ईश्वर से मन मेरा मांगता है रोज एक दुआ उसके सुखी जीवन के लिए...!
लेखक : बरीस झित्कोव. अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
लिखने वालों को भी अकेलापन कभी छू सका है क्या भला ?
उसकी आँखों से पश्चाताप पिघल कर बहने लगे।
“रक्त बीजरूपी “कोरोना वायरस ,के महामारी से विश्व की रक्षा कर सकती है।
और कार में उसे रौंदने लगा। उसे आत्मिक खुशी हो रही थी। बाहर चाँदनी छिटकी हुई थी।