ज़िंदगी के उस मोड़ पर
ज़िंदगी के उस मोड़ पर
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ज़िंदगी के उस मोड़ पर अकेली खड़ी थी
हौसले के औज़ार से मौत की जंग लड़ी थी
हालात-ए-मजबूरी में लबों पर थी मुस्कान
ख़ुश्क आँखों से अश्कों की बारिश झड़ी थी
जेब थी खाली कोई अपने का भी साथ नहीं
लफ्ज़ो में न हो पाए बयां ऐसी मुश्किल घड़ी थी
कुछ अजीब सी रोशनी को पास पाया था
शायद ख़ुदा से जुड़ी मेरी रूह की कड़ी थी।