Hansa Shukla

Others

4.8  

Hansa Shukla

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अपनापन

अपनापन

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सुरभि सवेरे अपने दो साल की बेटी के लिए दूध गरम करने किचन में गई । दूध फ्रिज से निकालकर गैस में गरम करने रखी ये क्या ! दूध फट गया । सुरभि परेशान सवेरे उठते ही आहना को दूध पीने की आदत है,दूध ना मिलने से आसमान सर पर उठा लेती है । सुरभि ने आकाश से कहा "जाओ बाजार से दूध का पैकेट ले आओ आहना के उठने से पहले।" आकाश ने सुरभि को याद दिलाया कि "कोरोना के कारण आज जनता कर्फ्यू है कुछ नहीं मिलेगा ,इसलिए मैं कल ही ज्यादा दूध ले आया था। सुरभि तुम दूध को फ्रिज में क्यों नहीं रखी तुम बड़ी लापरवाह हो तुम्हे बच्ची का भी ध्यान नहीं रहा पता नहीं दिन भर क्या सोचती रहती हो ?" सुरभि सवेरे-सवेरे आकाश के इस ताने से दुखी हो गई और अपनी सफाई में कहा "कल रात भर बिजली नहीं थी इसलिए फ्रिज में रखने के बाद भी दूध फट गया। आकाश मुझे दोष देने से पहले ये सोचो कि आहना के उठने के पहले दूध कहा से आएगा?" सुरभि और आकाश की बात दीवार के उस तरफ से सुरभि की जेठानी स्नेहा सुन रही थी,उसे याद आया की जब सुरभि शादी होकर घर में आई तो वह कितनी खुश थी कि देवरानी के रिश्ते में उसे छोटी बहन और सहेली मिल जाएगी और वह अपने दिल की सारी बात उससे कर पायेगी और काम के लिए भी उसे साथ मिल जायेगा । शुरू में तो सब ठीक रहा लेकिन थोड़े ही दिनों में सुरभि का व्यवहार बदल गया उसे लगता था की वह पढ़ी -लिखी है और नौकरी करती है तो उसे घर का काम नहीं करना चाहिए इसलिए स्नेहा की छोटी -छोटी बात का वह बुरा मान जाती थी,रोज की चिक-चिक से तंग आकर स्नेहा ने आकाश को समझाया कि घर के बीच दीवार उठवा लेते है अलग रहेंगे तो इतना प्रेम तो बना रहेगा कि रिश्ता टूटने से बच जायेगा । थोड़े दिन में ही घर के बीच दीवार उठ गई और एक छत के नीचे दो घर बन गया।।  

अलग होने पर सुरभि को स्नेहा के साथ रहने से वो कितनी बेफिक्र रहती थी इस बात का एहसास हुवा लेकिन अपने झूठे अहम् के कारण कभी सुरभि ने इस सत्य को किसी के सामने स्वीकार नहीं किया। स्नेहा यादो के भॅवर से निकलकर दूध लेकर सुरभि के पास आई और बोली "मैं तुम्हारे और आकाश की बात सुनकर आहना के लिए दूध लायी हूँ वह मेरी भी तो बेटी हैं बड़ो के मन मुटाव की सजा बच्ची को क्यों मिले ?"

सुरभि ने प्रायश्चित के स्वर में कहा "दीदी कल रात भर लाइट नहीं थी फिर आपके फ्रिज में दूध ख़राब कैसे नहीं हुआ ?" स्नेहा ने प्यार से कहा "मैं दूध को ठंडा कर परात में ठन्डे पानी के ऊपर रख दी थी गांव में फ्रिज नहीं होने पर हम दूध को ऐसे ही रखते थे। सुरभि को याद आया कि स्नेहा की ऐसी ही बातें उसे बिलकुल अच्छी नहीं लगती थी आज सुरभि को अपनी गलती का एहसास हुवा वह स्नेहा के पैर छूकर माफ़ी मांगने लगी "दीदी मैं हमेशा आपके सीख और समझाइश का गलत अर्थ निकालती रही और अपने झूठे अहंकार के कारण घर को बँटवा दिया मुझे माफ़ कर दीजिये" स्नेहा ने उसे गले लगाकर कहा "तुम्हारे पश्चाताप ने कडुवाहट की दीवार को गिरा दिया है सुरभि,अब हमारे बीच केवल प्यार है" ,स्नेहा ने मजाक में कहा "तू धन्यवाद् कर जनता कर्फ्यू का जिसने हमारे परिवार को फिर से एक कर दिया।" सुरभि और स्नेहा बात कर रहे थी कि आहना की आवाज से दोनों रूम की तरफ भागी। आज आहना स्नेहा की गोद में बैठकर दूध पी रही थी। रिश्तों का अपनापन जीत गया था और अहंकार की दीवार ढह गई थी ।


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