बहुत उड़ने लगे हो
बहुत उड़ने लगे हो
सुबह के 7 बजे थे वर्तिका जिम से लौट कर आईं तो उन्हें मेज पर कुछ पेपर्स रखे दिखे । उन्होंने पेपर्स पर सरसरी नजर डाली और नाराजगी भरे स्वर में बोलीं, ‘चंदन ये क्या नया नाटक है …बहुत उड़ने लगे हो.... ‘
‘’तुमने पढ़ा नहीं, मुझे एक गाड़ी की जरूरत है, ये उसी का फार्म है, जिसमें तुमको साइन करना है ।‘’
“मेरे पास न ही अपनी कोई प्रॉपर्टी है, न ही बैंक बैलेंस ...इसलिये मुझे हर चीज के लिये तुम्हारी मदद लेनी पड़ती है ।‘’
“अब गाड़ी किस लिये चाहिये?’’
‘मुझे अपने लिये नहीं चाहिये, मैं तो बाइक में ही खुश हूं …वह जो हम लोगों का NGO ‘सहोदर ‘ है, उसके लिये चाहिये ।‘
“क्यों बहाना बना रहे हो, साफ साफ कहो कि...आवारागर्दी के लिये अब गाड़ी भी चाहिये ‘’। जब से वहां अनाथ और बेसहारा लड़कियों को भी रखा जाने लगा है, तभी से वर्तिका के मन में यह बात बैठ गई है कि वहां पर लड़कियों की सप्लाई का धंधा किया जा रहा है ...‘’सहोदर’ के नाम पर जो हो रहा है, मैं अच्छी तरह जानती हूं ।‘’
चंदन नाराज होकर बोले, ’क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो ... मैं कहीं नौकरी करता तो क्या इतने साल में एक गाड़ी भी न खरीद पाता ? ऐसा लगता है कि आपके साथ शादी नहीं मैंने कोई अपराध किया है, जिसकी वजह से मुझे छोटी छोटी बातों पर दिन भर जलील करती रहती हो । “
‘कितनी गंदी सोच है तुम्हारी ‘... ऐसा कुछ भी नहीं है ‘
वर्तिका ने कागज फाड़ कर हवा में लहरा दिया ….
“बस, तुम तो चुप ही रहो ...... मेरा मुंह मत खुलवाओ नहीं तो वहां का काला चिट्ठा खोल कर रख दूंगीं।
वृद्धाश्रम के नाम पर जो लड़कियों का गंदा खेल चल रहा है, जिस दिन पुलिस की जानकारी में आया, सबके सब हवालात में नजर आओगे ।
“हद कर दी .... तुम्हें मुझसे दुश्मनी है .... मुझे भला बुरा कहो ...इस तरह के इल्जाम क्यों लगा रही हो ....’’
“क्योंकि, यही सच है ‘’... वह चीख कर बोली थी ।
वह सोचने लगा ... बहुत हुआ ... अब वह आदर्श पति का मुखौटा उतार फेकेगा और घर छोड़ कर सहोदर में ही जाकर रहने लगेगा।
उसकी आंखों के सामने नाजुक सी घर से भागी हुई लीला का प्यारा सा चेहरा नाच उठा था, जिसके मां बाप उसे अपनाने को ही नहीं तैयार थे। छोटी सी उम्र में लड़कियों की नादानी और नासमझी सारे जीवन को अभिशाप बना कर रख देती है.... ऐसी ही लड़कियों की वजह से वर्तिका को सहोदर आंखों में खटकता है ।
वैसे वर्तिका कुछ हद् तक सही है क्योंकि लड़कियों के वहां रहने से माहौल तो रंगीन हो उठा है। हंसी मजाक छेड़छाड़ और चुहलबाजी की वजह से वहां जाकर मजा तो आता है। आंखें भी सिक जाती हैं। बेचारी कमसिन लड़कियां..
परंतु मन ही मन सोचने लगा कि यह रईसों वाली ऐश भला कहां मिलेगी। यदि सरकारी एड मिल जाये तो ऐश हो जाये, उसकी आंखों के सामने खुरदुरा कंबल का बिस्तर और सूखी दाल रोटी तैर उठी वह आंख बंद कर अपने गुस्से को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था .... तभी बेटी वन्या कमरे में आई
‘डैड, आर यू ओके ...
“यस, माई डियर ‘’
‘नो, डैड समथिंग रांग’
“आज उज्ज्वल भाई का बर्थ डे है ....आपने विश नहीं किया । “
“ओह, सॉरी …रियली मैं भूल गया था । “
उन्होंने उज्ज्वल को फॉर्मल तरीके से विश किया और तैयार होकर घर से निकलने लगे तो वन्या बोली, ‘डैड, ब्रेकफास्ट तो कर लो ‘
“ मैंने कर लिया है । “
वन्या उनके पीछे भागती हुई आई, ‘‘डैड, आज मॉम ने भाई के लिये सरप्राइज पार्टी दी है, इसलिये जल्दी आ जाना .... अपना नया सूट पहनना, मैं पसंद करके लाई हूं। “
वह बात करती हुई नीचे तक आ गई थी।
उनको बाइक पर देखते ही नाराज होकर बोली, ‘’डैड, इस बाइक को आप कब छोड़ोगे ? “
“माई डियर बाइक पर बैठते ही मैं जवान बन जाता हूं ... ..तेजी से फर्राटे भरने का अपना ही मजा है ‘’
“डैड, समय पर आ जाना प्लीज ....’’
वह बेटी से भला कैसे अपने मन का दर्द साझा करता .... ओके …अब उनका गुस्सा उनकी मजबूरी बन कर आंखों के रास्ते बह निकला था ....वह अपने को सामान्य करने के लिये अपने पसंदीदा जुहू बीच पर जाकर बैठ गये थे .... आखिर वर्तिका उससे क्या चाहती है.... वह उसके साथ गुलामों सा क्यों व्यवहार करती है । वह उस घड़ी को कोस रहे थे, जब उन्होंने वर्तिका के साथ शादी का निर्णय किया था और रईसी के सुनहले ख्वाब देखते हुये अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी । फिर धीरे धीरे वह उनके ऊपर हावी होती गई और घर में हंगामा न हो इसलिये वह मौन होते गये परंतु अब पानी सिर से ऊपर निकल चुका है ....
आज वर्तिका की बातों से उनके अंतर्मन को ऐसी ठेस लगी थी कि वह उससे उबर नहीं पा रहे थे। वह ‘सहोदर ‘संस्था के सदस्य थे उनके साथ कुछ और लोग भी जुड़ते चले गये थे यह संस्था बेसहारा वृद्धों और गरीब लोगों का इलाज भी करवाती है, और साथ ही उनके रहने खाने का प्रबंध भी करती थी । वहां पर बीमार लोगों को हॉस्पिटल लाने ले जाने के लिये गाड़ी की आवश्यकता पड़ती रहती थी जिसे वह अपनी ओर से देना चाहते थे । सच्ची बात तो यही थी कि सहोदर तो बहाना था ...उन्हें अपनी बड़ी गाड़ी चाहिये थी... जो वर्तिका समझ रही थी।
चंदन ने मन ही मन में निर्णय किया कि वह फिलहाल घर नहीं जायेंगे, देखते हैं कि वर्तिका उन्हें बुलाती है कि नहीं .....
वह चाहते थे कि वर्तिका उन्हें प्यार से बुलाये, उनकी मान मनुहार करे । पति का सम्मान दे ...
शाम के 5 बजे थे ...बेटी वन्या ने बार बार फोन कर उन्हें पार्टी में आने के लिये प्रॉमिस करवाया, तो उन्होंने जाने के लिये मन बनाया क्योंकि वह अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे , साथ ही इन पार्टियों में बड़े लोगों के साथ बैठ कर पीने का जो मजा है ... उसका तो वह दीवाना है .... यह सब तो उनका नाटक था, ..
आज उज्ज्वल 18 वर्ष का होने वाला था, इसलिये ग्रैण्ड पार्टी का आयोजन था । 5 स्टार होटल की पार्टी जहां जानी मानी हस्ती ‘रॉकी’ का म्यूजिक कंसर्ट था । हमेशा की तरह पार्टी शानदार थी जब उज्ज्वल ने केक काटा तो वर्तिका ने बेटे को बतौर गिफ्ट लक्जरी गाड़ी की चाभी दी । बेटे ने खुश होकर मां को अपने गले से लगा लिया ...’माई लविंग मॉम …. थैंक्स....थैंक्स.....’
आज सुबह ही उन्होंने वर्तिका से गाड़ी के लिये कहा था.... इसलिये उन्हें बेइज्जती महसूस हो रही थी ....
वह उपेक्षित महसूस करते हुये पीछे खड़े थे, गाड़ी की चाभी देखते ही उनकी आंखों में आंसू तैर उठे थे । वह चुपचाप पार्टी छोड़कर होटल से बाहर निकल कर चले गये थे । उन्होंने फोन की सिम निकाल कर फेंक दी ऐसा महसूस किया मानो उन्होंने स्वयं को इस रिश्ते से आजाद कर लिया हो ।
पार्टी अपने शबाब पर थी । शहर के गणमान्य धनी लोगों का जमावड़ा था । वर्तिका अपने मेहमानों की आवभगत में व्यस्त थीं ...आपस में जाम पर जाम टकरा रहे थे । वन्या डांस फ्लोर पर अपने दोस्तों के साथ डांस में मस्त थी तो उज्जवल अपने फ्रेंड्स के साथ बिजी था । वर्तिका के हाथ में सॉफ्ट ड्रिंक का ग्लास था परंतु बेचैन निगाहें चारों ओर पति को ढूंढ रहीं थीं, क्योंकि पहले हमेशा चंदन पार्टी के समय उनके साथ ही रहता था । आज वह पता नहीं कहां गायब हो गया था ।
उनके बिजनेस पार्टनर मि. अमोल ने उनके माथे की शिकन को पढ लिया था, ’क्या बात है वर्तिका, कुछ परेशान लग रही हो ?’’
“नो .. नो...आई एम फाइन ‘’
उनके प्रश्नों से बचने के लिये वह ‘एक्सक्यूज मी ‘कहती हुई दूसरे ग्रुप की ओर चल दी थीं ...
हमेशा पार्टी में चंदन पूरे समय उनके साथ रहते थे इसलिये आज इतनी भीड़ और गहमागहमी के बावजूद वह स्वयं को अकेला महसूस कर रहीं थीं .... पार्टी खत्म होने को थी, थोड़े से लोग ड्रिंक के साथ बिजनेस डील करने की कोशिश में डिस्कशन में बिजी थे ।
उज्ज्वल ने गाड़ी की चाभी दिखाते हुये इशारे से गाड़ी में अपने फ्रेंड्स को घुमाने के लिये पूछा तो जब तक वह ठीक से समझ कर मना करतीं वह वहां से जा चुका था ।
वर्तिका घर आते ही बिस्तर पर ढह गईं थीं, जाने क्यों आज बार बार चंदन की आंखों में जो अजनबी पन और उदासी दिखी थी उससे वह आहत हो गई थीं .... आज उनकी आंखों से नींद उनसे आंखें चुरा रही थी, वह अपने अतीत की गलियों में खो गई थी ....वह सोचने लगीं कि क्या धनवान होना भी एक अभिशाप है? उनके मन में बार बार यह प्रश्न कौंध रहा था .. वह मां पापा की इकलौती संतान थीं, एक्सीडेंट में मां के निधन के बाद वह और पापा एक दूसरे के पूरक बन बैठे थे । पापा उसकी जरूरतों का ध्यान रखते और वह उनकी .....जब वह M.B.A. कर रही थी तो उसके जीवन में परिमल आय़ा था वह साधारण परिवार से था लेकिन सपने बड़े . बड़े देखता था । उसका खिलंदड़ा स्वभाव उसे बहुत पसंद था । वह उन्हें एकटक देखा करता था ... वह गाड़ी से कॉलेज जाती, उसकी लेविस की जींस, फिट टॉप, महंगी सैंडिल और पर्स, सुंदर कटे हुये चमकते बाल, काली आंखें, सुंदर फिगर पर लाइन मारने वाले तो बहुत थे लेकिन परिमल उस पर मर मिटा था । वह रोज उससे मिलती और कॉफी के बहाने घंटों दोनों साथ गुजारते ।
मरीन ड्राइव पर समुद्र के किनारे बैठी वह समुद्र की फेनिल लहरों को निहारते हुये प्यार भरे अंदाज में बोली थी, ‘परिमल तुम्हें मालूम है कि तुम्हें देखते ही मुझे कुछ कुछ होने लगता है और मैं अपने को ही भूल जाती हूँ ‘आई लव यू परिमल ‘
परिमल ने उन्हें बाहों में भर लिया था, ’आई लव यू वर्तिका ‘ ….’उसने प्यार भरा चुम्बन उसके गालों पर अंकित कर दिया था । उन्होंने शर्मा कर अपना मुंह अपनी हथेलियों से छिपा लिया था । रोज रोज की मुलाकातों के कारण प्यार गहराता चला गया । एक दिन वह उसे अपने साथ लेकर घर आई थी ....
“पापा, ये हैं परिमल माई बेस्ट फ्रेंड.....’’
परिमल के आकर्षक चेहरे उसकी भाव भंगिमा, उसके बात व्यवहार से पापा वैभव भी आकर्षित हो उठे थे । उसका घर पर आना जाना बढ गया था ... दोनों साथ में पार्टियों में जाया करते, लांग ड्राइव, पिक्चर, थियेटर, शॉपिंग सब साथ साथ होती .... कॉलेज में तो सबको उनके प्यार के बारे में मालूम हो गया था ।
एक दिन पापा उससे बोले, ‘क्यों बर्खुरदार, तुम्हारे पापा क्या काम करते हो ? उनसे मिलवाओ, तब तो तुम दोनो की बात आगे बढे .....
“अंकल मेरे पापा तो यू.के . गये हुये हैं, जब आयेंगे तभी आपके साथ मुलाकात हो पायेगी ।‘’
‘बर्खुरदार कुछ काम धंधा भी करते हो कि बस यूं ही घूमते रहते हो...’
“अंकल मैंने अपनी कंपनी खोली है, उसी में बिजी रहता हूँ । वर्तिका नें थियेटर में आज का शो देखने के लिये कहा था, उसी बुकिंग की है । आज डिनर भी हमलोग बाहर ही करेंगें ।‘’
पापा ने गौर किया कि वह धीरे धीरे वह उनकी कंपनी के कामों में इस तरह दखलंदाजी करने लगा था कि जैसे वह ही मालिक हो । पापा ने अपने सोर्स से पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह शादीशुदा है और गांव में बीबी रहती है ....पैसे की लालच में वर्तिका को अपना शिकार बनाना चाहता है । पापा एक दिन उस पर बुरी तरह नाराज होकर बोले, ’’मैंने तय कर लिया है कि उसकी शादी के बाद सारा बिजनेस रंजन के नाम कर दूंगा .... तुम लोगों को एक पैसा नहीं दूंगा ‘’। घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया था । पापा ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की थी कि परिमल उनके लिये सही लड़का नहीं है, लेकिन वह उसके प्यार में इस कदर डूबी हुई थी कि वह कुछ समझने को नहीं तैयार थी परंतु जब पापा ने उसे बताया कि वह उसकी असलियत जान चुके हैं तो वह मुंह छिपा कर गायब हो गया, यहां तक कि उसका नंबर भी ब्लॉक कर दिया था ।
परिमल के धोखे से वह मानसिक रूप से टूट गई थी यहां तक कि वह डिप्रेशन की शिकार बन गई थी । मर्द जाति से उनका विश्वास ही उठ गया था । उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का फैसला कर लिया था .... पापा उसके डिप्रेशन के लिये खुद को जिम्मेदार समझते हुये उनकी शादी के लिये रोज के रोज एक नया रिश्ता लेकर आते । वह कभी नेट से तो कभी अपने दोस्तों के माध्यम से उनके लिये योग्य वर तलाशते ही रहते । उनके बार बार मना करने पर उनकी आंखें भीग उठतीं ...वह भावुक होकर कहते कि आज तेरी मां होतीं तो मुझे यह सब न कहना पड़ता । मेरी लाडली, शादी और परिवार जीवन को खुशनुमा बनाता है । जीवनसाथी के सान्निध्य के कारण जीवन में परिवर्तन आता है और प्यार खुशियों से झोली भर देता है जो जीवन में उन्नति करने का अवसर देता है । जीवन में सुख और संतुष्टि के साथ साथ जीवन को प्रेम मय बना देती है ।
वह पापा के रोज के रोज नये रिश्तों के लिये कभी मेहुल तो कभी सुकेश तो कभी विशाल, परेशान हो चुकी थी । इन सबमें लगभग दो वर्ष बीत गये थे । एक दिन वह ऑफिस जा रही थी तब उसका एक्सीडेंट हो गया, बाइक को बचाने के चक्कर में स्टीयरिंग से उनका माथा टकरा गया था, उनके माथे से खून निकल रहा था और वह बेहोश हो गई थी, बाइक पर चंदन थे, उन्हें भी कोहनी और घुटनों पर गहरा जख्म था परंतु अपनी परवाह न करके वह उन्हें पास के नर्सिंग होम में ले गये और उनकी फर्स्ट एड करवा कर उनके घर पहुंचा गया
था ।
लगभग 28- 30 वर्षीय सांवला सलोना 6 फीट का आकर्षक युवक उनकी आंखों में बस गया था ।उसकी मनभावन प्यारी चितवन और स्पर्श ने उनकी आंखों की नींद उड़ा दी थी । सीधा सादा सा चंदन उनके प्यार से बेफिक्र अपनी दुनिया में मस्त था । उसने बताया कि उसका बचपन अनाथालय में बीता है, ..अब वह एक प्राइवेट कंपनी में छोटी सी नौकरी और थोड़ी सी सैलरी में बहुत खुश हूं ... अपने खाली समय में एक वृद्धाश्रम से जुड़ा हुआ हूं, वहां उन लोगों की सेवा करके मुझे आत्मिक खुशी मिलती है ।
लगभग एक साल तक आपसी बातें मुलाकातें होती रहीं थी । पहली बार प्यार में धोखा खाने के बाद उन्होंने धरातल पर रह कर उसके बताये हुये अनाथालय में पूछताछ की, नौकरी की सच्चाई, सैलरी, स्वभाव कैसा है आदि आदि पता लगाने के बाद पापा की तरफ से ओ.के. मिलने के बाद बिना किसी धूम धड़ाके के कोर्ट में शादी कर ली ।वह कंपनी की मैनेजिंग डाइरेक्टर बन गई थीं । पापा बीमार रहने लगे थे, इसलिये वह घर पर ही रहते थे । उन्होंने चंदन को पुरानी नौकरी छोड़ने को कहा तो वह राजी नहीं थे परंतु जब उन्होंने अपने बड़े कारोबार का हवाला देते हुये कहा कि अब छोटी सी नौकरी सबके लिये बेइज्जती की बात होगी, तो वह राजी हो गये थे ।
चंदन के लिये ऑफिस में केबिन और उसके बाहर नेमप्लेट लगा दी गई । चंदन को मैनेजर का डेजिग्नेशन दिया गया । शुरू शुरू में तो वह प्यार के नशे में डूबी हुई क्लब, पार्टीज, लांगड्राइव, और शॉपिंग का आनंद लेने लगी । हनीपून के लिये वह योरोप ट्रिप पर भी गई ...मौजमस्ती में दो साल कब बीत गये पता ही नहीं लगा । वह प्रैग्नेंट हो गई थी । इसलिये उसकी तबियत ढीली रहने लगी थी ।
चंदन रईस परिवार में आकर अपने को राजकुमार समझ बैठा ...अब वह रईसों वाले शौक पाल बैठा था । वह अकेले ही क्लब जाने लगा । बड़ी गाड़ी, ब्राण्डेड कपड़े, डांस और ड्रिंक उसका शौक बन गया ...
ऑफिस का सारा काम.काज उसके हवाले हो गया था ... वह जुड़ुआ बच्चों की मां बन चुकी थी । उज्जवल और वन्या दो प्यारे बच्चों को पाकर उसको ऑफिस जाने का मन ही नहीं होता था यह सिलसिला तीनसाल तक चलता रहा था ।
वह कुछ दिनों से देख रही थी कि चंदन फोन पर ज्यादा बिजी रहने लगे थे । उनके हाव भाव बदल गये थे । उनके जीवन में चित्रा नाम की लड़की आ गई थी । उन्होंने ऑफिस के एकाउंट में भी गड़बड़ कर डाला था । वह घर देर से आने लगे थे और ड्रिंक भी रोज करने लगे थे । यहां तक स्थिति आ गई कि वह ड्रिंक कर बहकने भी लगे थे । जब तक वह असलियत को पूरी तरह जान समझ पाती, वह कंपनी की हालत बिगड़ चुकी थी । वह अपने को कंपनी का मालिक समझ कर मनमानी करने लगा था । उसने जी भर कर पैसे चित्रा पर लुटाये थे ।
सब कुछ जानने के बाद यह आवश्यक हो गया था कि चंदन के पंख कतर दिये जायें ....पापा की भी यही राय थी कि उन पर लगाम लगाना जरूरी है, नहीं तो यह सब सारा बिजनेस चौपट कर डालेंगें ।
बस उसी समय से उनके सारे अधिकार छीन लिये गये थे । अब ऑफिस मे उनकी स्थिति पंख विहीन पक्षी की तरह हो गई थी । कुछ ही दिनों के बाद उसे ऑफिस जाने की भी मनाही कर दी गई ।
घर जमाई की हैसियत क्या हो सकती है, उसे अब अच्छी तरह समझ में आ चुका था । प्रतिरोध स्वरूप कई बार वर्तिका के साथ उसकी बहस हो जाया करती परंतु उसके अकाट्य तर्क के सामने उसके सारे प्रतिवाद भरभरा कर चूर हो जाते थे ।
चंदन ने बार बार सॉरी बोला .... वह बहक गया था लेकिन वह नहीं पिघली और पाषाण बन कर उनसे दूर हो गई, इतना ही नहीं पल पल पर उनका अपमान करके उन्हें आत्मिक खुशी मिलती ।
उसके सभी डेविट, क्रेडिट कार्ड ब्लॉक करवा दिये गये । अब वह उन्हे जलील करने का अवसर खोजतीं ।
‘इतने दिन बाद भी टेबिल मैनर्स नहीं आये, कैसे चबड़ चबड़ करके आवाज निकाल कर खा रहे हो ‘, कहती हुई वह खाना छोड़ कर टेबिल से उठ जातीं।
“कभी तो ढंग से कपड़े पहना करो ‘’ वह कभी उनके कपड़ों तो कभी जूते चप्पल तो कभी उनके तौर तरीके पर उन्हें घुड़क कर नौकरों के सामने भी बेइज्जती करने से नहीं चूकतीं ।
यदि चंदन अपनी पसंद का कोई भी सामान लेकर आता तो वह उसका मजाक उड़ातीं। सच तो यह था कि उन्हे अब उसका उपहास उड़ाने में आनंद आता, मानो वह उससे बदला ले रही हों। वह किसी नौकर से कोमल स्वर में बात करता तो वह कहतीं, कि आखिर अपनी औकात दिखा ही दी । उसके ड्रेसिंग सेंस पर जोर जोर ठहाकें लगाती .... यदि वह कुछ स्पेशल खाने को कहता तो वह कभी भी न बनने देतीं .....
बच्चों को भी उनसे दूर रखतीं । धीरे धीरे उन दोनों के रिश्तों में मौन पसरता गया था । वह मन ही मन में अपने को कोसता कि उसकी एक गल्ती ने उसके कंपनी का मालिक बनने के ख्वाब पर पानी फेर दिया । उन्होंने वर्तिका का ध्यान आकर्षित करने के लिये अपने चेहरे पर अध्यात्म का मुखौटा लगाकर मेडिटेशन और सत्संग, कथा भागवत में अपना समय बिताना शुरू कर दिया था । परंतु वर्तिका जरा भी नहीं पसीजी ....
उनका एनरॉयड फोन बंद करवा दिया था । अब वह अपना छोटा सा पुराना फोन इस्तेमाल करने लगा था ।
उज्ज्वल अपनी मां का लाडला था वह अपनी मां के इशारे पर उसका मजाक बनाने से पीछे नहीं रहता...सबसे पहले डाइनिंग टेबल की उनकी चेयर पर बेटे उज्जवल को बिठा दिया, खाना पहले उसे सर्व किया जाता ... वह जैसे सबकी नजर में ऐरे गैरे बन गये थे, केवल बेटी वन्या उनसे बात करती थी ।
यदि वह पेपर पढ़ते होते, तो उज्ज्वल उनके हाथ से पेपर झपट लेता, यदि टी.वी. देखता होता तो रिमोट लेकर चैनल बदल देता । वह कई बार नाराज होते तो वर्तिका उन्हें ही चार बातें सुना देतीं ।
“एक दिन चंदन नाश्ता कर रहा था, उसी समय उज्जवल आ गया ... अब सबका ध्यान उज्जवल की आवभगत में लग गया, वह जोर से बोला, आपको किस बात की जल्दी है दिन भर घर में ही तो रहना है ...
उन्होंने परेशान होकर दूसरी जगह नौकरी के लिये बात की तो वर्तिका ने बहुत हंगामा करके उन्हें बेइज्जत किया था ।
चंदन घर और बच्चों से दूर हो गये थे। वह घर से सुबह निकल जाते थे और रात में लौटते ..वह ‘सहोदर’ जैसी जगह पर जाकर बहुत खुशी महसूस करते थे और वहां कुछ बड़ा आर्थिक सहयोग करके भविष्य में वहीं रहना चाहते थे। वहां पर अपना रुतबा बढ़ाना चाहते थे ।
घर में केवल वन्या से उनकी बात होती क्यों कि उनको देखते ही वह पापा कह कर उनसे लिपट जाती थी और वह उनसे बहुत प्यार करती थी।
कई बार स्त्री तन पति के सान्निध्य के लिये तड़प उठता था परंतु उनका अपना गुरूर, अभिमान, उनका ईगो, उनके चंदन के कमरे की ओर बढ़ते कदम को रोक देते। दिन पर दिन चंदन के प्रति उनकी कोमल भावनायें समाप्त होती जा रही थीं । वह चाहतीं थीं कि वह उनसे माफी मांगें, पैसे मांगे, उनके सामने हाथ पसार कर गिड़गिड़ाये, वह हो नहीं पा रहा था ....यही कारण था कि वह पति के प्रति कठोर होती जा रही थीं ।
बेड तो बहुत पहले ही अलग हो चुके थे, आगे चल कर कमरे भी अलग हो गये थे । उन्होंने पानी पीने के बहाने चंदन के कमरे की लाइट पर नजर डाली तो अंधेरा देख दिल धड़क उठा था ... क्या सुबह चंदन उनकी बात का बुरा मान गये ....उनके चेहरे पर कुटिल मुस्कान छा गई थी ....जायेंगे कहां ... कहीं ठिकाना तो है नहीं ... ऐश की जिंदगी तो यहीं पर मिल सकती है .... झक मार कर लौट कर आयेंगे ...उनकी निगाह घड़ी पर गई 12 बज चुके थे इसलिये वह तेजी से बेटे उज्ज्वल के कमरे की ओर बढीं तभी मोबाइल की घंटी सुन कर वह अनजाने ही सहम उठीं थीं ।
‘ हेलो, रेड कलर की बिना नंबर की फॉर्चुनर गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ है । लड़कों को सिटी हॉस्पिटल लेकर गये हैं ....
उनके हाथ से मोबाइल छूट कर गिर गया था । उन्होंने अपने को संभाला, उनका शरीर थर थर कांप रहा था ऱात के बारह बजे, अमावस की अंधेरी रात उनके जीवन को भी अंधेरा करने वाली है । यदि उज्ज्वल को कुछ हो गया.... उनका सर्वांग कांप उठा था ... उनके मुंह से चीख निकल पड़ी थी, बेटी वन्या मां की चीख सुनते ही घबराई हुई आ गई ...मॉम क्या हुआ ?
“भाई की गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ है ।“
वन्या वर्तिका जी को संभालने की कोशिश करती है ...
वर्तिका के चारों तरफ झंझावातों की आंधी ने उनके अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया था । पति का पता नहीं, बेटा जीवन के लिये सांसों से संघर्ष कर रहा है । अपनी विवशता पर उनकी आंखों से अश्रु धारा बह निकली थी । उनका इतना बड़ा कारोबार, बैंक बैलेंस बड़ी बड़ी गाड़ियां मानो, उनकी स्थिति पर अट्टहास कर रहीं हैं। इस वीभत्स अट्टहास के शोर से एक बार तो वह विचलित हो उठीं और बेचैन होकर भावुक स्वर में बोलीं, ’मेरा लाल ठीक हो जायेगा न .....’
‘आपका बेटा आई सी यू में क्रिटिकल है ...डॉक्टर ने घबराये हुये स्वर में कहा था .....
नहीं ... वह कमजोर नहीं हैं .... यह तो जीवन है ....अब न तो उन्हें पति की फिक्र थी न ही बेटे की .....
वर्तिका शांत मन से कल की मीटिंग का एजेंडा फाइनल करने में लग गईं थीं .....