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Vikas Sharma Daksh

Others

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Vikas Sharma Daksh

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यादों का कोहरा

यादों का कोहरा

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शब भर यादों का कोहरा भी घना रहा,

मेरे सीने में दर्द का अलाव जला रहा,


शाम से गरज़ रहे थे रंज-ए-इश्क़ मेरे,

दिल में अफ़्सुर्दगी का मौसम बना रहा,


चांदनी तसव्वुर बन के उतरी ज़हन में,

आँख में ठहरा शबनम का कतरा रहा,


इस कदर ठिठुरा हुआ था सर्द लहज़े से,

कहता था वो अलविदा और मैं खड़ा रहा,


शायद जम गया है खुले ज़ख्मों का खूं,

तन्हाई की क़फ़स में जो मैं ज़िंदा रहा,


गरमा जाती है हसरत नज़र के मिलते ही,

वाज़िब कि दरम्यां हमारे फासला रहा,


'दक्ष' ठंडी आहों से उसे याद करते हो,

ताउम्र जिससे गर्मजोशी का रिश्ता रहा,



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