यह शायरी भी एक
यह शायरी भी एक
यह शायरी भी एक,
अजब सा नशा है।
जज़्बात, काग़ज़ और,
कलम का पेशा है।
अगर लबों से अंदाज़ों में,
बोल दिया जाता है।
तो बिना बोले दिल की,
बात निकल जाती है।
फिर कलम से लफ़्ज़ों में,
लिख दिया जाता है।
तो एक खूबसूरत नज़्म,
बन निकल आती है।
ना जाने कब सूरज,
उगकर डूब जाता है,l।
ना जाने कब तारों की,
बारात निकल आती है।
रात भर दोनों ये,
आँखें जागी रहती हैं।
ना जाने कब सारी,
रात निकल जाती है।
ना जाने कब पतझड़,
कब सावन आता है।
ना जाने कब नए फूल की,
कली निकल आती है।
ना जाने कब घनघोर,
अंधेरा छा जाता है।
ना जाने कब सुनहरी,
धूप निकल जाती है।
ना जाने कब आंधी,
कब तूफ़ान आता है।
ना जाने कब बारिश की,
बूंदें निकल आती हैं।
खोए रहते हैं बस,
होश खो जाता है।
एक एक लम्हे में,
सदी निकल जाती है।
यह शायरी भी एक,
अजब सा नशा है।
जज़्बात, काग़ज़ और,
कलम का पेशा है।