पुनीत श्रीवास्तव

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पुनीत श्रीवास्तव

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बुद्ध इंटरमीडिएट कॉलेज कुशीनगर

बुद्ध इंटरमीडिएट कॉलेज कुशीनगर

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अपने अपने स्कूलों से, जिनमें दस साल कम से कम पढ़े हों ,निकल के नौंवी से आगे की पढ़ाई की कसयां की इकलौती जगह ,बुद्ध इंटरमीडिएट कॉलेज कुशीनगर उत्तर प्रदेश।कसयां के आठवी तक के उस वक्त के स्कूल गिने चुने ही थे ,सरस्वती ,राहुल ,हाइडिल,मिडिल ,बालबाड़ी लड़कियों का बिना वेतन की मास्टरनियों का मालती पाण्डे ,नौंवी का सबको इंतजार था पुराने मास्टरों आचार्य जी लोगों से स्कूल से मुक्ति मिले पर जिसे मुक्ति समझते थे वो कितना अपना था बाद में समझ आया।

बड़े भाई लोग पढ़ चुके थे बुद्व इंटरमीडिएट कॉलेज में तो ढेरों कहानियां भी सुनी थी।वहाँ हाफ पैंट नही चलेगा,साइकिल से जाना पड़ेगा स्कूल का टेम्पू नही मिलेगा ,लड़कों के गैंग हैं झुंगवा विशुनपुरा के लड़कों से दूर रहना है ,किसी से उलझना नही है बड़ी मारपीट होती है ,पटेल जी शुक्ला जी चंद जी मिलेंगे।

पटेल जी बहुत अनुशासन वाले हैं ,चंद जी और शुक्ला जी तो प्यार से पढाते हैं (ये लिखते हुए याद आ रहा है अभी फेसबुक मित्र हैं पटेल सर और चंद सर माफ करिएगा कुछ गलत लिखा जाए तो )

खैर फार्म भराया नौंवी का ,इसी बीच बड़े भाई साहब के साथ एक दो बार जाना हुआ कॉलेज कहानियां दिमाग मे तब भी चल रही थीं झुंगवा विशुनपुरा ........विक्की पुस्तक केंद्र था एक वहाँ एक कैमिल का फाउंडेशन पेन खरीदे आज भी है क्या ही उम्र रही होगी !तेरह या चौदह 

कितना अजीब था सब ,सब अनजाने अपरिचित साथ के सरस्वती के लड़को को छोड़ के बस एक आसरा था हिम्मत की एक वजह बगल के डिग्री कॉलेज में भाई पढ़ता है और ट्रम्प का एक्का 

डॉ पी एन श्रीवास्तव प्रवक्ता ,जंतु विज्ञान विभाग ।बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुशीनगरप्रवेश परीक्षा हुई ,बड़का क्लास आर्ट वाली (लंका के बगल में)रिजल्ट कुछ दिनों बाद दो सेक्शन हुए नौ क और ख ।क में मेरिट से लड़कियाँ शामिल (मेरिट हो न हो )

ख में बाकी ज्ञानी जो ज्ञानी तो बहुत थे पर प्रवेश परीक्षा के सवाल समझ नहीं पाए। ।हम नौ क मेंथे बात होशियार होने की नही है बस एक आध नंबर से रह गए ख में जाते जाते 

लेकिन क और ख का अंतर व्यवहार में दिखता था सत्ते पे सत्ता देखें हैं अमिताभ वाली 

हेमा मालिनी के आने से पहले वाले सात भाई नौ ख था हेमा मालिनी के आने के बाद वाले नौ क 

(ख में पढ़े मित्र बुरा नही मानेंगे ये उम्मीद है क्योंकि यही सच है जैसे सूरज पूरब से निकलता है )

लड़कियों के साथ पढ़ने वाले सभ्यता से रहते हैं ये शायद पहली सीख थी कॉलेज की 

स्कूल तो हमारा सरस्वती शिशु मंदिर रहा वहां तो वैसे भी भईया बहन शुरू से था ,सभ्य शुरू से ही रहे हम सब सरस्वती वाले क्लास में भीड़ ,धीरे धीरे घुलना मिलना दोस्ती यारी एक स्कूल से दूसरे स्कूल वालों की उसी में झुंगवा विशुनपुरा वाले भी धर्मेंद्र ,अभिषेक ,संजय ,विनय ,अजीत ,

विश्वप्रकाश, जयशंकर ,सिद्धार्थ,नवीन ,पुनीत मिश्रा, दिलीप ,अजय -रामेश्वर ,सईदुजम्मा,विमल पटेल,मार्कण्डेय पटेल और भी दूसरे स्कूलों के थे बाद में धीरे धीरे दोस्त बनते गये 

चलती रही क्लासें ,बनती रही कहानियां लंच में लाल चटनी के साथ समोसे साइकिल से आना जानापटेल सर ,शुक्ला सर और चंद सर के साथ साथ शिव दत्त नारायण सिंह सर की डांट और डंडे की छत्र छाया में !!

नौ क के बाद हम गये दस क में लगे कहानियां खुद सुनाने नए रंग रूटों को पटेल जी शुक्ला जी और चंद जी की और हाँ झुंगवा और विशुनपुरा के लड़कों से जरा उलझना मत .....।



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