Dilip Kumar

Others

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बाभन

बाभन

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गया जिले के अंतर्गत टोंक ग्राम के निवासी परमेश्वर शर्मा जी एक बड़े किसान हैं। इनके हिस्से में कोई सौ एकड़ जमीन रह गयी होगी, लेकिन रस्सी जल जाने के बाद भी अकड़ नहीं गयी। मन में अभी भी छोट बभना और बड़ बभना का भेद स्पष्ट रूप से दिखता है।

बड़े गर्व से कहते हैं कि छोट बभना में से यदि किसी के पास दो सौ एकड़ जमीन हो तब भी वह हमारे सामने कुर्सी पर नहीं बैठ सकता। ध्यातव्य है कि मगध में बाभन और ब्राह्मण दो इतर जातीय समूह है। दोनों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है। हाँ, तो परमेश्वर शर्मा जी को मालिक गुरुजी के नाम से भी जानते हैं। सभी इन्हें मालिक या गंउवा कह कर सम्बोधित करते है। आप बड़े गर्व से कहते हैं लंका में राज रावण और बिहार में राज बाभन! अर्थ नहीं मालूम है इसका। सुनी सुनाई बातों को दुहराते रहते है। मिडल पास हैं फिर भी अध्यापक की नौकरी लग गयी। सब चेयरमैन साहब की कृपा थी। चेयरमैन साहब, अध्यापक और शिक्षक नेता सभी बिरादरी वाले ही थे। विद्यालय जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। सब जानते हैं सरकारी जात है।

यदि भूल से कभी पकड़े गए तो भी कोई बात नहीं। एक दो महीने का मामला है। इनके रिश्ते नाते वाले बड़े -बड़े लोग हैं। हाँ, अब परिस्थितियाँ बदल रहीं हैं। आजकल नया नारा गूंज रहा है - मल्लू यादव लाल है, बाभनों का काल है। भूरा बाल साफ करो। इनके घर में बहुत सारे यादव बेगारी कराते हैं। आजकल यादवों के बच्चे खूब टेढियाँ रहे हैं। मसलन यादवों के बच्चे अपने बड़े बुजुर्गों को मालिक गुरुजी की खेती करने से मना कर रहे हैं। वे अपने अभिभावकों से बड़े गर्व से कहते हैं, अब "दोनों सरकारे" अपनी है, अर्थात राज्य सरकार और नक्सलियों की समानान्तर सरकार। अब बाभनों के खेत में काम करने की क्या आवश्यकता ? सीधे लाल झंडा गाड़ देते हैं। फिर किसकी मजाल जो खेत के निकट भी फटके। सालों (बाभनों) को 'छह इंच' छोटा कर देंगे। मोदन यादव भी मालिक के पुराने विश्वासपात्र हैं। मुँह लगे हैं । कहते हैं -बाल बच्चों का तो पता नहीं, लेकिन मैं तो निबाह दूँगा। नाऊन चाची मालिक गुरुजी के नालायक संतान के बारे में शिकायत कर दीं थी। शादी ब्याह का दिन था। शाम के धुंधलके में वे मालिक गुरुजी के घर से निकल कर दालान की ओर बढ़ रही थी, तभी खंड में से मालिक गुरुजी का मंझीला लड़का समर्थ अचानक सामने आ गया। उसके हाथ में एक साड़ी थी, जो उसे देने लगा। उसने साड़ी अस्वीकार कर दी तो वह गिड़गिड़ाने लगा। कहने लगा कि वह उसके प्रणय प्रस्ताव को स्वीकार कर ले। बस एक बार, आज भर के लिए। बदले में वह उसे मालामाल कर देगा। नाऊन चाची दूसरे गाँव की थी। उसके गाँव में नक्सलियों का बोलबाला था किन्तु यहाँ तो बाभनों की ही चलती है। किसी तरह उसने अपनी इज़्ज़त बचाई और अगले दिन उसने मालिक गुरुजी के घर जाने से मना कर दिया। उसे धमकी दी गयी। साली, जल में रह कर मगर से बैर करती है। पता नहीं, जहां तुम रहती हो, ये जमीन हमारे पुरखों ने ही राजराम नाई को दी थी। कभी किसी ने ना नुकुर नहीं की। सारे तो हमारे जमीन पर ही बसे हैं- कुम्हार, बढ़ई, लोहार और सभी पेशेवर जातियाँ। उनके घर के पीछे बाढ़ू चाचा का परिवार रहता था। आजकल ये लोग अपने आप को चंद्रवंशी कहार कहते हैं। कहते हैं मालिक गुरुजी की दादी की डोली के साथ पथरौर से जो दाई आई थी, उन्हीं के खानदान के ये सब हैं। हाँ, दाई की शादी को कोई प्रमाण नहीं है। दाई ने नाई की तरह प्रतिरोध नहीं किया होगा, तभी तो इनका इतना बड़ा लाव लश्कर है।

हाँ , नाऊन चाची का मायके का पूरा परिवार नक्सली था और इस घटना की भनक उन्हें लग गयी थी। अगले दिन तो कुछ नहीं हुआ। मालिक गुरुजी के यहाँ से बारात चली गयी। चार पाँच दिन के बाद ही भईया जी बस से कॉलेज जा रहे थे। पंचानपुर में बस रुकी। अचानक बस में कुछ नक्सली आ धमके। देखने से कहाँ पता चलता है। उन्होने बस के अंदर आ कर पूछा कि क्या इस बस में कोच का कोई बाभन है ? समर्थ भईया नें जैसे ही हामी भरी, उन्हें बस से उतार लिया गया। उनकी आँखों पर गमछा बांध, उन्हें धकियाते हुए जन अदालत में ले गए। फिर क्या, पूरी तरह से तोड़ दिया उन्हें। थूक गिरा कर चाटने को कहा। आँखों पर से पट्टी नहीं हटाई। लौटने के पंद्रह दिन बाद ही यह नौजवान स्वर्ग सिधार गया। अब तो नक्सलियों के हौसले बुलंद थे। इसी बीच तसीली के लिए पहुंचे दो नौजवानों को, 11 सितंबर 2002 को पंचानपुर ओपी थाने से खींचकर खुले आम सड़क पर टायर से बांधकर उन्हें जिंदा जला दिया गया।


हाँ, नाऊन चाची सपरिवार गाँव छोड़ चुकी हैं । मालिक गुरुजी का लड़का नक्सलियों का पहला शिकार था। नक्सलियों के हौसले बुलंद थे। अब तो एक-एक कर और चुन-चुन कर बाभन मुखिया, प्रमुख की राह चलते हत्या की जाने लगी।

यह निश्चित नहीं था कि सुबह का गया व्यक्ति शाम को घर लौटेगा की नहीं। तभी पास के बारा गाँव में नक्सलियों ने बाभनों की उनके हाथ पैर बांध कर गला रेतकर हत्या कर दी। मरने वालों में मालिक गुरुजी के दो रिश्तेदार भी थे। पहले पुत्र खोया और आज सगे संबंधी को भी। हाँ , मोदन चाचा को अपने बच्चों के माध्यम से नक्सलियों द्वारा भविष्य में नक्सली गतिविधियों की जानकारी मिल जाती थी। वे पहले ही बता सकते थे कि कल मउ के जगन्नाथ मुखिया की हत्या होगी, परसों संडा के नवल बाबू की हत्या होगी। इसी बीच सतबहनी और बीजहारा की बाभनों की जमीन पर यादवों ने झंडा गाड़कर कब्जा कर लिया। पिया भए कोतवाल अब डर काहे का।

बारा की घटना के तीन दिन बाद अचानक अर्ध रात्रि में कोंच डीह पर मालिक गुरुजी नें एक मीटिंग बुलाई है। आस पास गाँव के मोक, मुडेरा के नौजवान भी इकठ्ठे हुए हैं। मंच पर भोजपुर से आए हुए अतिथि परशुराम मुखिया जी हैं। हथियारो का जखीरा रखा हुआ है। पुरलिया में गिरा था न, वहीं से आया है। मुखिया जी मुझे तो हथियारों के सौदागर प्रतीत होते है। उन्होने बड़ी मार्मिक अपील की- अपनी जमीन और अपनी प्रतिष्ठा बचानी है तो आप सबको हथियार खरीदना होगा, अपनी बहन बेटियों को हथियार चलाने की शिक्षा देनी होगी। अभी तो सिर्फ बारा और सेनारी हुआ है । अन्य सभी जतियों द्वारा सरकार के समर्थन से बाभनों का नामोनिशान मिटा देने की बहुत गहरी साजिश चल रही है। सेनारी हत्याकांड के बाद पुलिस की वर्दी में नक्सलियों ने दिन दहाड़े बाभनों के साथ अत्याचार किया है। पहले रात में ये चोरी करते थे आजकल मल्लू यादव के सह पर दिन दहाड़े हमारी प्रतिष्ठा पर हमला कर रहे हैं।

बड़ा ओजपूर्ण भाषण था उनका। हम परशुराम की परंपरा वाले ब्राह्मण हैं, मुख में वेद, तीर, कुठार हमारी पहचान है। जय परशुराम, जय रणवीर और जय ब्रहमेश्वर के नारे से टोंक गूंज उठा। मालिक गुरुजी ने अपना खजाना खोल दिया था। सारे नौजवानों के भोजन और रहने की व्यवस्था, यदि समाज के किसी व्यक्ति के पास पैसे नहीं तो भी वह हथियार खरीद सकता है। मालिक गुरुजी की गारंटी है। मालिक गुरुजी ने कहा -हमे बड़े और छोटे का भेद मिटाना होगा। मैं संपति और जमीन लेकर इस दुनिया से नहीं जाऊंगा। किन्तु यदि आज हमने उदारता नहीं दिखाई तो कल कुछ नहीं बचेगा। उन्होने घोषणा कि - आनेवाले समय में यदि कोई व्यक्ति अपनी जमीन और प्रतिष्ठा बचाने के क्रम में शहीद होता है तो उसके परिवार की जिम्मेवारी पेंशन, बीमा और देख रेख हमारी समिति करेगी। आज वे सब एक साथ, एक पांत में बैठकर प्रसाद ग्रहण कर रहे थे। उनके बीच का आपसी ऊँच नीच का भेद मिट चुका था। नौजवान रण में जाने को तैयार दिखाई दे रहे थे।


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