बहनजी टाइप
बहनजी टाइप
आठ दिन हो गये, सृष्टि ज़िद पकड़कर बैठी है, नौकरी करेगी, उसकी डिग्री किस काम की है? सिर्फ घर संभालती रहेगी, आखिर वो गोल्ड मेडलिस्ट है।
"ऋषभ बताओ मैं क्यों नहीं कर पाऊंगी नौकरी? कितनी लड़कियाँ करती हैं, तुम्हें क्या लगता है? मैं नौकरी और घर मैनेज नहीं कर सकती?"
"तुम आराम से मैनेज कर लोगी, लेकिन?"
"लेकिन क्या? मेरे और तुम्हारे जैसे लोग ही तो नौकरी करते हैं।"
"मैंने आज तक किसी चीज के लिए तुम्हें मना किया है? फिर कोई जरूरत भी नहीं है नौकरी करने की।"
"क्या नौकरी हमेशा जरूरत के लिए की जाती है? मुझे भी अपने पैरों पर खड़ा होना है।"
"ठीक है ! अगर तुम इतना ही ज़िद कर रही हो तो मैं अपने फ्रेंड से बात कर लेता हूँ, उसने ओपनिंग बताई थी। तुम इंटरव्यू के लिए चली जाना।"
"ठीक है !" हमेशा अव्वल आने वाली सृष्टि, कॉरिडोर में बैठी हुई नर्वस है क्योंकि कॉलेज के बाद घर से बाहर कभी निकली ही नहीं और आज निकली तो सीधा एक मल्टीनेशनल कंपनी! सृष्टि ने ऋषभ को फोन लगाया," ऋशभ मुझे बहुत डर लग रहा है।"
" इसमें डरने की क्या बात है? जो पूछेंगे तुम्हें बस जवाब ही तो देना है।"
सृष्टि का नंबर आया लेकिन डरने जैसा कुछ नहीं था। सभी सवालों के जवाब उसने अच्छे और आराम से दिए, ऑफ़िस से निकलते हुए सोच रही थी, मैं तो बेकार में ही डरती रही, सच आज मैं कितनी खुश हूं, एक ऐसा मुकाम जो मुझे अपनी योग्यता पर मिला है, शायद कोई नहीं जान सकता जिसे मैं महसूस कर रही हूं वो क्या है? अचानक से बस में लगी भीड़ और भीड़ में रोज भाग-दौड़ करते चेहरों में मैं खुद को ढूंढ रही हूं, यही होती है पहचान," हेलो ऋशभ, मेरे सारे राउंड क्लियर हो गए।"
"अरे वाह! मुबारक हो। वो तो होना ही था, फिर जॉइनिंग कब से है?"
"वो तो बोल रहे थे, कि इसी वीक से ही ज्वाइन कर लो।"
"तो फिर कर लो।"
"मैंने सोचा मैं तुमसे पूछ कर बताऊंगी।" धीमी सी आवाज़ एक शब्द पर आ कर रुक गई, ऋषभ की हां के इंतजार में।
"इसमें पूछने जैसा क्या है? इसी वीक से ही कर लो।"
सृष्टि को ऑफिस को समझने में थोड़ा टाइम लगा लेकिन जल्दी ही सब सीख लिया। लंच होता तो अपनी सीट पर बैठकर ही लंच करना, ज्यादा किसी से मेलजोल नहीं बढ़ाया, सृष्टि की आदत पहले से ही कम बोलने की थी। ऑफ़िस के तौर-तरीके एकदम अलग थे, ऑफिस में आने वाली लड़कियों को देखकर, सिंपल रहने वाली सृष्टि, हमेशा सोचती थी कि लोग दिखावे में कितना जीते हैं।ऑफिस आने के बाद लड़कियाँ अपनी सीट पर ना जाकर, वॉशरूम में अपने बाल और मेकअप जो रास्ते में खराब हो गया ठीक करने जाती।कभी-कभी ऐसा होता, चाय पीने की इच्छा होती तो पीऑन से कह कर अपने लिए एक कप चाय अपनी सीट पर ही मंगा लेती।
थोड़ी बहुत हाय-हेलो साथ में बैठने वाले कलीग से भी थी। अपनी सीट के पास बैठने वाली राधिका से अच्छी अंडरस्टैंडिंग हो गई थी। एक दिन राधिका और अरुण बहुत जोर जोर से हँस रहे थे । तभी सृष्टि ने पूछा," क्या हुआ?"
"नहीं, कुछ नहीं।"
"मुझे बताओ ना क्या हुआ?" सृष्टि ने अधिकार से पूछा।
अकेले में राधिका ने कहा," अरुण की गर्लफ्रेंड की सास आ गई है। इसलिए वो ऑफिस नहीं आएगी।"
" सास, मतलब वो मैरिड है?" सृष्टि ने हैरान थी।
"हां तो! ये किसने कहा कि शादी के बाद अफेयर नहीं कर सकते?" छेड़ते हुए राधिका ने एक और सवाल सृष्टि पर दाग दिया," अच्छा तू बता तू इतनी अच्छी दिखती है। तेरा कोई बॉयफ्रेंड है क्या?"
"नहीं यार मैं मैरिड हूं।" राधिका बहुत जोर से हँसी और बोली," मैं मज़ाक कर रही थी। मैं जानती थी, होगा भी नहीं। तुम थोड़ी सी बहन जी टाइप हो। ऐसी लड़कियाँ लड़कों को पसंद नहीं होतीं।"
कुछ दिन बाद राधिका ने लंच टाइम में सृष्टि से कहा," चलो नीचे चलते हैं। यहां क्यों अकेली बैठी रहती हो?" तो सृष्टि ने भी सोचा सभी नीचे जाते हैं तो आज नीचे जाकर भी घूम आना चाहिए। सीढ़ियों पर राधिका के साथ बैठ गई और अपनी नज़र चारों तरफ दौड़ाईं, चारों तरफ़ सिगरेट का धुआँ। वो हैरान रह गई लड़कों से ज्यादा गिनती लड़कियों की थी जो एक के बाद एक सिगरेट पिए जा रही थीं, इससे पहले राधिका से कुछ कहती तभी बहुत जोर जोर से चिल्लाने की आवाज़ आई, एक लड़का और लड़की में लड़ाई हो गई थी। इतनी गंदी गंदी गालियों का इस्तेमाल जो उसने कभी नहीं सुना था। वो सोचने पर मजबूर थी, क्या ये लोग पढ़े-लिखे हैं ? राधिका से सृष्टि ने पूछा ," ये तो इसका बॉयफ्रेंड है ना?"
"हां, था पर पर अब लगता है नहीं रहेगा।"
राधिका ने सृष्टि का हैरान चेहरा अपनी तरफ मुड़ते हुए कहा," तुम तो मेरे ऊपर थूक ही दो।"
"पर क्यों ?"
"अरे यार इतनी बेकार बेकार लड़कियों के बॉयफ्रेंड हैं, मेरा कोई नहीं है और मुझे तुम्हारे साथ टाइम पास करना पड़ रहा है।"
"तो क्या बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड सिर्फ टाइमपास के लिए होते हैं?"
"अफसोस ! सभी तो नहीं पर ज्यादातर होते हैं" राधिका ने मुंह बनाते हुए कहा,' और तुम तो रहने ही दो सृष्टि, आई एम श्योर तुम्हारा तो शादी से पहले भी नहीं होगा?"
"नहीं था तो?"
"तुम अलग टाइप की हो।"
"अलग मतलब, बहनजी टाइप?"
"नहीं सृष्टि मेरा कहने का वो मतलब नहीं था, पर पता है? ऑफिस के सारे लोग तुम्हारे पीछे से तुम्हारे लिए इसी शब्द का इस्तेमाल करते हैं।"
सृष्टि ऑफिस से आते हुए यही सोच रही थी क्या वो सच में बहन जी टाइप है? क्या सिगरेट पीने गालियाँ देने और बॉयफ्रेंड बनाने से मैं बहनजी टाइप नहीं रहूंगी ?जितना भुलाने की कोशिश करती है ।बातें उसके दिमाग में दौड़ती हैं। काम की टेंशन नहीं है लेकिन माहौल और अपने प्रति लोगों की राय उसे परेशान कर रही है।
ऋषभ सृष्टि को परेशान देखकर पूछता है ,"क्या हुआ क्यों परेशान हो ?ऑफिस में कोई बात हुई क्या?"
"नहीं बात तो कोई नहीं हुई।"
"फिर क्यों परेशान हो?"
"ऋषभ मैं तुमसे एक बात पूछूं? तुम सच-सच बताओगे, तुम्हें मैं कैसी लगती हूं ?"
"कैसी मतलब ?"
"मतलब बहनजी टाइप लगती हूं?"
ऋषभ बहुत जोर से हँसा और हँसते हुए सृष्टि कंधों पर हाथ रखकर उसने पूछा," तुमसे किसने कहा?"
"नहीं तुम बताओ ना, तुम्हारी राय मेरे लिए सबसे ज्यादा मायने रखती है। बहन जी एक अच्छा संबोधन है या गलत? मैं ये नहीं समझ पा रही हूँ । बहन जिससे आदर झलकता है और फिर उसका इस्तेमाल तुम्हें नीचा दिखाने के लिए किया जाता है, इस शब्द को अपने लिए सुनने पर, मैं अच्छा महसूस करूं या बुरा?_
"तुम्हें बुरा महसूस करने की कोई जरूरत नहीं है, तुम सबसे अलग हो। कोई जो चाहे बोले बहन जी या मैडम तुम भीड़ में अपनी अलग पहचान रखती हो। हमेशा कोई किसी के लिए सही नहीं होता, न ही कोई सब लोगों की कसौटी पर खरा उतर सकता है। किसी के बोले जाने पर अपने आपको कम कभी मत आंकना, पर मैं इतना जानता हूं जो लोग तुम्हारे लिए ऐसा बोलते हैं, उनके लिए तुम्हारे जैसा बनना उतना ही मुश्किल होगा, जितना तुम्हारे लिए उनके जैसा बनना आसान और हां मेरे लिए तुमसे अच्छा कोई हो ही नहीं सकता।"
सृष्टि ने ऋषभ के गले लगते हुए कहा," थैंक्यू ऋषभ मुझे सबसे अलग होने का एहसास दिलाने के लिए।"
