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डाॅ.मधु कश्यप

Others

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डाॅ.मधु कश्यप

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बचपन की यादें

बचपन की यादें

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हर इंसान अपना घोंसला वहीं बनाता है, जहाँ उसे दो-चार पैसे की आमदनी होती है। वर्ना कौन उस जगह को छोड़कर जाना चाहेगा जहाँ उसने जन्म लिया हो, पहली बार जमीन पर पैर रखा हो, जहाँ चलना सीखा हो, बोलना सीखा हो।


जिन्दगी हमसे वह सब काम करा लिए जाती है जिसकी कल्पना कर भी हम डर जाते है। मैंने भी कभी नहीं सोचा कि मुझे वह घर छोड़ना पड़ेगा, पर एक समय आया जब हम सभी वहाँ से चले आए। क्योंकि हम क्वार्टर में थे जो हमारे दादा जी को मिला था। वे पुलिस में थे। जब वे रिटायर हुए, हमें वह खाली करना पड़ा और हम अपने मकान में आ गए।


आठ साल की थी फिर भी आज भी एक-एक बातें, एक-एक पल उस जगह की मुझे याद आती है। और अपने बचपन में खींच ले जाती है। बड़ी होने पर मैं वहाँ हमेशा जाना चाहती थी पर सही मौका नहीं मिल पाता। एक बात अच्छी थी कि दोनों जगह एक ही शहर में थे। फिर भी सोचना पड़ जाता था।


एक बार दादा-दादी जी ने मुझसे साथ चलने को कहा क्योंकि उन्हें किसी से मिलने जाना था। मुझे तो बस मौका चाहिए था। मैंने तुरंत हाँ कह दिया। हम उसी कैंपस में गए, जहाँ मैंने अपना बचपन बिताया था। कोई और रहने आ गया था, पर यादें तो मेरी थी। सभी लोगों से मिलकर, समय बिता कर बहुत अच्छा लगा।


सभी मुझे बहुत याद करते थे क्योंकि छोटे में शायद बहुत रोती थी मैं, सारे मोहल्ले वाले रात में भी जग जाते थे। बहुत परेशान किया था मैंने सभी को। सभी मुझे चिढ़ा रहे थे और हँस रहे थे। "अब बड़ी हो गई है, फिर भी लड़ना नहीं छोड़ा,” भैया बोल पड़े।जिनसे मैं न चिढ़ाने को लेकर लड़ रही थी। अभी भी जाने का मौका मिलता है तो जरूर जाती हूँ। उन यादों में गलियों में खो जाना चाहती हूँ।


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