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Vijay Kumar parashar "साखी"

Others

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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ये धरती, ये अम्बर सबके सब बेख़बर

ये धरती, ये अम्बर सबके सब बेख़बर

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ये धरती, ये अम्बर सबके सब बेख़बर

कोई नहीं रहा है अपना यहां रहबर

सब में बसा अर्थ है,

न रहा नेकी का घर

ये धरती, ये अम्बर सबके सब बेख़बर


जिस पे भरोसा वही देता धोखा

अब न रहा डर हर शख़्स रो रहा

आँसू दरिया भर

ये धरती, ये अम्बर सबके सब बेख़बर


पर ये हमारी भूल है, ख़ुदा देगा शूल है

वही बनेगा फूल है

जिसका मन है, पवित्रता का घर

वो क्या खाक तैरेंगे बांधा जिसने पत्थर

वो डूबेंगे, जरूर,

जिस पर नही ख़ुदा की मेहर

ये धरती, ये अम्बर सबके सब बेख़बर

वही बनेगा नभचर कर्म से बनेगा,

जिसके अच्छाई का शहर


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