आठवां भाग: गणित का खूनी इतिहास
आठवां भाग: गणित का खूनी इतिहास
History का मतलब ही होता है his story, मतलब जो बताता है वो अपने ही नजरिए से कहता है, और अगर कहने वाला विकास सर जैसा बड़ा क़िस्सा बाज हो तो सुनने का और उसे अनुभव करने का रोमांच अपने चरम पर होता है, मैं बात कर रही हूँ उस गणित के इतिहास की जो मुझे ऐसे बताया गया जैसे किसी थिर्लर कहानी को महसूस करना, आइये आपको भी सुनाती हूँ, उन्ही के शब्दों में।
ग्रीक नगर की अदालत, बड़े -बड़े दर्शन शास्त्री, समाज शास्त्री, न्याय शास्त्री और योद्धा इकट्ठे हुये हैं। बहुत गर्मी है माहौल में, मौसम की नहीं बातों की। महल के बाहर ग्रीक की मानों सारी जनता उमड़ी हुई है और सभी की जुबान पर एक ही नाम, एक ही चर्चा। सम्राट के आते ही सभी शांत हो जाते हैं।
मुकदमा है पाइथागोरस पर – ख़ून का इल्ज़ाम। इसमें उलझन यह है की पाइथागोरस कौन है? यही फैसला नहीं हो पा रहा है, हर दिन नया पाइथागोरस आ खड़ा होता है, और साबित करता है की वही असली पाइथागोरस है, इसलिए अगर सजा मिले तो उसे मिले। सम्राट और उसके मंत्री हैरान हैं कैसे पता लगाएँ की असली पाइथागोरस कौन है? सवाल -जबाब होते हैं, न्याय शास्त्री अलग -अलग कसौटी परखते हैं, पर किसी नतीजे पर नहीं पहुँचते।
पाइथागोरस और उनके अनुयायियों को यकीन था कि संख्याएँ जीवन में प्रकृति से लेकर संगीत तक सब कुछ समझाती हैं। इसके अलावा, उन्हें यकीन था कि ब्रह्मांड में सब कुछ परिमेय संख्याओं के परिणाम के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
पाइथागोरस के स्कूल का सिद्धांत था की "सभी संख्या है" या "भगवान संख्या है", और पाइथागोरस ने प्रभावी रूप से एक प्रकार की अंकशास्त्र या संख्या-पूजा का अभ्यास किया, और प्रत्येक संख्या को अपना चरित्र और अर्थ माना। उदाहरण के लिए, नंबर एक सभी नंबरों का जनक था, दो- प्रतिनिधित्व राय; तीन- सद्भाव; चार- न्याय; पांच- शादी; छह- सृजन; सात- सात ग्रह या "भटकते तारे"; आदि विषम संख्याओं को स्त्री और सम संख्याओं को पुरुष माना जाता था।
सभी में सबसे पवित्र संख्या "टेट्रैक्टिस" या दस थी, एक त्रिकोणीय संख्या जो एक, दो, तीन और चार के योग से बनी होती है।
हालांकि, पाइथागोरस और उनका स्कूल - साथ ही साथ प्राचीन ग्रीस के कुछ अन्य गणितज्ञ - पहले की तुलना में अधिक कठोर गणित को पेश करने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार थे, वे केवल स्वयं सिद्ध मान्यताओं और तर्क का उपयोग करते थे । पाइथागोरस से पहले ज्यामिति केवल अनुभवजन्य माप द्वारा प्राप्त नियमों का एक संग्रह था।
जो कोई भी उस गणित समूह का हिस्सा बनता सभी को पाइथागोरस ही कहा जाता और इस स्कूल का नाम था पाइथागोरियन स्कूल।
हिप्पासस भी एक पाइथागोरस था, और वह एक उत्कृष्ट गणितज्ञ था। अच्छा होना ही उसके लिए अच्छा नहीं रहा। अभी तक सभी पाइथागोरस मानते थे की संसार में सभी कुछ को परिमेय संख्याओं के परिणाम में व्यक्त किया जा सकता है। पर उसने पेंटाग्राम के बारे में कुछ देखा। अर्थात्, यदि इसे विभाजित किया जाता है, तो नक्काशीदार टुकड़ों के बीच एक निश्चित अनुपात होता है। हिप्पसस ने हरे रंग की तरफ से विभाजित लाल पक्ष की लंबाई का माप लिया। यह नीले पक्ष से विभाजित हरे रंग की भुजा की लंबाई के बराबर है। और वह बैंगनी पक्ष से विभाजित नीले पक्ष की लंबाई के बराबर है। और इनमें से कोई भी वस्तु दो पूर्ण संख्याओं के अनुपात के रूप में व्यक्त नहीं की जा सकती है। वे स्वर्ण अनुपात बनाते हैं, जो दशमलव में लगभग 1.61803 है।
स्वर्ण अनुपात कला और वास्तुकला के कई कार्यों में दिखाई देता है। यह आज तक हमारे जीवन की पृष्ठभूमि की सुंदरता का निर्माण करता है। हिप्पासस ने 1 इकाई आधार और 1 इकाई लम्ब वाले त्रिभुज को बनाकर सबके सामने रखा, सभी को विकर्ण को नापने के लिए आमंत्रित किया और घोषणा की की जांच ले, ये वो परिमाण है जो परिमेय संख्या नहीं है। ये उद्घोषणा सभी को चौकानें वाली थी और अब तक ब्रहमाण्ड के बारे जो जो उनकी मान्यता थी उसके विपरीत थी की ब्रह्मांड में सब कुछ परिमेय संख्याओं के परिणाम के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
कुछ पाइथागोरस समूह के लोग अपने गुरु के आदेश अपर हिप्पासस को नाव से लेने जाते हैं, उसे सम्मान देने के लिए बुलाया जाता है , पर बीच रास्ते में ही उसकी नाव को डुबो देते हैं , सभी मिलते हैं और बाकी समूह को गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं ।
सम्राट के सामने हिप्पासस की लाश को लाया जाता है और न्याय की मांग की जाती है, खोजबीन से ये तो पता चलता है की ये काम पथागोरस स्कूल का है पर व्यक्ति विशेष के बारे में पता लगाने पर अजीब ही समस्या हो जाती है सभी तो यहाँ पाइथागोरस थे, किसे सजा दें।
ग्रीक में किसी को सजा दी गई या नहीं ये तो पता नहीं चला, पर ये सोचने पर जरूर मजबूर हो गई की कैसे एक सोच या विचार के लिए किसी की जान ली भी जा सकती है और दी भी, आज भी अपने चारों और देखती हूँ तो पाती हूँ हम सब अपनी -अपनी मान्यताओं पर डटें हुये हैं, कोई इससे आगे बढ़ना ही नहीं चाहता। दूसरे को सुनने को तैयार ही नहीं, बस अपना जो बोल दिया सो बोल दिया, ऐसा कैसा समाज होता जा रहा है? क्या गणित के पास भी इसका कोई समाधान नही, ये तो तर्क की बात करता है, समस्या समाधान की बात करता है फिर भी...
विकास सर ने मेरी सोच की पतंग की डोर को काटते हुये कहा - कहानी को कहानी की तरह ही लो, ये देखो की गणित आगे कैसे बढ़ा, आज जहां हम पहुंचे है उसके लिए कितना लंबा और संघर्ष करना पड़ा है। समाज में न्याय तो कभी नहीं रहा, हमेशा से कुछ विशेष वर्ग ने अपने हिसाब से तर्क का, गणित का इस्तेमाल किया है, गणित खुद कुछ नहीं करता, ये तो हम पर है की हम इससे क्या कर सकते हैं।
चलो आज के लिए इतना ही , अगली कहानी में गणित के और मजेदार किस्से से रूबरू हुआ जाएगा।
