ये आँखें
ये आँखें
ये आँखें आज और रोती नहीं
जैसी होती थी पहले की तरह
तकलीफों से तकल्लुफ़ कैसी
मुसकुरा देती खुशी की तरह।।
थोड़े दबाने से बूढ़े अंगूठे से
आज जख्मों में लहू ठहर जाती
दो घड़ी के बाद लाल रंगत भी
फ़ीकी पतली पानी सी हो जाती
हथेली से पोछ संग मिला लेता
अपने शरीर के रंग की तरह।।
जानते हैं जो क्या बताऊँ उन्हें
लेकिन दिल है कि मानता नहीँ।
टूटे सामानों को लुटे अरमानों को
सहारा अपनों का मिलता नहीँ
दिल तलाशता थोड़ा अपना पन
थोड़ा खैर-खबर पहले की तरह।।
आहों को अपनी सीने में दबोच
होंठों में पसारा खुशियों को
अधखुले दरवाजों को थाम कर
बहलाया रूठे अहसासों को
खुशी हल्की सी यूँ गुज़र गयी
जेठ दुपहरी की बयार की तरह।।
ये ज़ख्म तो भर चुका था लेकिं
लहू रिसता है कोई कुरेदा होगा
हर दर्द तो मेरे खुद ही के हैं
कोई तीखा होगा कोई फ़ीका होगा
मत सहलाओ मरहम जैसी
हरे रहने दो जख्मों की तरह।।
अब आदत भी ऐसी हो गयी
बिन तकलीफों के रहा जाता नहीं
खबर ख़ैरियतों की जो रखती थी
साथ छूट गया सर पे हाथ नहीँ
जब मिलता हूँ उन यादों से आज
महसूस सुकूँ पहले की तरह।।