आखिरी खत
आखिरी खत
तुम कैसे कह सकती हो कि यह तुमने आखिरी खत लिखा हमको हम मान ही नहीं सकते है कि यह तुम हमको लिख कर हमको भूल जाओगी, यह कह कर सदानंद धीरे चल उठा। फिर कुछ मन ही मन बुदबुदाया जीना तो होगा ही तेरे बिना,जीवन तो मेरे वश में नहीं है सब शिव ही जाने पर सुधा तुम गई किस लिये या हमको छोड कर। इतनी नाराज़ थी पर हमको तो परवाह ही नहीं थी बस शादी कर के ले आया बस समझा जंग जीत ली तुम तो नारी थी तेरे मन को ना पढ़ना ही मेरी सबसे बड़ी ग़लती थी बस इन बातों को समझ ही ना पाया हर समय हक जमाता रहा, जैसे कोई जरखरीदी गुलाम हो। बस कभी किसी बात का विरोध ना करना ही हमको तानाशाह बना दिया उसकी खामोशी एक दिन ऐसे ही विरोध करेगी हम सोच ही नहीं सकें हमको भी सोचना चाहिये था कि वह 21वीं सदी की नारी है और वह रूकने वाली नहीं बस जहाँ भी रहे खुश रहे मैं तो जी लूँगा उसके बिना ।