बौनी उड़ान
बौनी उड़ान
सन्तोष कभी क्या करता था उसको खुद नहीं पता लेकिन जो मन मे आया वही करता था।बस ऐसे ही वो अपनी छोटी छोटी ख्वाहिश को मिला कर बड़ी खुशी बनाने में लग गया ।
“इस बार सोचता हूँ, क्यो ना कहानियां लिखूं वैसे भी सर भी बोलते है कि तुम अच्छा लिखते हो”
तभी उसके टीचर अजय सर आ जाते है,और उसको ऐसे बड़बड़ाते देख कर उसके पास आते है।
“क्या बोल रहे हो? मन ही मन”।
“कु...कुछ नही सर,बस ऐसे ही सोच रहे है कि क्या लिखूं”
“मतलब,”
“ये क्या लिख रहे हो? देखु तो”।
सर ने,उसके बेंच पर एक कॉपी उठा कर पढ़ना शुरू करते है। और खड़े खड़े पढ़ते है,कुछ देर बाद...
“अच्छा लिखे हो,लेकिन अगर ऐसे ही लिखना जारी रखोगे तो एक दिन नाम करोगे”।
“लेकिन सर,मैं तो हिंदी लिखता हूँ, और सब तो अंग्रेजी में तो फिर कैसे”।
“ऐसा कुछ नही है,देखो लोग हिंदी ज्यादा बोलते और पढ़ते 6,तो तुम बस लिखना शुरू करो”।
“ठीक है सर,तब मैं लिखूँगा”।
कुछ समय बाद....
संतोष अपनी छोटी खुशी को बड़ा करने के लिए मुम्बई जाता है। लेकिन उसको लगता था कि पता नही कैसे करूँगा । लेकिन फिर भी मुम्बई की दौड़ में एक और लेखक शामिल हो गया।
गाँव से मुम्बई आने के बाद अपने गाँव के चाचा के घर रुक जाता है।फिर वही से राइटर बनाने के लिए इधर उधर घूमने निकल गया। कुछ दिन के बाद उसको एक इंस्टिट्यूट मिला जो राइटर बनाने के ट्रेनिंग देता था। बस इस उम्मीद में मैं भी कुछ बड़ा कर सकू ।
ऑफिस में जाने के बाद....
“सर क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”।
“आ जाओ”।
सन्तोष एक कुर्सी पर बैठा और उनको देख रहा था।
“क्या नाम है तुम्हारा”?
“संतोष”।
“क्या करते हो”?
“सर, राइटर बनाने आया हूँ”।
“ठीक है, अंग्रेजी आती है?”
“नही सर,लेकिन हिंदी बहुत अच्छी आती है”
“लेकिन यहाँ पर तो सब अंग्रेजी बोलते और लिखते है”।
“अच्छा, तब सर क्या मैं राइटर नही बन सकता”।
“अंग्रेजी भी सीखते रहो”।
“ठीक है सर”।
“लेकिन 3 महीने के 30000 रुपये लगेंगे”।
“ठीक है मैं कल जाम कर दूँगा “।
अगले दिन....
क्लास में 5,6 लड़कियां और 8,9 लड़के अपने अपने मे बात करने में मस्त थे।लेकिन सन्तोष बहुत डर रहा था,
“पता नही मैं इन सब के साथ बोल और रह पाऊँगा”।
लेकिन फिर वो अपना अकेले ही कुछ ना कुछ लिखता था। एक लेखक जो फ़िल्म और सीरियल दोनों लिख चुके है।वो क्लास लेते थे । लेकिन वो भी इंग्लिश में,सन्तोष को कुछ नही समझ मे आ रहा था। लेकिन फिर भी उनकी अंग्रेजी सुनता था।
एक दिन...
एक दिन एक लेखक छोटी सी स्टोरी लिखने को सब से बोले और तुरंत लिख कर दे ऐसा बोला ।
संतोष को डर था कि वो तो हिंदी में तो फिर कैसे।
“सर क्या मैं हिंदी में लिख सकता हूँ?”
“किसी भी भाषा मे लिखो,कोई बात नही”।
10 मिनट बाद ही सन्तोष ने हिंदी कहानी लिख कर सर को दे देता है। पहले तो सब उसको देखने लगे लेकिन कुछ देर बाद....
“यार भले ही तुम हिंदी में लिखे हो,लेकिन अच्छा लिखे हो”।
और सब उसके लिए ताली बजाने लगे,वो भी अग्रेजो के बीच मे देसी लड़का ,लेकिन फिर भी खुशी हुई।
“कहते है ना, की न करने से अच्छा है उसको कर के हारो तो वो हर नही वो तो जीत होती है। तो क्यो न कर के हारू ।
इस समय सन्तोष कर लिए एक दम सटीक बैठ रहा था। कुछ दिन तो ऐसे करता रहा लेकिन किसी कारण उसको मुम्बई छोड़ कर फिर अपने गाँव आना पड़ा ।
2साल बाद...
संतोष का दिल नही माना कि अब क्या करे लेकिन फिर इंटरनेट की दुनिया मे हिंदी लिखना शुरू किया । बस कुछ ही दिन उसको सब से अच्छा प्लेटफार्म मिला वो भी स्टोरी मिरर से जहा से उसको बाद में दूसरी बाद में बौनी उड़ान ही सही लेकिन उसके दिल को सुकून देंने वाली ख़ुशी थी ।
वो खुशी थी “ऑथर ऑफ दा वीक” से सम्मान मिला जहाँ उसके लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।
इसलिये कभी भी अपने बड़ी कोशिश को छोटी कोशिश समझ कर
छोड़ना नही चाहिए ।