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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

बालिका मेधा 1.25

बालिका मेधा 1.25

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रविवार को पीयूष, अपनी मम्मी एवं दादी सहित हमारे घर आई थी। मम्मा के ना ना कहने पर भी, पवित्रा आंटी किचन में उनके साथ चलीं गईं थीं। पवित्रा की दादी से बैठक में पापा बात करने लगे थे। मैं पीयूष को अपने साथ टीटी खेलने ले गई थी। पीयूष ने पहले टीटी अधिक नहीं खेला था। हम आधा घंटे में ही घर लौट आए थे। तब मम्मा एवं आंटी ने डाइनिंग टेबल पर भोजन लगा दिया था। 

टेबल में एक चेअर कम पड़ने से, पीयूष एवं मैंने सबके बाद खाने की इच्छा बताकर, सभी को परोसने का कार्य लिया था। सबके खा चुकने के बाद हमने खाया था। फिर टेबल पर से डिशेस , फ्रिज, किचन एवं सिंक में व्यवस्थित रख देने के बाद हम बैठक में आए थे। यहाँ शेष सभी बैठकर बात कर रहे थे। 

जब हम वहाँ पहुँचे तब मेरे पापा, पवित्रा आंटी से कह रहे थे - पीयूष के पापा भी आज आए होते तो हमें उनसे मिलकर बड़ी प्रसन्नता होती। कदाचित् यह बात पापा ने, अंकल के संबंध में अपनी जानकारी बढ़ाने की दृष्टि से कही थी। यह बात सुनते ही पीयूष की दादी रो पड़ीं थीं एवं आंटी तथा पीयूष की आँखों में अश्रु झिलमिलाने लगे थे। 

इससे पापा, मम्मा एवं मैं एक साथ किसी अनहोनी की कल्पना करते हुए आशंकित हुए थे। दादी ने स्वयं को संभाला और वे आँसू पोछते हुए चुप हुईं थीं। पीयूष एवं पवित्रा आंटी ने भी एक दूसरे के आँसू पोछे थे। तब पवित्रा आंटी ने मेरी मम्मा को देखते हुए कहा - 

"उस दिन स्कूल फंक्शन में आपको मैंने, पीयूष के पापा अमृतपाल के पीयूष के जन्म के समय, अवकाश लेकर घर पहुँचने तक की घटना बताई थी। तब मैं प्रसूता ) थी, कुछ दिन तक पतिदेव के अधिक समीप नहीं रही थी। कुछ दिनों बाद अपने कक्ष में उन्हें करीब से देखा तो उनके कंधे के नीचे एवं सीने पर दो बड़े निशान दिखाई दिए थे। ये निशान इसके पहले नहीं थे। मैंने चिंता से उनसे पूछा था - जी आपको यह निशान कहाँ कैसे पड़ गए हैं?

उन्होंने हँस कर कहा था - "पवि, सेना में बिना गोली झेले अगर सूबेदार हुए तो मजा क्या है।"

सुनकर मेरा कलेजा मुँह को आया था । "मैंने कहा था - यहाँ मेरी जान पर बन आई है। आप हँस रहे हैं।' 

उन्होंने कहा था -' पवि, अब चिंता करने की कोई बात नहीं है। इतना बड़ा कारगिल युद्ध हमने लड़ा, अमृतपाल ने अपने सीने पर दो गोली झेल ली। 15 दिन अस्पताल में रहकर स्वस्थ हो गया। पवि अपने योद्धा पति पर गर्व कर, यह दुःख मनाने की बात नहीं है। "

मैंने उनके निशानों वाले स्थान को हाथों से छुआ था। फिर उनके गले लग कर शिकायती स्वर में कहा था - आपने इतनी बड़ी बात हम सबसे छुपा ली। 

उन्होंने बिस्तर पर सो रही मेरी (तब) इस छोटी सी बेटी को देखते हुए कहा था - पवि, तब बताना ठीक नहीं था यह ‘पीयूष’ गर्भ में थी। दूर रहकर मुझे गोली लगने के समाचार से तुम सब पर बुरी बीतती। मैं नहीं चाहता था कि हमारे दो पूर्व के गर्भस्थ शिशुओं की तरह हम इसे भी खो देते। 

मुझे तब पता चला कि इन्होंने हमारी बेटी के लिए ‘पीयूष’ नाम तय किया है। मैंने पूछा - इसका नाम आपने क्या पीयूष तय किया है? 

उन्होंने बड़े प्यार से बताया - "पवि, पीयूष, मेरे नाम अमृत का पर्यायवाची है, साथ ‘प’ से शुरू होता था जिससे तुम्हारा नाम पवित्रा भी होता है। "

पवित्रा आंटी इतना बताने के बाद चुप हुईं थीं। पीयूष सहित हम सबने यह दास्तान, मंत्रमुग्ध हुए जैसे सुनी थी। हाँ, हमें यह अंदेशा अवश्य हो गया था कि पीयूष के पापा अब नहीं हैं। पापा, दादी एवं पीयूष के मुख पर उदासी स्पष्ट देखी जा सकती थी। तब मम्मा ने कहा - "मैं सबके लिए लस्सी लाती हूँ। फिर पवित्रा आंटी भी रसोई में उनके साथ गईं थीं। लस्सी पी चुकने पर पापा ने पवित्रा आंटी से पूछा - "अमृतपाल सर के साथ क्या आगे कोई अनहोनी और हुई है?"

आंटी ने कहा - "वे अब इस लोक में नहीं हैं।" 

मम्मा ने कहा -" यह अत्यंत वेदनाकारी हादसा कैसे और कब हुआ?'

आंटी ने बताया - "कारगिल के बाद उनकी पोस्टिंग मेरठ छावनी में हो गई थी। हम अपने विवाह के लगभग आठ वर्षों बाद, पहली बार अपने घर में साथ साथ रहने लगे थे। पीयूष उनको अपनी जान से बढ़कर प्यारी लगती थी। माँ जी, पिताजी चाहते थे हमारा एक बेटा भी हो जाए। डॉक्टर ने बताया, मुझमें कोई कमी आ गई थी। दूसरा कुछ पैदा नहीं कर पाने का दुःख मुझे रहता तो वह माँ जी, पिताजी के सामने ही पीयूष को कंधे पर बैठा कर कहते थे, पवि दुःख न कर पीयूष ही हमारी बेटी एवं बेटा दोनों है। (मेरे पापा की ओर मुखातिब होते हुए) सच कहूँ भाईसाहब तब हमारा घर, संसार का सबसे प्यारा घर हुआ था।" 

आंटी ने दो मिनट का विराम लिया था। हम सब उनके मुख को देख रहे थे। वेदना उनके मुख पर साफ देखी जा सकती थी। उन्होंने आगे बताया - 

"सरकार ने उन्हें वीरता पदक दिया था। उनका 2008 में मेजर का प्रमोशन भी हुआ था। पीयूष को वे खुले वातावरण में सुलझे विचार देते हुए बड़ा कर रहे थे। तब दुर्भाग्य हमारे जीवन में आया था। 12 नवंबर 2011 की रात उन्होंने मुझसे प्रेमालाप भी किया था मगर 13 की सुबह वे नहीं उठे थे। कारगिल में उन्हें लगी गोलियों ने, शायद 11 वर्ष बाद उनके प्राण लिए थे। पिताजी यह भीषण दुःख सहन नहीं कर पाए थे। 15 दिन बाद ही उनके प्राण पखेरू भी उड़ गए थे।" 

पवित्रा आंटी चुप हुईं थीं। मम्मा ने उठाकर आंटी को अपने अंक से लगाया था। कोई कुछ नहीं कर सकता था। मैं सुनती थी ‘निःशब्द रह जाना’, मनुष्य की उस स्थिति को मैं आज अनुभव कर रही थी। मम्मा ने यही क्रिया दादी एवं पीयूष के साथ भी दोहराई थी। पापा अत्यंत भावुक हो गए थे। उन्होंने कहा - "माँ जी, बहन जी (पवित्रा आंटी के लिए) आप चिंता नहीं कीजिए। कोई भी समस्या हो, जरूरत हो मुझसे कहिए, अब से मैं एक नहीं दो बेटी का पापा हूँ। पीयूष एवं मेधा में, मैं कभी कोई अंतर नहीं देखूँगा।" कहते हुए उन्होंने दादी और आंटी के पैर छू लिए थे। 

दादी ने कहा - "बेटा गाँव की खेती से आय और अमृत की फैमिली पेंशन से गुजर चल जाती है। बस अमृत के न होने का दुःख व्यथित करता है। पीयूष और मैं, तुममें अमृत को देखें पाएंगे। मैं पवि से कहती रही हूँ अब भी कहती हूँ, बेटी फिर विवाह कर ले। यह मानती नहीं।" 

पवित्रा आंटी ने कहा - "अमृत, मुझे वह रस पिला गए हैं, वे (अमृतपाल) नहीं तो मुझे अब किसी से कुछ नहीं चाहिए "

(क्रमशः)



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