रिश्तों की कड़वी चासनी से घुले कोई अपना हमसे रूठा है अभी रिश्तों की कड़वी चासनी से घुले कोई अपना हमसे रूठा है अभी
उन लम्हों को पहली दफ़ा जिन्हें वक्त के किसी कोने में दफ्न कर आए थे हम उन लम्हों को पहली दफ़ा जिन्हें वक्त के किसी कोने में दफ्न कर आए थे हम
हर ख़ाब जिंदगी के पूरे नहीं होते होते हैं बहुत खास बस पूरे नहीं होते। हर ख़ाब जिंदगी के पूरे नहीं होते होते हैं बहुत खास बस पूरे नहीं होते।