यह सब सुन कर आशा की आँखें भर आयी, वो समझ नहीं पायी कौन किसके सहारे है...।
वह क्यों मौत से पहले जिंदगी को अलविदा कहे।
सुधीर ने मुस्कराते हुए हाथ हिलाकर लाली और मोहन को विदा कर दिया।
गीता माँ से बोली "माँ गुस्सा क्यों कर रही हो शारदा गुरु तो पागल हैं।
नियम तोड़ने की सजा मुझे भी मिली मुझे चौथे परिमाण में जाना पड़ा।
लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास