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यात्रा - कुत्ते ही कुत्ते

यात्रा - कुत्ते ही कुत्ते

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मुझे यात्रा का काफी शौक रहा है और यात्रा भी वो जो धीमी गति से की जाए, फिर चाहे वो पैदल यात्रा हो या धीमी गति से चलती कार या रेल यात्रा, मुझे सब पसंद है। परंतु करोना के बाद हालात बदल गए है अब यात्रा का अवसर ही नहीं मिल पा रहा , और ना ही माहौल। काफी समय बाद एक लंबी यात्रा पर निकालना यकीनन सुखद अनुभव रहा , परंतु इसका क्या किया जाए की चींटी और गुड का संबंध बहुत दृढ़ है चींटी हमेशा गुड़ तलाश कर ही लेटी है।


अच्छा समय हमेशा नहीं रहता हर अच्छी चीज का आखिर अंत आ ही जाता है। यात्रा का अंत भी होना ही था, आखिरकार दिल्ली से घर वापसी के लिए फ्लाइट पकड़ी ताकि एक बार फिर से वही हमेशा वाली दौड़ धूप में गर्क हुआ जा सके।


घर पहुंच कर देखा तो चारो तरफ कुत्ते ही कुत्ते दिखाई दिए। जब मैं यात्रा पर निकला था तब यहां छः कुत्ते थे या इस तरह कहूं कि 2 कुत्ते और चार कुत्तियां थी। लेकिन अब छोटे बड़े सब मिला कर अठारह दिख रहे थे।


पहले जहां चार कुत्तियां थी अब बारह कुत्तियां दिख रही थी कुत्ते बेचारे दो से तीन ही हो पाए। बड़ी नाइंसाफी है।


बहुत सोचने के बाद पता चला की यह तो कुत्ता भ्रूण हत्या का मामला है। यकीनन पंद्रह कुत्ते मार दिए गए है आखिर प्रकृति तो जीतने कुत्ते उतने ही कुत्तीया के सिद्धांत पर चलती है ना। हालाकि यह सरासर झूठ है प्रकृति इक्वल नबर पर नहीं बल्कि unequal नंबर पर चलती है परंतु प्रोपेगंडा के तहत दिमाग में यही भरा गया है इसीलिए यही सही। कुत्ता भ्रूण, बैल, सांड, चिड़िया, भ्रूण हत्या है तो है।


जब मैं निकला था उस वक्त सब यानी की छः के छः कुत्ते मेरे स्वागत के लिए आते थे और घर तक आते थे या शायद बिस्कुट खाने आते थे परंतु अब ऐसा नहीं हुआ बल्कि कुत्ते घर तक नहीं आए और ना ही कुत्तों ने मेरे दिए बिस्किट ही खाए।


काफी भागदौड़ के बाद पता चला की पिछले दो महीनों में चारों कुत्तियों ने पिल्ले दिए और इस दौरान दोनो कुत्ते शराफत से पीछे हट गए यहां तक कि मेरे आस पास के लोगों द्वारा डाला गया खाना भी उन्होंने कुत्तियो के लिए छोड़ दिया। अब पिल्ले बड़े हो रहे है और बाहर आ रहे है इसीलिए अब यहां पंद्रह कुत्तियों का अपना ही संगठन बन गया है और कुत्ते अब आसपास आना चाहे तब भी नहीं आ पा रहे।


हालांकि मुझे पता है की इन पंद्रह के लिए सिर्फ दो कुत्ते ही काफी हैं परंतु दोनो का दिमाग कुछ इस तरह से ट्रेंड कर दिया गया है की दोनो ऐसा करेंगे नहीं।


ऐसी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ कुत्ते ही निभा सकते हैं। कुत्तियां सिर्फ फायदा उठाना जानती है।


वक्त एक जैसा नहीं रहता अब एक सप्ताह होने जा रहा है और एक सप्ताह में ही हालत बदल रहे है। पिछले एक सप्ताह से में पास खड़े होकर दोनो कुत्तों को बिस्किट खिला रहा हूं और अब कुत्ते भी अपना हिस्सा नहीं छोड़ रहे बल्कि अगर कोई कुत्ती उसके हक पर डाका डालने आ रही है तो एक गुर्राहट से ही भगा भी रहे हैं।


एक सप्ताह ही काफी है बस दिमाग से गलतफहमी निकल जाए इतना ही काफी है।


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