आत्म निरीक्षण
आत्म निरीक्षण
एक बड़े स्कूल में बारहवीं के छात्रों का फेयरवेल प्रोग्राम चल रहा था। सभी शिक्षक अपनी–अपनी राय दे रहे थे। प्रिंसिपल ने कहा कि आज के छात्र किताबी ज्ञान में तो ठीक होते हैं, लेकिन नौकरी के हिसाब से उनमें स्किल नहीं होती! बेहतर होता कि छात्र इस बात को समझें और उसके अनुसार आगे बढ़ें। जो विरासत आपको अपने पूर्वजों से मिली है, जो संस्कार आपको अपने बुजुर्गों से मिली है, उनका अनुसरण करें, आप काफी आगे जाएंगे। ये बातें एक तरह से उन छात्रों पर कटाक्ष था जो अपने माता पिता, शिक्षकों को नमस्कार तक नहीं करते। उनका वक्तव्य समाप्त होने पर एक बैक बेंचर (सबसे पीछे बैठने वाला छात्र, जिन्हें अक्सर बिगड़ैल, बदतमीज और संस्कारहीन कहा जाता है) ने स्टेज पर बोलने की अनुमति मांगी। समय समाप्त हो रहा था, इसलिए काफी मिन्नत के बाद उस छात्र को माइक दिया गया। उसने बोलना शुरू किया – 'जैसा कि प्रिंसिपल सर ने कहा कि आज के छात्रों में बस किताबी ज्ञान भरा हुआ है, छात्रों में नौकरी के लायक स्किल नहीं है। जो इसके सपोर्ट में हैं, मैं उन सभी से पूछना चाहता हूं कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? हम छात्र या फिर शिक्षक जो हमें सिर्फ किताब तक ही पढाते हैं? ये किसकी नाकामी है जो अपने छात्र को एक नौकरी के लायक नहीं बना पाते और बड़े – बड़े कॉन्फ्रेंस में, सेमिनार में एक एसी हॉल में बैठकर ऐसी बातें बड़े गर्व से कहते हैं? ये हमारी आलोचना कर रहे हैं या फिर अपनी नाकामी को सबके सामने गर्व से दिखा रहे हैं? हमें संस्कार हीन कहा जाता है; कहा जाता है कि पूर्वजों की विरासत को ये आगे कैसे बढ़ाएंगे? ...कौन से संस्कार, कौन सी विरासत? वही घिसा पिटा दकियानूसी सोच और संस्कार जो कई सदियों से ढोया जा रहा है? आज हर कोई उन बच्चों को दोष दे रहा है जो अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़कर आ गए हैं। मेरा सवाल उन सभी लोगों से है जो बच्चों को दोष देते हैं - असल जिम्मेदार कौन है? क्या वे मां बाप नहीं हैं जिन्होंने पैरेंट हुड के नाम पर सिर्फ वार्डन शिप निभाई है? जिन बच्चों को जब आपकी जरूरत थी, आपने एक नौकरानी के सहारे छोड़ दिया। जब उनको होमवर्क में हेल्प चाहिए थी, आपने ट्यूशन लगा दिया। उनको प्यार की जरूरत थी, आपने पैसा, मोबाइल और बाइक थमा दिया। जो लगाव की चीजें थीं,आपने तो कभी दिया ही नहीं! (थोड़ी देर रुकने के बाद) आपके इन्हीं संस्कारों ने हमारी राष्ट्रीय नदी गंगा को विश्व की छठी सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी (जल प्रदूषण) बना दिया है! पिछले साल केपटाउन , इस साल चेन्नई पूरी तरह से सूख गए। दूसरे शहरों से टैंकर में पानी भरकर वहां पहुंचाना पड़ा। आपके दादा-परदादा ने नदी का पानी पिया, फिर कुआं, अपलोगों ने हैंडपंप का पानी पिया। हमें क्या दिया - नल; फिर बोतल का पानी (जल संकट)। कभी सोचा कि हमारे बच्चे कैसे पानी पिएंगे? आपको पूरी धरती हरी भरी मिली थी आपके दादा परदादा से… आपने क्या दिया हमें? उसी धरती को इतना काला कर दिया कि अब सांस भी नहीं ले पा रहे (वायु प्रदूषण)। जंगली जानवरों को जंगल से निकाल कर चिड़ियाघर में बिठा दिया, कुछ जानवरों और पौधों को तो हमने सिर्फ फोटो में देखा है(विलुप्त जंतु एवं पौधे)। क्या यही विरासत संभालने को बोल रहे हैं आप? आपकी नाकामियों और गलतियों की वजह से धरती का पूरा इकोसिस्टम (जीवन चक्र) गड़बड़ हो गया है। यही संस्कार लेकर चले हम? पिछले 10 सालों में ग्लेशियर इतनी तेजी से पिघले हैं कि समुद्र का लेवल बढ़ने से कई शहरों के अस्तित्व पर संकट आ गया है। ग्लोबल वार्मिंग जैसे विरासत और संस्कार को लेकर चले हम? ...आपने क्या दिया? तकनीक, ऐसी तकनीक जो फायदे कम नुकसान ज्यादा करती है। तकनीक के कारण लोग अपनों से दूर हो गए, बीमार हो गए, अकेले हो गए, आलसी हो गए। ...आपने क्या दिया, खाने में केमिकल, पानी में केमिकल, रहने, सोने में केमिकल (पेस्टीसाइड और खतरनाक केमिकल) …! जिस इंसान की उम्र 90 होनी चाहिए थी, 50 में सुई अटक जाती हैं- इतनी बीमारियां दी है इन केमिकल्स ने। अगर आपने अपने समय में थोड़ा सा भी हमारे बारे में सोचा होता तो आज हमें हर त्योहार इको फ्रेंडली नहीं मनाना पड़ता; हर बात में पानी बचाना नहीं पड़ता; ओजोन में छेद नहीं होता, कम से कम हम साँस अच्छे से ले पाते। अगर यही संस्कार और विरासत आप हमें सौंपना चाहते हैं तो प्लीज; हमें बख्श दीजिए! नहीं चाहिए हमें ऐसी विरासत जिससे हम अपने बच्चों को जवाब न दे सकें, उनके मुंह दिखाने के लायक न रह सकें!' ये बातें कहते वक़्त छात्र के चहरे पर गुस्सा और आंसू दोनों थे।
पूरे हॉल में सन्नाटा पसरा था। सभी शिक्षक बुत बन गए थे! थोड़ी देर के बाद सभी छात्रों ने खड़े होकर जोरदार तालियां बजाई।