ये बचपन बड़ा निराला है
ये बचपन बड़ा निराला है
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तन माटी लिपटता बचपन,
मन मीलों उछलता बचपन ।
पेड़ों पर चढ़ता-उतरता बचपन,
लट्टू सा फिरता बचपन ।।
ये चंचल चपल चितोला है,
गिल्ली-डंडा और सितोला है।
ये बचपन बड़ा निराला है ,
मनमौजी और ये आला है।।
परियों से चेहरे इनके,
और कलियों सी मुस्कान है ।
रूठना और मनाना शान है,
इनकी ग़म से न कोई पहचान है।।
अपने और गैर की फिकर नहीं,
चेहरे पर कोई शिकन नहीं ।
धर्म और जात का भेद नहीं,
संस्कृत, पु
राण और वेद नहीं ।।
ये धवल दुग्ध सा निर्मल है,
ये रजत चँँद सा शीतल है ।
ये बचपन बड़ा निराला है ,
मनमौजी और ये आला है।।
अमराई की ठंडी छाँवो में,
पगडंडी, राह और गाँवों में ।
भर के सपने कितने आँखों में,
छिप जाता अकसर शाख़़ों में ।।
कोयल सा कूकता प्यारा बचपन,
खुशियों को ढूूंढता न्यारा बचपन ।
ये बचपन बड़ा निराला है,
मनमौजी और ये आला है ।।