ये बूढ़े
ये बूढ़े
बच्चे देर से घर लौटें तो पहरेदार बन जाते हैं
ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यों सठक जाते हैं।
ऐसा करो ऐसा नहीं ,बात बात पर समझाते हैं
ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यों सठक जाते हैं।
चटपटे खाने को चटपट सफाचट कर जाते हैं
ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यों सठक जाते हैं।
इनका कहा अगर ना हो पाए खफ़ा हो जाते हैं
ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यों सठक जाते हैं।
चीज़ें खुद यहाँ वहाँ रखकर कोहराम मचाते हैं
ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यों सठक जाते हैं।
दिल इतना कच्चा है इनका झट आँसू बहाते हैं
ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यों सठक जाते हैं।
इनसे बेमतलब बतियाओ तो बच्चे बन जाते हैं
ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यों सठक जाते हैं।
नाते पोती को लाड़ लड़ाकर सर पर चढ़ाते हैं
ये बूढ़े एक उम्र के बाद जाने क्यों सठक जाते हैं।
पर सठियाये हुए ये बूढ़े बरगद की छाँव से होते हैं
ज़िन्दगी की पतवार को संभालती नाव से होते हैं।
बस इनके होने भर से सर पर साया बन जाता है
इनके जीवन का अनुभव धूप में छाया बन जाता है।
इनके ना होने पर सब खाली हो जाता है
जैसे हरियाला उपवन बिन माली हो जाता है।
उस तन्हाई से इनकी सठक अच्छी होती है
घर आँगन की खुशियां इनसे ही सच्ची होती हैं।
