बड़े लोगन
बड़े लोगन
"अरे....आज पार्क की ये दुर्दशा ? चारों ओर प्लास्टिक के बोतल, पैकेट आदि क्यों बिखरे पड़े हैं ?” पार्क के अंदर झाड़ू लिए खड़े सफाईकर्मी से मैंने चकित होकर पूछा ।
“हाँ..साहब, बड़े-बड़े लोगन का आज सबेरे से ही यहाँ जुटानी था। बहुत दू...र से हाकिम लोग चरपहिया चढ के आयन रहे। क्या..कहत हैं उका ? हाँ, याद आ गवा, वही...'परयाबरन दीबस सम्मेलन'। यही बास्ते यहाँ जुटानी भइल रही।
ऊ..बड़े लोगन हमेशा एसीए में रहत हैं। घर से लेकर आफिस तक .. उनका बास्ते एसी लागल रहत हे । ई गर्मी, जनमर्रा धूप, आ ..ई खुल्ला मैदान में यही कोलडरींक तो उन लोगन की जान बचायी। जब तलक भाषण चलल, तब तलक एहि बोतल के हुनका आगे परसल गेल। समझली?
हइ.. देखि साहब, ई चार बोतल हमरे खातिर । शायद, हमरे भाग्य से बच गइल होत !? आज ई बोतल के देखि के हमर मेहरारू गदगद हो जात। उकर बास्ते ई परयाबरन का तोफा , हा..हा...हा..।”
सफाईकर्मी ठहाका लगाते हुए वहाँ बिखरे पड़े बोतल और पैकेट को फिर से समेटने में व्यस्त हो गया।
तभी मंच के ऊपर लगा
"विश्व पर्यावरण दिवस " का बड़ा सा बैनर धड़ाम से नीचे गिर गया ।