अपनी लगन से रिदिमा जम कर अभ्यास करती है।धीरे धीरे प्रतियोगिता का दिन भी आ जाता है।रिदिमा मनिक दोनों ही कोच सर के साथ प्रतियोगिता स्थल पर जाने के लिए निकल जाते हैं।और करीब आधे घंटे में वहां पहुंच जाते है।

प्रतियोगिता स्थल एक बहुत बड़े ग्राउंड में आयोजित होता है।जिसके आसपास काफी लोग होते है।अन्य जिलों से प्रतियोगी भी वहां हिस्सा लेने के लिए आए हुए है।जिन्हें देख रिदिमा कुछ क्षण तो सकुचा जाती है।उसके चेहरे पर तनाव देख कोच सर कहते है, " रिदिमा, तुम्हे घबराना नहीं है ये सभी तो रास्ते में आने वाली रुकावटें है और इन रुकावटों से जूझे बगैर कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता।ये समझो कि ये रुकावटें हमारे लिए एक टर्निंग प्वाइंट है जहां से आगे बढ़ने के लिए चला गया हमारा एक कदम हमे कहां से कहां ले जा सकता है।"

रिदिमा कोच की बातो का आशय समझ कर एक लंबी सांस लेती है और सकारात्मकता रख सभी प्रतियोगियों की तैयारी देखने लगती है।समय गुजरता है और रिदिमा मनिक एवम् अन्य प्रतियोगी सभी फील्ड में दौड़ने के लिए तैयार हो दौड़ शुरू करने के लिए निर्देश का इंतजार कर रहे हैं।

सीटी बजती है और सभी दौड़ना शुरू कर देते है।मनिक जो रिदिमा के पास ही होता है वो रिदिमा को देखता है और पिछली बार की तरह इस बार भी वो रिदिमा को धक्का देने की कोशिश करता है और आगे निकल जाता है।लेकिन इस बार रिदिमा पहले से सतर्क होती है सो उसकी कोशिश को नाकाम कर आगे बढ़ जाती है।

इस बार तुम मुझे नहीं रोक पाओगे मनिक।मुझे जीतना है जवाब देना है उन सभी को अपने कर्म द्वारा जिन्होंने कभी मुझे देख मेरा मजाक बनाया था।।।कह रिदिमा और तेज दौड़ती है और 5000 मीटर की दौड़ प्रतियोगिता में मनिक और बाकी सभी को पछाड़ कर अव्वल आती है।

पुरस्कार लेते समय वो सभी को संबोधित कर कहती है..

रख हौंसला और बढ़ा कदम, चलते जा बस चलते जा !!

मिले कांटे गर राह में तो समझना कि ये फूल है!!

लेकिन उन्हें कांटे समझ कर रुकना तेरी भूल है।!

इन्हीं कांटो को हटाने के लिए, चलते जा बस चलते जा..!



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