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आज़ाद परिंदा - एक और कागजी पत्नी

आज़ाद परिंदा - एक और कागजी पत्नी

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जरा कल्पना कीजिये एक ऐसे व्यक्ति की जो अपना जीवन अपने मुताबिक जीना जानता हो । जिसे पता हो उसे क्या चाहिए और उसी चाहत के मुताबिक अपना जीवन जी रहा हो जिसे पता हो उसकी प्राथमिकताएं क्या है ऐसे व्यक्ति अक्सर दिखाई नहीं देते परंतु यदि दिखाई दे जाए तब भी अक्सर उसे जज करने में गंभीर किस्म की गलती हो ही जाती है ।


आज मैं एक ऐसे ही मित्र के बारे में बात करना चाहता हूँ । 


बहुत पुरानी तो नहीं तकरीबन 2 साल पुरानी बात है । मैं बाजार से टहलते है वापिस आ रहा था कि अचानक सामने से एक परिचित (बहुत ही मामूली परिचित) टहलते हुए दिखाई दिए । परिचय कोई विशेष नहीं था बस चेहरे से पहचानते थे । दोनो एक ही तरफ जा रहे थे तो साथ साथ चलने लगे । चलते चलते मित्र का मकान आ गया यानी की अब अलग होने का वक़्त था । 


एक तो मित्र के बंगले की खूबसूरती और दूसरा सूखता हुआ गला कह रहा था कि कुछ देर छाया में रुक लिया जाए , और जब मित्र ने अंदर आने के लिए कहा तो खुद को रोक नहीं पाया और बंगल के अंदर कदम रख ही दिए । बंगले के सामने बनाये गए खूबसूरत गार्डन ने जैसे मन मोह लिया । अभी रंग बिरंगी खूबसूरती से सम्मोहन से आजाद नहीं हो पाया था कि सामने पानी का गिलास आ गया । उम्मीद थी कि फ्रीज़ का चिल्ड पानी सामने आएगा परंतु सामने था मिट्टी के मटके का ठंडा पानी । एक अलग ही आनंद की अनुभूति हुई ।


बैठने का आग्रह भी टाला नहीं जा सका, तो वही बगिया में ही कुर्सी पर बैठ गए और फूलों के बारे में कुछ बातचीत भी करते रहे । जब थकान थोड़ा सा कम हुआ तो मित्र ने चाय / कॉफी के विषय में भी पुछा हालांकि इच्छा हो रही थी परंतु संकोचवश हा नहीं कह सका । और मित्र ने भी दुबारा नहीं पुछा । थोड़ा अजीब लगा परंतु क्या किया जा सकता था । उस दिन हम दोनों को औपचारिक जानकारी थोड़ी सी आगे बढ़ गयी । अब रास्ते में मिल जाते तो हाल चाल पुछ लेते और कभी कभार मैं उनके घर बगिया का आनंद उठाने पहुंच जाता । मित्र हमेशा की तरह चाय या कॉफी आफर करते परंतु संकोचवश हर बार मना करने के बाद दुबारा नहीं पूछते ।


फिर एक दिन संकोच छोड़ कर चाय के लिए हां कर दी तो बेहतरीन चाय उन्होंने अपने हाथ से बना कर पिलाई भी । अब धीरे धीरे उनके स्वभाव की जानकारी होती जा रही थी इसीलिए पता था कि जब साहब चाय या खाने के लिए पूछते है तो दिल से पूछते है वो इस सिद्धांत को नहीं मानते की मेहमान आया है तो चाय तो पिलाई ही जाए फिर चाहे वो पीने का इच्छुक हो या नहीं ।


लॉकडाउन के दौरान उनको समझने का अधिक अवसर प्राप्त हुआ तब मालूम हुआ कि साहब शादीशुदा है । उनके घर के देखकर बिल्कुल भी कहा नहीं जा सकता था कि साहब कभी शादी शुदा थे या है । घर पर ऐसा कुछ नहीं जो उनके शादीशुदा होने की चुगली करता हो ।


बेहतरीन बंगला बेहतरीन गाड़ी, सब कुछ बेहतरीन और सबसे बेहतरीन उनका स्वभाव, एकदम सीधा साधा, स्पस्ट ज़िंदगी जीने के इच्छुक ।


एक दिन बातों ही बातों में उनसे विवाह के संबंध में जानकारी उगलवाने की इच्छा हो गयी तो मैंने उनसे कुरेद कुरेद कर जानकारी निकलवाना शुरू कर दिया । मित्र को कोई विशेष आपत्ति भी नहीं थी क्योंकि जब भी उनके विवाह की बात होती तो उनके व्यवहार में किसी किस्म का परिवर्तन देखने में नहीं मिला । वो अपनी पत्नी के बारे में इस तरह बात करते जैसे कि सड़क पर जाती किसी अनजान महिला के विषय में जिससे उनका किसी किस्म का कोई संबंध नही हो । 


धीरे धीरे मेरी अपनी समझ में आ गया कि जिसे हम उनकी पत्नी के तौर पर जानते है मित्र के लिए वो एक अनजान महिला मात्र है जो ज़िंदगी के किसी मोड़ पर किसी दुर्घटना स्वरूप उनकी ज़िंदगी में आ गयी थी । परंतु अब मित्र का उनके किसी किस्म का कोई संबंध नहीं है ।


उनका तलाक का मुकदमा अदालत में चल रहा है जहां शायद कई सालों बाद दोनों को अलग होने की अनुमति मिल जाये परंतु यह अनुमति व्यर्थ है क्योंकि मित्र उस महिला को बहुत पीछे छोड़ आये है । बेशक वो महिला कोर्ट में उन पर कुछ मुकदमे करके समझ रही है कि वो उसका पति है परंतु वास्तविक जीवन में मित्र उस महिला को बहुत पीछे कही अकेला छोड़ आये है । उस महिला का मित्र की जीवन में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष किसी किस्म का कोई महत्व नहीं ।


फिर भी मैं दुनियादारी में उलझा हुआ मामूली इंसान हूँ, और गलती कर ही जाता हूँ । ऐसी ही एक गलती एक दिन हो गयी मुझसे ।


मित्र के घर पर ही बगिया में बैठे हुए हम कुछ पकाने की तैयारी कर रहे थे की अचानक मित्र का फ़ोन बज उठा । उस दिन सतीश जी भी हमारे साथ ही थे । फोन किसी अनजान नंबर से आया था और मित्र ने सामान्य अंदाज़ में फोन उठा लिया । हमे सिर्फ हमारी तरफ का सुनाई दे रहा था परंतु हम अनुमान लगा पर रहे थे कि सामने से क्या कहा जा रहा होगा ।


मित्र : "हैल्लो कौन?"


महिला : "आप जानते हैं"


मित्र : "फ़ोन आपने किया है में कैसे जान सकता हूँ कि कौन बोल रहा है?"


महिला : "जब मैं आपको पहचान पा रही हूँ तो आप क्यों नहीं?"


मित्र : "मुझे नहीं पता आप कौन हैं?


महिला : "आप जानते हैं"


कुछ देर इसीतरह मित्र पुछते रहे और सामने से नहीं बताया गया तो मित्र ने गुस्से में आकर फ़ोन काट दिया । परंतु लगभग तुरंत ही फ़ोन दुबारा बज उठा । इस बार मित्र ने जब पुछा तो सामने से बता दिया गया कि उनकी पत्नी बोल रही है । और साथ में यह भी बताया गया कि शायद यह उनका आखिरी काल हो क्योंकि वो बहुत बीमार है । सिर्फ एक मिनट बात सुन ले ।


मित्र ने फ़ोन काट दिया । क्या कोई ऐसा बेरहम हो सकता है कि सामने से एक महिला यह कह रही हो कि शायद वो ज़िंदा नहीं रहेगी सिर्फ एक मिनट बात करना चाहती है इसके बावजूद फ़ोन काट दिया जाए ।


दिल खट्टा हो गया मित्र की तरफ से । जिस बगिया में बैठ कर लंच करना बहुत भाता था आज वही बगिया थी और वही घर का बना हुआ बेहतरीन खाना, परंतु दिल में भरी हुई खटास ने आनंद नहीं लेने दिया । और मित्र का व्यवहार कुछ ऐसा था जैसे कि कोई कॉल आया ही नहीं हो, इस कारण खटास और बड़ रही है ।


आखिर मैं और सतीश जी उनके घर से विदा हो लिए और सतीश जी का चेहरा चुगली कर रहा था कि उनके विचार मुझसे अलग नहीं है ।


शायद कहीं किसी कोने में इच्छा हो रही थी कि दोबारा मित्र से बात भी ना की जाए, एक बेरहम कसाई से भला मित्रता कैसी । 


परंतु दिल के दूसरा कोना कहीं उनके दरियादिल होने का गवाह भी था । मुझे याद आ रहे थे लॉकडाउन के वो दिन जब उन मित्र के हाथ का बना हुआ खाना हम दोनों जरूरतमंदो तक पहुचाया करते थे । मुझे वो दिन भी याद आ रहे थे जब मित्र ने कोरोना ने बिना डरे मेरे माता पिता को अपने यहां कोरनटाइन किया था । मुझे वो दिन भी याद आ रहे थे जब लॉकडाउन के बाद मित्र की सहायता से ही मेरी दुकान दोबारा चल पाई थी । इसके अलावा भी बहुत कुछ याद आ रहा था परंतु इस सबके बावजूद दिल मित्र के प्रति खटास से भर चुका था ।


इसी उद्देड़भून में घर आ गया । घर से कुछ दूरी पर ही एक एम्बुलेंस खड़ी थी शर्मा जी की पत्नी को कोरोना का सीरियस अटैक आ गया था और उन्हें हॉस्पिटल ले जाया जा रहा था । शर्मा जी भी दुकानदार थे बस इसी नाते कुछ जानकारी थी जिसे घरेलू तो हरगिज़ नहीं कहा जा सकता । शर्मा जी वर्तमान हालात में कुछ आर्थिक परेशानी से गुजर रहे थे । एक इच्छा हो रही थी कि जेब में पड़े हुए दस हज़ार शर्मा जी को दे दूं शायद उनको जरूरत हो ।


एम्बुलेंस चली गयी और मेरे दस हज़ार मेरी जेब में ही रह गए । आखिर ऐसा क्यों हुआ कि शर्मा जी की जरूरत को जानते हुए भी में उन्हें दस हज़ार ना दे पाया । शायद इसका कारण यह था कि शर्मा जी पत्नी मेरे लिए एक अनजान महिला मात्र थी और मुझे पता था कि जेब में रखे हुए दस हज़ार किसी अपने के लिए काम आ सकते है । उनकी सहायता करना मेरी इच्छा हो सकती है परंतु वो महिला मेरी जिम्मेदारी नहीं थी, विशेष तौर पर जब शर्मा जी ने मुझसे कुछ सहायता मांगी ही नहीं । वो मेरे लिए एक अनजान महिला मात्र थी । जिनकी आवश्यकता होने पर सहायता तो की जा सकती है परंतु किसी भी तरह से उनसे जुड़ाव नहीं हो सकता ।


आखिर मेरी समझ में आ गया कि क्यों मित्र ने फोन काट दिया । मित्र से फ़ोन पर बात करने वाली एक अनजान महिला मात्र थी फिर बेशक वो महिला खुद को मित्र की पत्नी ही समझती रहे परंतु मित्र की नज़र में वो एक अनजान महिला मात्र थी ।


वो सिर्फ एक कागजी पत्नी थी जिसका मित्र कोई महत्व नहीं था ।



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