स्त्री कभी रिटायर नहीं होती
स्त्री कभी रिटायर नहीं होती
५८ वर्षीय श्रीमती सुषमा जी के पतिदेव श्री मुंगेरी जी २५ वर्ष पूर्व सन १९९५ में ६० वर्ष की उम्र में अपनी सरकारी नौकरी से कानपुर में ही रिटायर हो गए थे।
मुंगेरी जी तो अगले दिन से आराम फरमाने लगे। धीरे धीरे दिन रात बिस्तर पर ही कटने लगा। पर सुषमा जी पिछले २५ वर्ष में कुछ बूढ़ी तो ज़रूर हो गयीं हैं, लेकिन काम उतना का उतना ही। हां, दिनचर्या थोड़ी बदल गयी है। हर चीज़ का समय लगभग एक घंटे आगे बढ़ गया है।
मुंगेरी जी रिटायरमैंट से पहले ९.०० बजे नाश्ता करके आँफिस के लिए रोज प्रातः ९.३० बजे घर से निकलते थे, साथ में लंच बाँक्स लेकर, दो बजे के लिए। वापसी ५.३० बजे शाम तक होती थी। ५.४५ पर शाम की चाय और ८.३० बजे रात का खाना।
रिटायरमैंट के बाद से मुंगेरी जी का सब कुछ बिस्तरे पर ही या फिर सर्दियों में खिली हुई धूप में कुर्सी मेज पर घर के आंगन में, पर समय बदला हुआ यानिकि प्रातः ७ बजे बैड टी - रस टोस्ट या लईया (मुरमुरे) (अरवे) के साथ, १०.०० बजे नाश्ता, ३ बजे दोपहर का खाना, ६.१५ पर शाम की चाय और ९.३० बजे रात्री का खाना। इसी हिसाब से सुषमा जी का काम करने का समय बदल गया, पर काम ज्यों का त्यों। हां, बुढ़ापे की वजह से काम धीरे धीरे कर पाती हैं.
सुषमा जी अब सन २०२० में ८३ वर्ष की हैं। जैसा कि उनको याद है कि पिछले ७५ वर्षों में (यानि कि बहुत बचपन के ८ वर्ष छोड़ कर), वह लगातार अनवरत काम करती रही हैं, शादी से पहले १५ वर्ष (९ वर्ष की उम्र से २४ तक) मायके में, फिर सुसराल में।
यह कहानी एक भारतीय सुषमा जी या स्त्री की नहीं है, कमोबेश यह सारे पुरूष प्रधान (Men Dominated) संसार की हर स्त्री की कहानी है।
इस सिस्टम में बदलाव की शुरुआत तो करनी होगी।
बचपन में व् नौकरी से रिटायरमैनट के बाद पुरुष को माँ, बहन, पत्नी व् बेटी के साथ बराबर से कार्य करना होगा, तभी तो शास्त्रों में वर्णित स्त्री की महत्ता सार्थक हो पाएगी।
इसी आशा के साथ, सभी स्त्रियों को नमन।
