बच्चों की बुआ
बच्चों की बुआ
प्रतीक्षा, सामने लॉन में टहल रही थी कि अचानक 4 वर्षीय दिशा आकर उसके पैरों से लिपट गई, "बुआ! बुआ पकड़ो मुझे"और प्रतीक्षा झूठमूठ तेज दौड़ने का नाटक करते हुए उसे पकड़ने की चेष्टा करने लगी।जितनी बार प्रतीक्षा उसे पकड़ने में असफल होती उतनी ही दिशा की खिलखिलाहट बढ़ती जाती और वो ताली बजा कर कूदने लगती, "ये!! बुआ हार गई---"तभी वहां ढाई वर्षीय शांतनु भी आ गया। और प्रतीक्षा ने उसे गोद मे उठाकर चूम लिया। "अल्ले मेला बेटा भी आ गया", सच मे ये दोनों बच्चे प्रतीक्षा के लिए प्राणवायु जैसे थे। उनके बीच वो सब कुछ भूल जाती, अपने दुख दर्द सब। 4 वर्ष हो चुके थे उसे गुड़गांव में अपने भाई के पास रहते। उससे पूर्व वो अपने मम्मी पापा के साथ ही थी, इलाहाबाद में। आज भी मम्मी पापा को याद कर उसकी आंखें भर आईं।
कैसे भूल सकती थी वो उस मनहूस दिन को जिसमे एक सड़क दुर्घटना में दोनो ही नही रहे थे। तब से ही वो भैया भाभी के साथ ही थी।हाइस्कूल में थी वो तब। पढ़ाई में अच्छी पर अचानक ही इस घटना से सब अस्त व्यस्त हो गया था। और वो दसवीं की परीक्षा प्राइवेट ही दे सकी थी।प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद भैया ने उसका नाम लिखने का वादा भी किया था पर----
यूं तो उसकी भाभी का उसके प्रति उदार दृष्टिकोण था, बोलती भी अच्छे से ही थीपर दिशा को प्रतीक्षा के भरोसे छोड़ वो निश्चिंत भी थी , आया के लालन पालन पर भरोसा न था। और एक दिन झिझकते हुए भाई की ओर से प्रस्ताव आया था देख प्रतीक्षा, मुझे लगता है तू इंटर भी प्रायवेट ही दे दे तुझे तो पता ही है कि भाभी सर्विस करती है, और जैसा समय चल रहा है बच्ची को नौकर या नौकरानी के भरोसे नही छोड़ा जा सकता।
"जी भैया", एक निराश आवाज में उत्तर आया । और जिंदगी अपनी गति से रेंगती रही। आगे बढ़ी भी तो इतना ही कि भाभी ने प्रतीक्षा के भरोसे दूसरी संतान को भी जन्म देने का फैसला किया था।
सबैटिकल लीव के बाद अब शांतनु और दिशा प्रतीक्षा के बच्चे थे। और वो उनके बीच सब भूल जाती। इंटर वो पुनः अच्छी श्रेणी में पास कर चुकी थी।कभी कभी एक गहरी सांस निकलती भी तो रोक लेती, उसे प्रायवेट ही ग्रेजुएट भी तो होना था।उसकी भाभी निशा दो बहनें थी और एक भाई। मां ,पापा उनके भी नही थे, पर दोनो बहनों में खूब पटती थी, रोज ही बातें होतीढेरों किस्से---- तनु, निशा की छोटी बहनएम बी ए कर रही थी। और कॉलेज के ढेरों किस्से सुनाती।
इस बार सरप्राइज देने के लिए निशा ने अचानक ही प्रोग्राम बनाया था। भतीजे भतीजी के लिए ढेर से खिलौने लेकर देहरादून पहुंच कर उसे स्वयं भी अवाक रह जाना पड़ा था। उसकी प्यारी तनु रसोई में पसीना पोछते हुए खाना बना रही थी।भाई, भाभी के हंसने की आवाजें आ रही थी।और रात में रोते हुए तनु ने जो उसे बताया वो बोलने की हालत में ही नही थी। तनु कोई एम बी ए, नही कर रही थी झूठ बोल था उसने-----उस घर मे उसकी हैसियत एक आया से अधिक न थी। आगे तनु ने क्या कहा उसने नही सुना।अगले ही दिन वापस लौट आई तब से प्रतीक्षा को गले लगा कर रोती ही जा रही थी।
"ये मैंने क्या कर दिया? मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो गई? अस्फुट से स्वर उसके मुंह से निकल रहे थे।"
"भाभी! भाभी!! क्या हुआ, कुछ तो बताओ? "
"कुछ नही ।" पर जो कुछ था वो प्रतीक्षा को अगले दिन ही पता चल गया। भाई उसे लेकर डिग्री कॉलेज में एडमिशन कराने ले जा रहे थे, और बच्चों के लिए डे बोर्डिंग का इंतज़ाम।
इस बार रोने की बारी प्रतीक्षा की थी। ये खुशी के आँसू थे।
