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Renuka Chugh Middha

Romance

3  

Renuka Chugh Middha

Romance

यादें

यादें

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212


ख्याल इक नर्म सा फिर से

सरगोशी कर गया, 

नम कर गया मेरा हर लम्हा 

यादें कुछ भूली सी

फिर उभर आई।


ज़हन की गीली दीवारों से,

फिर से अहसास का

बादल लिपटा,

जिस्म के मकाँ से।


जब गुज़रा आज,

फिर शहर से तेरे

नज़्मों की कोठरी से होले से 

छुपा दर्द फिसल गया।

 

खुल गई गिरहें,

बन्द पोटली की

वो पल, सुनहरे रंगीन पल,

फिर आँख -मिचौनी खेलने लगे।


यहाँ-वहाँ जाने कहाँ-कहाँ से यूँ,

उचक-उचक बाहर आने लगे

और तेरे अहसास का

कोमल आँचल लिपट गया मुझसे।


मेरे दिल के उस कोने से

जहाँ रहती हो तुम

तेरे आँगन की अमराई की महक में,

मन फिर से बहक गया।

 

खींच लिया अपनी

महक के आग़ोश में,

वही रगं, वही गंध से

लदी हुई डालियाँ

और वोह ! 


सड़क जो तुम तक पहुँचती है, 

पेड़ नीम की बौर से

ढके हैं और कुछ दूर

हाँ थोड़ा और दूर 

चटख नारंगी से मल धधक रहा है। 


जैसे आग लगी हो

तुम्हारे घर की दीवार से सटी, 

उस रात की रानी ने

यादें फिर रंग दी हैं और

मन फिर,


उन्हीं महुआ की रातों में जैसे

घुल सा गया है

इक मीठे से ज़ायक़े ने रूह को 

रोशन कर दिया।


ले आती है मेरी वफा हर बार मुझे

तुम तलक,

तेरे शहर से गुज़रते हुऐ

बिल्कुल तुम्हारे मेरे प्यार की तरहा।


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