अग्नि परीक्षा मेरी अकेली क्यों
अग्नि परीक्षा मेरी अकेली क्यों
16 दिसंबर 2012 की वो घटना तो शायद ही भारतीय उपमहाद्वीप का कोई भूल पाये जो अपने आप को इंसान कहने हिम्मत रखता हो।
अत्यंत विभत्स और घृणित घटना उस देश में हुआ जहां महिला के सम्मान को हम सर्वोच्च स्थान देते हैं।
हाँ वही निर्भया मुझे फटकारती है
मिली कहां से हिम्मत तुझ को, राह जो तूने ये चुन ली,
शर्म न आयी क्यों तुझ को, षड़यंत्र जो तूने ये बुन ली।
बहन की राखी पूछ रही है ऐ मेरे नाबालिग भईया ,
लाज का मतलब जान न पाया, पर बहन की खुद छीन ली।।
जी वही दामिनी गिड़गड़ाती है
(शरद त्रिपाठी के शब्दों मे)
निर्भया कहो दामिनी कहो या नाम कोई मुझ को दे दो,
जो भूखे भक्षक थे मेरे अंजाम कोई उनको दे दो,
मुझे वीर कहो या बेचारी या पापिन कह बदनाम करो,
पर नारी से ही जन्मे हो इस कोख का कुछ तो मान करो,
मै तो एक दुर्घटना हूं सब भूल ही जायेंगे,
बस कोई बता दे हम कब तक अबला कहलायेंगे ।।
हाँ वही दामिनी मुझसे ये सवाल करती है कि
हरिश्चन्द्र द्वारा को बेचे जाने पर क्यों तारामती ने हरिश्चन्द्र का विरोध नहीं किया कि महाराज खुद को बेचने का अधिकार तो है आपको, पर मेरी कीमत लगाने का साहस कहां से प्राप्त किया आपने?
राम द्वारा अग्नि परीक्षा की बात करने पर क्यों माँ सीता ने जवाब तलब नहीं किया कि प्रभु मैं लंका मे रही तो आप भी तो जंगलों में विचरण कर रहे थे तो अग्नि परीक्षा मेरी अकेली क्यों?
युधिष्ठिर द्वारा पांचाली को दाँव में लगा कर हार जाने पर क्यों द्रौपदी ने विरोध, यह कह कर नहीं किया की हस्तिनापुर की कुल वधू कोई निर्जीव वस्तु नहीं जिसे कोई जुआरी युधिष्ठिर अपने मनोरंजन के लिए उसे दाँव पर लगा कर हार जाये।
उसके ये सवाल मेरी आत्मा को भेद कर छलनी छलनी कर रहे थे, क्या ये सच नहीं कि अगर इन अबलाओं ने सिर्फ ये सवाल पूछ लिये होते तो आज ये देश पुरूष प्रधान नहीं होता।
इन अबलाओं ने हर क्षेत्र मे अपने जौहर का लोहा मनवाया इस पुरुष प्रधान देश से, लक्ष्मीबाई के रुप मे, मस्तानी के, माँ अहिल्या, दुर्गावती, इंदिरा गांधी, कल्पना चावला या सानिया मिर्जा के रुप मे हो या किसी और रुप मे।
हर क्षेत्र मे इनके स्वर्णिम इतिहास से सभी शिलालेख पटे पड़े हैं। थोड़ा सावधान होने की जरूरत है।
क्योंकि
जलजला धरती पर जब इनके क्रोध का आयेगा।
तब धरती से अम्बर तक सब मिट्टी मे मिल जायेगा।।
आज देश की सबसे बड़ी अदालत ने निर्भया काण्ड के आरोपीयों के लिए हाई कोर्ट के द्वारा मुकर्रर मौत की सजा पर मोहर लगाकर भारतीय न्यायपालिका के भरोसे पर भी मोहर लगा दिया है।