आधा सच
आधा सच
"दहेज़ एक अपराध है। दहेज़ भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। दहेज़ के कारण कन्या भ्रूण हत्या में बढ़ोतरी होती है। दहेज़ विवाह जैसे पवित्र संस्कार को पतित कर देता है। " `संस्कृति के दहेज़ विरोधी भाषण को सुनकर पूरा ऑडिटोरियम तालियों से गूँज उठा।
संस्कृति एक सोने की चम्मच मुँह में लेकर पैदा होने वाली लड़की थी। अच्छे खाते पीते परिवार की इकलौती बेटी। उससे बड़े उसके भैया थे ;जो कि किसी MNC में कार्य कर रहे थे। कुल मिलाकर घर में कोई कमी नहीं थी।
सोशल वर्क में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद संस्कृति महिलाओं के हितों के लिये कार्य करने वाले NGOs के साथ जुड़ गयी। उसकी भाषण शैली और वाक् पटुता के कारण उसे बहुत से मंचों पर बुलाया जाने लगा था।
संस्कृति 498 ए के मामलों में बहुत सी लड़कियों की मदद भी कर चुकी थी और करती रहती थी। लेकिन वह केवल तस्वीर के एक ही पहलू को देखती थी ;कभी कभी सच वह नहीं होता जो दिखता है। आधे सच को जाने बिना ही निर्णय सुना देना कई निर्दोष लोगों की ज़िन्दगी भी बर्बाद कर देता है।
उधर संस्कृति के लिए भी रिश्ते ढूंढे जाने लगे। ऐसे ही संस्कृति की बुआ ने संस्कृति के लिए शास्वत का रिश्ता बताया। शास्वत प्रशासनिक अधिकारी था। उसके बड़े भैया भाभी भी प्रशासनिक अधिकारी थे। उसके मम्मी पापा दोनों प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत हुए थे। कुल मिलकर अच्छा पढ़ा लिखा परिवार था।
संस्कृति की राय लेकर प्रस्ताव आगे बढ़ाया गया।यह तय हुआ कि दोनों के घरवालों के एक दूसरे से मिलने से पहले ; संस्कृति और शास्वत एक दूसरे से मिल ले और अपने भविष्य के बारे में निर्णय लें।
संस्कृति और शास्वत की मीटिंग फिक्स कर दी गयी। सही समय पर संस्कृति शास्वत से मिलने पहुंच गयी। शास्वत ,संस्कृति को देखते ही अपनी चेयर और उसका अभिवादन किया। संस्कृति ने भी मुस्कुराकर जवाब दिया। फिर शास्वत ने संस्कृति से पूछकर कॉफ़ी आर्डर कर दी। शास्वत ने तरीके से संस्कृति का स्वागत किया ,रेस्टोरेंट में वेटर से बात कर रहा था ;संस्कृति को पहली नज़र में शास्वत एक सुलझा हुआ ,परिपक़्व इंसान लगा। इतने ऊँचे पद पर होते हुए भी ,अहंकार उसे छूकर भी नहीं गया था। सही है फलदार वृक्ष हमेशा झुके हुए ही रहते हैं।
फिर भी संस्कृति अपनी पूरी तसल्ली कर लेना चाहती थी। उसने शास्वत से पूछा ," आप तो जानते ही होंगे कि मैं महिला हितों के लिए काम करती हूँ तथा दहेज़ की सख्त विरोधी हूँ। "शास्वत ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ," हाँ, बिल्कुल। " और पूछा ," आप मेरे बारे में क्या जानती हो ?"
संस्कृति ने मुस्कुराते हुए कहा कि ,"यही की आप एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी हो। आपके घर में घेरलू कार्यों को करने के लिए नौकर चाकर हैं ,तो शादी के बाद भी मैं आराम से अपना सोशल वर्क भी के सकूंगी।मुझे घूमने का भी बहुत शौक है ,आप इतनी अच्छी पोस्ट पर हो तो साल में एकाध बार तो फॉरेन ट्रिप हो ही जायेगी। आपके भैया भाभी भी अच्छे पद पर हैं। मम्मी पापा सेवानिवृत हैं। सब लोग अच्छे से सेटल्ड हैं तो कोई पारिवारिक ज़िम्मेदारी नहीं। "
शास्वत ने कहा ," संस्कृति आपको केवल आधा सच ही पता है। "
संस्कृति शास्वत की और मुस्कुराकर देखते हुए बोली ," तो पूरा सच आप बता दीजिये न। "
" संस्कृति , मुझे सरकार से कोई नौकर चाकरनहीं मिलते हैं। मैं एक ईमानदार अधिकारी हूँ तो अपने वेतन से नौकर चाकर वहन करने की मुझमें क्षमता नहीं है। तुम अपना सोशल वर्क जारी रख सकती हो। घर के काम हम दोनों मिलजुलकर कर लेंगे। तुम्हें पब्लिक ट्रांसपोर्ट को तो उपयोग करने की आदत है न ;जब तक हम अपना फोर व्हीलर नहीं खरीदेंगे ,तब तक तुम्हे पब्लिक ट्रांसपोर्ट आने जाने के लिए उपयोग करना पड़ेगा। तुम्हे सोशल वर्क के लिए शायद बहुत अच्छा वेतन नीलता है ,तब ही तुम विदेश में छुट्टियों का प्लान कर रही हो। " शास्वत ने संस्कृति की तरफ शांत भाव से देखते हुए कहा।
संस्कृति की बोलती बंद हो चुकी थी। बस वह शास्वत को घूरे जा रही थी ,मानो पूछ रही हो और भी कुछ बचा है क्या ?
शास्वत ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा ,"मम्मी पापा ने अपने सभी फंड्स दान कर दिए हैं। पेंशन उनकी आती नहीं है। अतः मम्मी पापा की ज़िम्मेदारी मुझ पर और भैया पर है। अपनी शादी भी मुझे अपनी सेविंग्स से ही करनी है ,तो मैं तुम्हारे लिए डिज़ाइनर ड्रेसेस और महँगी महँगी ज्वेलरी वहन नहीं कर सकता। तुम्हे मंजूर हो तो हम सादगी से कोर्ट में भी शादी कर सकते हैं। "
संस्कृति सोच रही थी कि ,"बुआ ने कैसे कंगले से शादी की बात चलाई। दहेज़ माँगना तो अपराध ही है ;सरकार का कानून भी यही कहता है। लेकिन बिना डिज़ाइनर कपड़ों और ज्वेलरी के कोई शादी भला कैसे हो सकती है। ऐसी शादी के पिक्स तो सोशल मीडिया पर पोस्ट भी नहीं कर सकते। मैं तो डेस्टिनेशन वेडिंग का सोच रही थी ;दोनों परिवार आधा -आधा खर्चा उठाते ,लेकिन यहाँ तो कोर्ट मैरिज की बात हो रही है। मैंने तो घर पर एक पानी का गिलास भी खुद से उठाकर नहीं पिया और यह बेवकूफ बराबर से काम करने की बातें कर रहा है। मुझे तो यह किसी दूसरी दुनिया का ही प्राणी लग रहा है। इसे तो शादी के लिए मना करना ही सही रहेगा।
शास्वत की आवाज़ से संस्कृति की सोच पर विराम लगा ,शास्वत कह रहा था कि ," संस्कृति फिर से आधे सच को सुनकर ही कोई राय मत बना लेना। तुम्हारी तो यह आदत ही है। सिया और संकेत के मामले में भी तो तुम यही कर रही हो। "
संस्कृति ने चौंककर शास्वत की तरफ देखा मानो पूछ रही हो कि तुम संकेत और सिया को कैसे जानते हो ?
शास्वत ने कहा ," संकेत मेरा बचपन का दोस्त है। कल तुम उसके और उसके परिवार के विरुद्ध मोर्चा निकालने वाली हो। तुम्हारी अतिरिक्त सक्रियता और आधे सच को पूरा सच मानने के कारण वह और उसका परिवार जेल में है। संकेत के मम्मी पापा ने अपनी सेविंग्स इत्यादि सब संकेत के विवाह में खर्च कर दिए। उन्हें उधार भी लेना पड़ा ताकि सिया के परिवार के स्टैण्डर्ड के अनुसार सिया को कपड़े और गहने दिला सकें। उनके स्टैण्डर्ड के अनुसार शादी की रस्मों को निभाए। सिया को भी हनीमून विदेश में चाहिए था ,संकेत लेकर भी गया। लेकिन जब शादी के बाद संकेत ने सिया को फ़िज़ूल के खर्चे न करने के लिए टोकना शुरू किया और अपनी जिम्मेदारियों को सम्हालने के लिए कहा तो सिया ने दहेज़ का मामला करने की धमकी दी और उसकी मदद के लिए तुम आगे आ ही गयी थी। "
संस्कृति की सामने अब सारा मामला शीशे की तरह साफ़ था। वह समझ गयी थी ;जो शास्वत समझाने की कोशिश कर रहा था। उसने कहा ,"शास्वत आगे से मैं पूरा सच जानने के बाद ही कोई निर्णय लूंगी। जब तुम मेरा पूरा सच जानते ही हो तो मैं क्या यह समझूँ शादी के लिए मिलना तुम्हारा मात्र एक बहाना था। "
शास्वत ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा ," अभी फिलहाल मैंने इसके बारे में सोचा नहीं है। लेकिन तुम चाहो तो हम कुछ और मुलाकातों के बाद इस बारे में निर्णय ले सकते हैं। "
