बदनाम चौखट
बदनाम चौखट
उद्देश्य :
समाज की कुरीतियों के खिलाफ एक लघुकथा।
चरित्रहीनता का आरोप लगाया था समाज ने और सामाजिक बहिष्कार कर दिया था सुकन्या का। एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुकन्या ने अपनी बेगुनाही का सबूत पेश करके अपने आपको निर्दोष साबित कर दिया था।
कल फैसला आया और आज से शारदीय नवरात्रि महापर्व का शुभारंभ हो गया। सुकन्या ने इस बार पूरे नवरात्रि उपवास का संकल्प उस दिन लिया था जिस दिन न्यायालय में अंतिम पेशी थी। माता-पिता के देहांत के बाद उसने अपने छोटे भाई-बहन की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। न कोई ग़लत कदम उठाया था लेकिन बात जब छोटी बहन की अस्मिता पर आई तो चंडी रूप धारण करना पड़ा था। बस इसी रूप की वजह से समाज के ठेकेदारों ने सुकन्या को बदचलनी की चौखट पर खड़ा कर ही दिया था।
नवमी वाले दिन सुकन्या के चेहरे पर उदासी थी। उसने पिछले चार सालों की तरह आज भी कन्या पूजन के लिए हलुआ-पूरी, चने, सब्जी, नारियल, उपहार आदि सबकी व्यवस्था की थी। छोटी ने सुकन्या से कहा - "दीदी, हमेशा
की तरह आज भी 'बदनाम चौखट' का दाग मिटाने कोई आने वाला नहीं है। समाज बदनामी की चादर तो बड़ी सहजता से उड़ा देता है लेकिन सच्चाई का कोई साथ नहीं देता।"
सुकन्या ने कहा - "छोटी, इंसान सच्चाई का साथ दे या न दे लेकिन भगवान हमेशा सच का का साथ देते हैं।"
"जिसे देखा नहीं उस पर एतबार कैसे करें और जो दिखाई देते हैं वो एतबार के लायक नहीं।"
"जानती हूं। फिर भी हैं तो सब अपने ही।"
"आप कुछ भी कहो, आप सब सामान बांध कर तैयार हो जाओ। राजू आटोरिक्शा लेने गया है। हम अनाथालय में ही कन्या पूजन करेंगे।"
सुकन्या शांत रही। उसे उम्मीद है कि जिस समाज ने हमारी चौखट को अपवित्र किया है उसी समाज के लोग आज उसे पवित्र करेंगे। सजल नेत्रों से उसने छोटी का मान रखा और तैयार हो गई।
दोनों ने अनाथालय जाने के लिए जैसे ही दरवाज़ा खोला वैसे ही सामने नौ कन्याओं और एक लांगुरे को चौखट पर खड़े पाया। अश्रुपूरित सुकन्या हाथ जोड़े खड़ी थी और उसके सामने समाज के तथाकथित ठेकेदार सिर झुकाए हुए थे।