बरसात की सुबह
बरसात की सुबह
टीवी पर चार दिनों से चेतावनी देख- देख रीमा का रोम -रोम सिहर जा रहा था।भीषण तूफ़ान आने वाला है…तेज हवा के साथ बारिश की चेतावनी को देखते हुए वह सारे इंतज़ाम कर ली थी टार्च,दियासलाई,मोमबत्ती, खाने का सामान सब कुछ जुटा लिया था…पता नहीं मौसम कब तक ख़राब रहे।
सुबह -सुबह खिड़की से आती ठंडी हवा के झोंके बदन पर सिहरन पैदा कर रहे थे।हल्की -हल्की बारिश होने लगी थी ।लेटे- लेटे खिड़की से झांक कर देखी मेघों ने आसमान पर डेरा जमा लिया था।फ़ाहे से उड़ते बादलों को इधर -उधर कुछ जानी पहचानी सी आकृतियाँ बनाते देख रीमा गुनगुनाने लगी…जा जा रे बदरा जा रे! उड़न खटोले पर पी को लेकर आ रे!
रंजन की बहुत याद आ रही थी जिसकी पोस्टिंग कटक हो गई थी।रीमा बादलों संग उड़कर उस दिन को याद करने लगी…ऐसे ही एक तूफ़ान की निगरानी के लिए दोनों की पोस्टिंग उड़ीसा के बालासोर में हुई थी।जहाँ रीमा पहली पोस्टिंग और काम के जोश में रात भर तेज बरसात में समुद्र किनारे ड्यूटी कर रही थी और एक लहर के चपेट में आ गई थी…रंजन ने जान पर खेल कर उसकी जान बचाई थी…।उस बरसात की रात का अनजाना बलिष्ठ बाँहों का घेरा आज जीवन भर के गले का हार बन चुका था।
दरवाज़े की घंटी से तंद्रा टूटी…।
“कौन है?”रीमा ने पूछा।
“दूध वाला”
दरवाज़ा खोल वह बरतन लेने किचन में जाने लगी कि पीछे से किसी ने कमर में हाथ डालकर…रंजन को इस वक्त अचानक देख रीमा का मन मयूर नाचने लगा और दोनों प्यार के बरसात में भीगने लगे।